Thursday, October 27, 2022

माँ का दूध और अमेरिका

माँ का दूध बच्चे की सेहत के लिए अच्छा होता है। यह सारे विश्व की मान्यता है। 


अमेरिका श्रमप्रधान देश है। यहाँ हर वयस्क जो काम कर सकता है, करता है। यदि दिव्यांग हैं तो भी उनके लिए सुविधाएँ प्रधान की जाती हैं ताकि वे भी काम कर सकें। मोटर वाली व्हीलचैयर होती है जिसे उसमें बैठा व्यक्ति बटन दबाकर चला सकता है। आम लोगों की तरह बस स्टॉप तक जा सकता है। बस का ड्राइवर एक बटन दबाता है और एक प्लेटफ़ार्म निकल आता है जिस पर व्हीलचैयर चढ़ जाती है। ड्राइवर फिर बटन दबाता है और प्लेटफ़ॉर्म व्हीलचैयर समेत बस में चला जाता है। बस में व्हीलचैयर आ सके इतनी जगह सामने ही ड्राइवर के पीछे या आसपास छोड़ दी जाती है। वहाँ कोई सीट नहीं होती। 


माइक्रोसॉफ़्ट में हर तरह की क्षमता वाले लोग काम करते हैं। नेत्रहीन भी। जो सुन नहीं सकते हैं वो भी। जो बोल नहीं सकते हैं वो भी। जो कि सिर्फ़ साइन लेंगवेज समझते हैं वो भी। 


हर माँ चाहती है कि उसे भी वो सब सुविधाएँ मिलें जिससे वो ज़्यादा से ज़्यादा दिन, ज़्यादा से ज़्यादा काम कर सके। माइक्रोसॉफ़्ट जैसी बड़ी कंपनियों में मदर्स रूम है जहाँ जाकर वे अपना दूध पम्प से निकाल कर फ़्रीज़ कर सकती हैं। घर पर या डे केयर में भी अपना दूध फ़्रीज़ में रख कर आती हैं जिसे विशेष उपकरण से गर्म करके बच्चे को पिलाया जा सकता है। 


अब इस वर्ष से माइक्रोसॉफ़्ट एक और सुविधा प्रदान कर रहा है उन माताओं के लिए जिन्हें अपने काम के सिलसिले में दो-चार दिन के लिए शहर से बाहर जाना पड़ सकता है। ऐसे में एक शिपिंग सर्विस है जो कि दूध को फ़्रोज़न हालत में ही बच्चे को जहाँ चाहिए वहाँ पहुँचा देगी। जैसे ट्रांसप्लान्ट के लिए दिल पहुँचाया जाता है क़रीब क़रीब उसी तरह। 


राहुल उपाध्याय । 27 अक्टूबर 2022 । सिएटल 




Saturday, October 22, 2022

दासाब - ज्योति का आलेख

"""""""""""दासाब की कहानी""""""""                       

—- ज्योति नारायण त्रिवेदी 


हमारे दादाजी को हम सब दासाब  कहते थे। दासाब  का पूरा नाम लक्ष्मीनारायण था। उनका जन्म 23 अप्रैल 1910 को सैलाना में हुआ था। वे केवल पांच वर्ष के थे तब उनके पिता शालीग्राम जी का निधन हो गया।  उनकी माता का नाम रामीबाई था। रामी बाई ने अभावों के बीच अपनी दोनों संतानों को पालकर बड़ा किया। 


दासाब के बड़े भाई, मेरे बड़े दादाजी, रामनारायण जी गोद ले लिए गए सैलाना के ही निवासी उनके निःसंतान मामा द्वारा। दासाब ने मेट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त कर केवल 15 वर्ष की उम्र में ही मिठाई की दुकान खोल ली थी।  उनका विवाह 15 वर्ष की उम्र में हमारी 9 वर्षीय दादी श्यामा बाई से हुआ। 


