Sunday, February 12, 2023

साँप

डिशवाशर ख़ाली कर वह बर्तन अपनी जगह रख रहा था। एक प्याला ऊपर के कपबोर्ड में रखते वक्त उसे एक हिसींग साउंड सुनाई दिया। वह कपबोर्ड में आमतौर पर बिना देखे ही बर्तन रख देता है। उसे पता है कहाँ क्या रखा है। दाईं ओर स्टील की कटोरियाँ हैं जिनमें माँ ही खाना खाती थीं। बाई ओर कुछ ग्लासेस हैं जिन्हें लोग वाईन ग्लास कहते हैं। यह न पीता है, न पिलाता है। पर कहीं से मुफ्त में मिल गई तो रख लीं। इनमें पानी भी तो पिया जा सकता है। कभी ज़्यादा लोग आ गए तो काम आ जाएँगी। बेकअप हैं। लोग ज़्यादा आ ही जाते हैं। इसकी आदत है किसी न किसी बहाने सबको बुलाने की। सब नहीं आते हैं। आते भी हैं तो अकेले आते हैं। पति पत्नियों को लेकर नहीं आते है। क्योंकि यह अकेला रहता है। पत्नियाँ पति को लेकर नहीं आतीं क्योंकि उन पतियों से इसकी बातचीत नहीं होती। 


हिसिंग साउंड ने उसे चौका दिया। ज़रूर उसका वहम है। यह ज़रूर रूम्बा की आवाज़ है। जो जब मन करे चल पड़ता है वेक्यूम करने। पर वो तो नहीं चल रहा है। हाँ दिन भर अलेक्सा पर चलने वाले विविध भारती के कार्यक्रम में किसी नागिन की आवाज़ होगी। वह भी बंद है। 


फिर क्या है?


देखा तो साँप। भारत में होने वाले कोबरा जैसा। साक्षात मौत। मन हुआ झट से कपबोर्ड का किवाड़ बंद कर दे। कहीं वो फँस गया तो? उसके हाथ पर झपट्टा मार दे तो? बाहर कूद जाए तो? कपबोर्ड पर कोई कुंदा भी नहीं होता। वो धक्का मार कर बाहर आ गया तो?


न जाने कितने सवाल-जवाब-विचार दिमाग़ में कौंध गए। पिछले सात साल से वह सिर्फ़ सलाद और सब्ज़ी और अखरोट खा कर जी रहा है ताकि शरीर स्वस्थ रहे। डायबीटीज़ की वजह से शरीर ख़राब न हो जाए। इंसुलिन न लेनी पड़े। डायलिसिस पर न जाना पड़े। बुढ़ापा शांति से गुज़रे। 


सारी योजना पर पानी फिर गया। स्वस्थ शरीर हो या बेकार, साँप का ज़हर सब पर बराबर असर करता है। सबका सब यहाँ धरा रह जाएगा। रोज़ बीस किलोमीटर चलना - दस सुबह, दस शाम - सब बेकार। 


उसने सुना था कि साँप को लाठी से मारते हैं। यहाँ अमेरिका में लाठी तो क्या झाड़ू तक नहीं है रूम्बा की वजह से। चप्पल भी नहीं पहनते कि चप्पल फेंक दे उस पर। बारह महीने मौजें पहने रहता है। बाथरूम में भी। पूरे घर में कहीं भी फ़र्श पर एक बूँद पानी नहीं कि मौजें गीले हो जाए। बाथरूम में भी नहीं। मेहमान भी जूते बाहर ही उतारते हैं। यह अपने जूते दरवाज़े के पास की रैंक पर रखता है। 


ज़्यादातर समस्याओं का हल यूट्यूब पर मिल जाता है। शायद साँप से निपटने का भी हो। पर इतना वक्त कहाँ कि वीडियो देखा जाए। वैसे भी फ़्री के यूट्यूब पर बिना सेंट जूड अस्पताल के विज्ञापन देखे कुछ देखा नहीं जा सकता। 


अलेक्सा बहुत कुछ सवालों के जवाब ठीक-ठीक दे देती है। उसने पूछा- अलेक्सा साँप को कैसे मारूँ? 


वह चुप कर गई। 


फिर पूछा- अलेक्सा हाऊ डू आई गेट रिड ऑफ़ ए स्नेक? 


