तुम्हारे हम कौन हैं - यह फ़िल्म है पर अब तक देखी किसी फ़िल्म सी नहीं। कहानी है भी और नहीं भी। संवाद हैं पर हैं भी नहीं। अभिनय है और अभिनय नहीं। कोई भी नामी-गिरामी कलाकार नहीं। सब अपने से लगते हैं। लगता है कि होम वीडियो चल रहा है। यहाँ तक कि दीवार पर कई खूँटियाँ हैं जिन पर न जाने कितने शर्ट टंगे हैं। साधारण सी पानी की बोतलें हैं। आर-ओ की टंकी पर रखी टंकी है। सोने के लिए साधारण सा फ़ोल्ड हो जाने वाला धारी का गद्दा है। जन्मदिन की पार्टी में छोटे से कमरे में पन्द्रह-बीस लड़के हैं। नायक के चेहरे पर न ट्रिम की गई मूँछ है। सब कुछ इतना अकृत्रिम है कि दिल ख़ुश हो जाता है। जैसे कि घर की दाल-रोटी।
एक बहुत ही ज़रूरी विषय पर बहुत ही सहज फ़िल्म बनाई गई है।
देख लेने में कोई नुक़सान नहीं है।
राहुल उपाध्याय । 12 अक्टूबर 2022 । सिएटल
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