रामानारायण जी पढ़ने म़े काफी होशियार थे। सैलाना रियासत के तत्कालीन  दीवान की नजर उन पर पड़ी। चूँकि उनके मामा पैसे वाले थे उन्हें समझाकर उच्च शिक्षा के लिए बाहर भेजने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने इस प्रकार अलीगढ से एल एल बी की और पवई में मजिस्ट्रेट हो गये। बाद में भारत की आज़ादी के लिए चले आंदोलन में भाग लेने के लिये नौकरी छोड दी। और जेल भी गये। दासाब  को भी उन्होने देश में चल रहे आजादी के आंदोलन से अवगत कराया और हलवाई का काम छोडकर निजी स्कूल खोलने, पत्रकारिता के क्षेत्र में आने और आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिये प्रेरित किया। दासाब ने उनकी सलाह मानकर सन् 1936 में सैलाना में त्रिवेदी प्राथमिक विद्यालय के नाम से स्कूल स्थापित किया। तथा सन् 1940 के आसपास पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा। वे पूरे आदिवासी अंचल के पहले निजी स्कूल शिक्षक और पत्रकार बने। सबसे पहले टाईम्स आफ इ़डिया ग्रुप सहित बनारस से निकलने वाले हिंदी अखबार के पत्रकार बने। बाद में सन् 1945 में इंदौर समाचार और सन् 1947 में नयी दुनिया अखबार से जुडे। उस समय सैलाना और रतलाम के बीच केवल एक बस चलती थी। अगर उस बस में अखबार नहीं आते तो वे पैदल ही सैलाना से रतलाम जाते और अखबार लाकर वितरीत करते। आज भी दासाब  की तीसरी पीढ़ी के रूप में सैलाना में उनके पोते, मेरे बड़े भाई, वीरेन्द्र त्रिवेदी नयी दुनिया के पत्रकार हैं। सन् 1936 से संचालित त्रिवेदी स्कूल को 30 जून 2019 तक तीन पीढ़ियों ने संचालित किया। लगभग 83 वर्ष के सफर म़े त्रिवेदी स्कूल से दिग्गज प्रतिभाएं पढकर निकलीं। जिसम़े से प्रमुख नाम नामी-गिरामी पत्रकार शाहिद मिर्जा, प्रकाश उपाध्याय, आरिफ बेग, प्रथम श्रेणी प्राचार्य जयंतीलाल जी मेहता,  प्रसिद्ब अभिभाषक नरेंदसिह पुरोहित आदि प्रमुख हैं। दासाब ने स्कूल को मिशन के रुप में चलाया। सैलाना जैसी आदिवासी तहसील में, जहां निरक्षरता प्रतिशत सबसे ज्यादा था, अपने विद्यालय के माध्यम से साक्षरता का प्रकाश फैलाया तथा समाचारपत्रों के विक्रेता के रुप में लोगो में पढने की रुचि भी पैदा की।


रामनारायण जी ने सैलाना में प्रजामंडल की स्थापना की। दासाब उसके सक्रिय सदस्य थे। मध्यभारत में प्रजामंडल के पदाधिकारियों और सदस्यों ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे आजादी के आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। रतलाम के प्रसिद्ध इतिहासकार और विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय भंवरलाल भाटी की रतलाम जिले  के इतिहास पर लिखी गयी पुस्तक में इसका उल्लेख है तथा उस पुस्तक में दासाब और बडे दादाजी का फोटो भी है। 


दासाब ने 9 अगस्त 1942 को भारत छोडो आंदोलन में अपने विद्यालय के विद्यार्थियों के साथ प्रदर्शन किया। जिसका  फोटो आज भी हमारे पास है। आजादी के बाद दासाब लंबे समय तक नगर कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। दासाब नगरपालिका सैलाना के पार्षद भी रहे। सत्तर के दशक में राजनीति को अलविदा कर समाजसेवा के क्षेत्र में कदम रखा। 


गर्मियों में आदिवासियों की रोजी-रोटी के संकट को देखते हुए दासाब ने ग्रीष्मकाल में आदिवासियो को वर्षो तक रोटी और गुड बांटा। इस कार्य में आर्थिक मदद उनके सेठ मित्रों ने की।


सैलाना की शमशान भूमि को सुधारने का बीड़ा भी उन्होंने उठाया और अकेले के दम पर जिले के उत्कृष्ट शमशानों की श्रेणी मे खड़ा कर दिया तथा शमशान का नाम शांतिवन कर दिया।  सनाढ्य समाज मंदिर ट्रस्ट के भी वे वर्षो तक अध्यक्ष रहे। 