वह धल्लड़े से बोलने लगी। (ऐसा नहीं कि वह हिन्दी नहीं समझती। पर मरने-मारने की बात पर चुप्पी साध लेती है।)


यदि घर के अंदर है तो घर का दरवाज़ा खोल दें। वह चला जाएगा। 


नहीं तो एक गारबेज कैन में प्लास्टिक बैग लगा कर लिटा कर रख दें। साँप उसमें घुस जाएगा और आप वह गारबेज कैन बाहर ले जाकर छोड़ दें। 


यदि साँप घर के बाहर हैं तो क्या करना है वह भी बताने लगी। उसे कोई रूचि नहीं थी। उसने सुनना बंद कर दिया था। वह बोले जा रही थी। 


अब चैटजीपीटी आ रहा है तो शायद अलेक्सा में थोड़ा चिंता भाव भी आ जाएगा कि वह कम से कम यह तो पूछे कि आप कैसे हो, साँप से छुटकारा मिला या नहीं। बस बोलती रही और बोलकर चुप हो गई। 


उसने अलेक्सा से कहा कि वह वरूण को फ़ोन लगाए। 


हैलो सर! कैसे हो आप?


मेरे किचन में साँप है। क्या करूँ?


सर ये तो बड़े ख़तरे की बात है। आप तुरंत घर से बाहर आ जाओ। फिर बात करते हैं। 


वह इतना मूर्ख हो सकता है उसने कभी सोचा नहीं था। कितना आसान हल है। 


बाहर ठंड बहुत होगी। फ़रवरी का महीना है तो होगी ही। लोगों को तो पूरे हफ़्ते का मौसम पता होता है। यह तो देखता ही नहीं है। एप्पल घड़ी है। पर किसी काम की नहीं। सिवाय कदम गिनने के। मौसम वाली ऐप डीलिट कर दी। फ़ोटो खींचने का इतना शौक़ है कि सारी ऐप्स डीलिट कर रखी है। 


बिना जैकेट जाना ठीक नहीं। पेंट भी पहनी। अभी वह पजामें में ही घूम रहा था। थोड़ी देर में नहानेवाला था। दाढ़ी बना ली थी। ज़्यादातर ऐसे काम - जैसे कपड़े फ़ोल्ड करना, सलाद काटना, सब्ज़ी पकाना - वह तब करता है जब सीमा का फ़ोन आता है। बात की बात हो जाती है, काम का काम। पर डिशवाशर ख़ाली करते वक्त काफ़ी खटपट होती है जो सीमा बर्दाश्त नहीं कर सकती है। इसलिए वह यह काम सुबह ही कर लेता है। 


जैकेट-पेंट-जूते पहन वह बाहर आया। उसकी निगाह बार-बार कपबोर्ड पर थी। कि कहीं वो कहीं और तो नहीं चला गया। 


वो कपबोर्ड में ही कुंडली जमाए बैठा था। 


बाहर जाकर वो अपनी कार में बैठ गया और उसने एनिमल कन्ट्रोल वालों को फ़ोन लगाया। यहाँ अमेरिका में जानवरों को बनती कोशिश मारा नहीं जाता। चाहे वो भालू या कुगर ही क्यों न हो। कोई इंसान आपकी प्रापर्टी पर बिना अनुमति आ जाए तो उसे गोली मारी जा सकती है। जानवर को नहीं। सही भी है। इंसान को समझ है। जानवर तो नासमझ है। 


अमेरिका में हर किसी को बंदूक़ रखने की छूट है। रेडियो पर तमाम विज्ञापन आते हैं कि आप हमारी शूटिंग रेंज पर टार्गेट प्रैक्टिस करने आइए। यहाँ तक कि अंग्रेज़ी के चैनल पर चाइनीज़ भाषा में भी विज्ञापन है। 


यानी बंदूक़ चलाना इतना आम हो गया है। 


ग़नीमत है कि अभी सुबह है। वरना रात होती तो एनिमल कंट्रोल वाले फ़ोन भी नहीं उठाते। 911 को फ़ोन करने पर वे भी नहीं आते। कहते आज रात किसी होटल में रूक जाइए। कल एनिमल कन्ट्रोल वाले देख लेंगे। 


होटल का ही कहते हैं। यह नहीं कि दोस्त के यहाँ चले जाइए। या रिश्तेदार के यहाँ। 


नहीं! सब के पास चार बेडरूम का घर है। पर जगह की कमी है। हर बेड पर कोई न कोई है। एक बेड पर एक व्यक्ति ही सो सकता है। दो तभी सो सकते हैं जब वे पति-पत्नी हों। 


