Wednesday, January 17, 2024

मैरी क्रिसमस- समीक्षा

मैरी क्रिसमस शीर्षक वाली ग़लत वक्त पर, ग़लत हीरो को लेकर बनाई गई श्री राघवन की नवीनतम फिल्म है। कई बार भ्रम होता है कि यह मूलतः हिन्दी फ़िल्म है या किसी और भाषा की फ़िल्म है और इसे डब करके हिन्दी में रिलीज़ किया गया है। 


लेकिन सारे भ्रम हवा हो जाते हैं जब फ़िल्म शुरू होती है। पर मन का क्या किया जाए। थोड़ी देर में लगता है कि यह तो गुलज़ार की फिल्म है। तमाम कोमल भावनाओं से ओतप्रोत। इसमें खून-ख़राबा कहाँ से आएगा। लेकिन बैकग्राउंड म्यूज़िक अंदेशा बनाए रखता है कि अब तो कोई न कोई मरेगा। 


कहानी इतनी बढ़िया है कि कह नहीं सकते। संवाद बहुत ही उम्दा। थियेटर खचाखच भरा हुआ था और हम सब एक सुर में यहाँ-वहाँ हँसे जा रहे थे। थियेटर में सबके साथ देखने का यही मज़ा है। 


सब कुछ आपके आँखों के सामने हो रहा है और आप एक ख़ास बात नज़रअंदाज़ कर जाते हैं जो कि ख़ास नहीं है। मन करता है फ़िल्म एक बार फिर से देखूँ ताकि डायरेक्टर की ईमानदारी पर भरोसा कर सकूँ। 


थ्र्रिलर फिल्म है तो ज़ाहिर है कई मोड़ हैं। सब असली ज़िन्दगी में हो भी नहीं सकते। पर यही तो अगाथा क्रिस्टी आदि कहानियों की खूबी है। पाठक-दर्शक चाहते हैं कि ख़ूब दाँव-पेंच हों। पात्र चालाक भी हो और गलती भी करें ताकि पुलिस के कोई सुराग मिले। 


अत्यंत मनोरंजन प्रदान करनेवाली फिल्म है। 


विनय पाठक को एक अरसे बाद देखकर अच्छा लगा। संजय कपूर भी पसन्द आए। विजय सेथुपथी को पहली बार देखा। माधवन की याद आ गई। कटरीना का अभिनय फ़िल्म की जान है। प्रतिमा काज़मी और अश्विनी करलेस्कर का अभिनय प्रभावशाली है। दोनों की अदायगी से फ़िल्म में चार चाँद लग गए। 


वरूण ग्रोवर के गीत फीके हैं। शक्ति सामंत को राघवन का प्रणाम अच्छा लगा। एक जगह राजेश खन्ना का ज़िक्र भी पसन्द आया। रजनीगंधा का मुकेश द्वारा गाए गीत का आरम्भिक अंश (सलिल चौधरी का कमाल का ऑर्केस्ट्रा) भी बहुत पसंद आया। और आर डी बर्मन की धुन से सज्जित आशा भोंसले के गाये गीत की प्रस्तुति भी कमाल की है। अब सोचकर अजीब लगता है कि भूपेन्द्र को ऐसे गीत का भी हिस्सा बनाया जा सकता है। 


इतनी अच्छी फ़िल्म है कि मन करता है कि जिस उपन्यास पर ये आधारित है उसे पढ़ा जाए। 


फ़िल्म ख़त्म होने पर भी ख़त्म नहीं होती। दिमाग़ में चलती रहती है। 


राहुल उपाध्याय । 17 जनवरी 2024 । सिएटल