उन दिनों सैलाना में टेंट हाऊस नही थे। सैलाना दरबार ने टेंट की साम्रगी उपलब्ध कराई। दासाब ने लोगो को विवाह आदि कार्य के लिये बहुत ही सस्ते दर पर टेंट साम्रागी उपलब्ध कराई तथा प्रतिमाह उसका हिसाब  दरबार को दिया तथा इस कार्य के लिये कोई पारिश्रमिक नहीं लिया। 


दासाब ने गांधीजी के आव्हान पर सूत भी काता।  उन्होंने अपना कफन भी सन 1942 में ही चरखे पर कातकर रखा। उनके निधन पर उनके द्वारा काते गये कफन को ही ओढ़ाया गया।  


उनका निधन 28 अक्टूबर 1989 को रुपचौदस के दिन हुआ तथा अंतिम संस्कार अगले दिन दीपावली को हुआ। दीपावली का त्यौहार होने के बाद भी बाजार उनकी  अंतिमयात्रा निकलने तक के लिए बंद रहा। उनके पार्थिव देह को तिरंगे में ले जाया गया था। शांतिवन पर वक्ताओं ने सैलाना के कीर्ति स्तंभ, कैक्टस गार्डन, 'केदारेश्वर और त्रिवेदी स्कुल को सैलाना की पहचान बताया। 


आज दासाब की 33 वीं पुण्य तिथि के अवसर पर उनकी स्मृति को नमन करते हुए सम्पूर्ण परिवार श्रद्धांजलि अर्पित करता है !

Tuesday, October 18, 2022

बाई - ज्योति का आलेख

ःःएक थी बाईःःःः 


हमारी दादी को हम सब बाई कहते थे।  उनका नाम श्यामाबाई था। बाई का जन्म सन् 1915 के आसपास हुआ था। उनके पुरखे मूलतः भानपुरा जिला मंदसौर के निवासी थे। बाद मे उनके पिता रतलाम आ गये थे। बाई की एक बहन थी जो कि उनसे करीब पन्द्रह बरस बड़ी थीं और नालारोड सैलाना में रहती थीं। उनका नाम गोबिंदा था।  हम सब उन्हें बा कहते थे। बाई के एक भाई थे जो उनसे करीब सात-आठ वर्ष बड़े थे। उनका नाम गोवर्धन था। वे धामनोद वाले काकासा के पिताजी थे।


बाई की माताजी का बचपन में ही देहांत हो गया था। उनके पिता और बड़ी बहन ने उनकी परवरिश की। बाई का विवाह केवल नौ बरस की उम्र में ही हमारे दादाजी, जिन्हें हम दासाब कहते थे, के साथ हुआ। बाई के पाँच संतान हुईं। एक बेटा और चार बेटियां। 


बाई की दिनचर्या बहुत ही व्यवस्थित थी। उन्होंने जीवन भर एक ही समय शाम को खाना खाया। वे हमेशा तांबे के लोटे में पानी पीती थीं। बाई बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की महिला.थीं। वे सुबह चार बजे उठतीं और ठंडे पानी से नहाकर कथा पढ़तीं। कथा सुनने पास में रहने वाली राधा माँ और उनकी माँ भी आतीं। सात बजे कथा से निवृत्त होकर दासाब के नहाने पूजा और चायपानी का इंतजाम करतीं। प्रातः साढ़े सात बजे अखबार आते। अखबार वितरण की तैयारी में दासाब का हाथ बँटातीं। प्रातः नौ बजे फिर दूसरी बार का स्नान और पुजापाठ। ग्यारह बजे से चार बजे तक स्कूल संचालन में दासाब की मदद करती थीं। 


बाई केवल पाँचवीं तक पढी थीं। लेकिन हिसाब किताब रखने में बहुत होशियार थीं। स्कूल और अख़बार के पैसो का व्यवस्थित लेखा रखना और दासाब के मांगने पर देना। बड़े परिवार में सबकी आवश्यकता का ध्यान रखना। 


घर में हम सब भाई बहन के अलावा बुआजी के बच्चे और काकासा और उनके बच्चे भी रहते थे। वे सभी को एक समान रखती थीं। किसी के साथ भेदभाव नही किया। काकासा को पढ़ाने से लेकर, नौकरी और विवाह, सब बाई की वजह से ही हुआ। 


दासाब गुस्से के बहुत तेज थे। पर बाई हमेशा शांत रहती थीं। मोहल्ले परिवार के लोग उनसे सलाह मशविरा करने आते थे। कभी भी किसी को गलत सलाह नही दी। प्रकाश मामासा भी फुर्सत में घंटो तक बाई से सलाह मशविरा करते थे। बाई बहुत आगे का सोचती थी। निर्णायक मौके पर बाई के द्वारा लिये गये सही निर्णय आज भी परिवार को सुकुन दे रहे हैं। 


बाई की खास सहेलियाँ हैं - कोटड़ा ठाकुरसा की पत्नी, सेठ प्यारचंदजी रांका की पत्नी, हमारी नानीजी, पासवाले काकीसा, उनकी बड़ी बहन बा, और राधा माँ। पासवाले काकीसा तो हर रविवार को नहाने के बाद सिर में बोर गुंथवाने बाई के पास आते थे। वे बहुत ही सामाजिक थीं। परिवार समाज परिचितों के सुख-दुख में बराबर शामिल होती थीं। 


बाई सबसे अधिक प्यार अपनी बीमार बेटी प्रभा बेन से करती थीं। उन्हें अधिकांश समय सैलाना में ही रखती थीं। प्रभाबेन के निधन के बाद वे पूरी तरह से टूट गईं और केवल 67 वर्ष की उम्र मे ही 19 अक्टूबर 1982 को उनका देहावसान हो गया। 

Wednesday, October 12, 2022

तुम्हारे हम कौन हैं

तुम्हारे हम कौन हैं - यह फ़िल्म है पर अब तक देखी किसी फ़िल्म सी नहीं। कहानी है भी और नहीं भी। संवाद हैं पर हैं भी नहीं। अभिनय है और अभिनय नहीं। कोई भी नामी-गिरामी कलाकार नहीं। सब अपने से लगते हैं। लगता है कि होम वीडियो चल रहा है। यहाँ तक कि दीवार पर कई खूँटियाँ हैं जिन पर न जाने कितने शर्ट टंगे हैं। साधारण सी पानी की बोतलें हैं। आर-ओ की टंकी पर रखी टंकी है। सोने के लिए साधारण सा फ़ोल्ड हो जाने वाला धारी का गद्दा है। जन्मदिन की पार्टी में छोटे से कमरे में पन्द्रह-बीस लड़के हैं। नायक के चेहरे पर न ट्रिम की गई मूँछ है। सब कुछ इतना अकृत्रिम है कि दिल ख़ुश हो जाता है। जैसे कि घर की दाल-रोटी। 


एक बहुत ही ज़रूरी विषय पर बहुत ही सहज फ़िल्म बनाई गई है। 


देख लेने में कोई नुक़सान नहीं है।


 राहुल उपाध्याय । 12 अक्टूबर 2022 । सिएटल 





Tuesday, October 11, 2022

अमिताभ - विशेष जयमाला

अमिताभ बच्चन ने फ़ौजी भाईयों के लिए 1974 में यह विशेष जयमाला कार्यक्रम प्रस्तुत किया था। 


इसमें शुरुआत में हरिवंश राय बच्चन की आवाज़ में मधुशाला की एक कड़ी है। अंत में मन्ना डे के स्वर में यह कड़ी है:


छोटे-से जीवन में 

कितना प्यार करुँ, 

पी लूँ हाला,

आने के ही साथ 

जगत में 

कहलाया 'जानेवाला',

स्वागत के ही साथ 

विदा की 

होती देखी तैयारी,

बंद लगी होने 

खुलते ही 

मेरी जीवन मधुशाला 


मैंने जो आज रचना लिखी थी - कहने को जीवन है, पर मरते यहाँ पर है - लगता है जाने-अनजाने में मैं उन्हीं की बात दोहरा रहा था। 


कई बार मैं मज़ाक़ में कहता हूँ कि बच्चन जी और मुझमें सिर्फ़ 26-27 का फ़र्क़ है। मैं 26 नवम्बर को जन्मा और वे 27 नवम्बर को। 


इस कार्यक्रम में कई और रोचक बातें भी हैं। 


(पूरी मधुशाला यहाँ है:

https://kaavyaalaya.org/mdhshla)


राहुल उपाध्याय । 11 अक्टूबर 2022 । सिएटल