सोफ़े पर या कार्पेट पर सोना किसी को शोभा नहीं देता। 


एनिमल कंट्रोल वालों ने कहा कि वे किसी को भेज रहे है। वे स्थिति सम्भाल लेंगे। 


उन्होंने जरा भी आश्चर्य नहीं जताया कि साँप अपार्टमेंट में आया कैसे? पूछा ही नहीं। 


मेरे एक मित्र हैं। उनका घर है। घर के आगे पीछे काफ़ी खुली ज़मीन है। उनका पालतू कुत्ता कभी-कभी यार्ड में से किसी साँप को अपने मुँह में पकड़ कर ले आता है। ज़्यादातर वे छोटे होते हैं। एक फुट के आसपास। प्रायः मृतप्राय। कभी-कभी ज़िन्दे भी होते हैं। जिन्हें वे स्वयं एक बैग में भर कर बाहर छोड़ आते हैं। 


यहाँ तो यह भी नहीं है। 


सोचने लगा कि वह अभी कुछ दिनों पहले ही भारत से लौटा है कई मन्दिरों के दर्शन कर के। उनमें से प्रमुख हैं मदुरै का मीनाक्षी मंदिर, द्वारका, सोमनाथ, और नागेश्वर। द्वारका छोड़ सब शिवजी के मन्दिर है। नागेश्वर तो वह ज्योतिर्लिंग है जहां शिवलिंग नाग के रूप में है। 


वह जाता सारे तीर्थस्थलों पर है। पर उसकी आस्था किसी में नहीं है। वह ईश्वर तक को नहीं मानता है। पक्का नास्तिक है। दान-धर्म भी नहीं करता है। कहता है इन सबका कोई मतलब नहीं है। कोई अच्छा-बुरा नहीं। कोई पापी-पुण्यात्मा नहीं। जो जिसके मन में आए करे - स्थानीय क़ानून के अंतर्गत। 


कोई कर्मों की गठरी नहीं है। कोई कर्मों का हिसाब नहीं है। अच्छा-बुरा जो लगना है वह इंसानों को लगना है। ईश्वर को नहीं। किसी को गाली दोगे तो वह तुम्हें पसन्द नहीं करेगा। प्यार से बोलोगे तो नफ़रत नहीं करेगा। बस इतनी सी बात है। 


फिर भी लोग वह करते ही है जो वे करना चाहते हैं। लेऑफ करने से कर्मचारियों के जीवन पर बुरा असर पड़ेगा। कर्मचारी कम्पनी के बारे में अच्छा नहीं सोचेंगे।फिर भी लेऑफ होते ही है। 


कर्मों का हिसाब होता है - यह सिद्धांत इसलिए फैलाया गया कि लोग बुरे कर्म न करे। सम्भल कर रहे। ताकि अगला जन्म न बिगड़े। 


अगला जन्म तो दूर लोग कल की नहीं सोचते हैं। 


लोग जो नास्तिक नहीं हैं, वे भी ईश्वर को नहीं मानते हैं। कहते हैं कि मानते हैं पर उनका व्यवहार ऐसा है कि नहीं मानते हैं। 


यह गया तो सब मन्दिरों में पर कहीं माथा नहीं टेका, हुंडी में पैसे नहीं डाले, किसी भिखारी को पैसे नहीं दिए, कोई प्रसाद नहीं ख़रीदा, कोई फूल-माला नहीं ख़रीदी। 


सोचने लगा कहीं शिव जी उससे नाराज़ तो नहीं? 


फिर सोचा ये तो बेकार की बात है। ऐसा भी कहीं होता है। 


लेकिन आश्चर्य कि भारत का साँप यहाँ सिएटल में कैसे?


एक बार उसकी माधवी से बहस हो गई थी। वह विश्वास ही नहीं कर पा रही थी कि अमेरिका के घरों में मच्छर नहीं होते हैं। हम ऑल-आऊट नहीं लगाते। कीड़े-मकोड़े-कॉक्रोच भी नहीं हैं। बहुत बहस हुई। इतनी बहस कि वह बहुत नाराज़ हुई और दो दिन तक फ़ोन नहीं उठाया। वह आज भी उसका विश्वास नहीं करती है। पर यह सच है। 


एक और आश्चर्य की बात, जिसे ईश्वर से कुछ लेना-देना नहीं है, जिसमें रत्ती भर भी भक्ति नहीं है, उसका सिर्फ़ मन्दिर और मन्दिर जाने का ही अवसर क्यों मिल रहा है?


राहुल उपाध्याय । 12 फ़रवरी 2023 । सिएटल 

No comments: