Monday, November 30, 2020

29 नवम्बर 2020

कल का रविवारीय सामूहिक प्रात: भ्रमण समामिश पुस्तकालय के इर्द-गिर्द हुआ। इसका निर्माण मेरे इस शहर में आने के बाद हुआ। यहीं नगरपालिका भी है। पुलिस थाना भी। स्केटबोर्ड पार्क भी। यहीं पर वो मतदान पेटी है जिसमें मैंने अपना वोट डाला था। 


समामिश शहर भी ज़्यादा पुराना नहीं है। इस शहर को कई बार सबसे अच्छा शहर घोषित किया जा चुका है। 


सबसे अच्छा? अब ये बहुत बड़ा गोरखधंधा है। सबसे अच्छा किस हिसाब से? देखने लगो तो हर शहर किसी न किसी बात में सबसे अच्छा है। आजकल शहरों की कई श्रेणियाँ बना दी गईं हैं। वे शहर जो महानगर नहीं है। वे शहर जो पचास साल से पुराने नहीं हैं। वे शहर जिनमें कोई कारख़ाना नहीं है। वे शहर जहाँ विश्वविद्यालय नहीं है। वे शहर जहाँ जलाशय नहीं है। वे शहर जहाँ सिर्फ एक ही धर्म के लोग नहीं है। वे शहर जहाँ कम से कम दस उद्यान हो। वग़ैरह। वग़ैरह। 


बावजूद इसके कि मैं ऐसे पुरस्कारों को महत्व नहीं देता हूँ, मुझे यह शहर पसन्द है। रेडमण्ड, जहाँ माइक्रोसॉफ़्ट का मुख्यालय है, वह समामिश का पड़ोसी है। और कर्कलेण्ड भी पड़ोसी शहर है जहाँ कास्टको का मुख्यालय है। 


पुस्तकालय एक ऊँची पहाड़ी पर है जहाँ से सिएटल का विहंगम दृश्य दिखता है सिएटल का, जहाँ अमेज़ॉन का मुख्यालय है। कल बादल हमसे लिपट रहे थे सो सिएटल नहीं देख पाए। लेकिन सूरज इतना मनमोहक था कि पूर्णिमा का चाँद भी शरमा जाए। 


यहाँ से जो सड़क निकलती है वह इतने तीव्र उतार पर है कि सर्दी के दिनों में ओस जम जाए तो गाड़ियाँ बेक़ाबू हो जातीं हैं। बर्फ़ गिर जाए तो यातायात ठप्प हो जाता है। बच्चे तब ट्यूब पर बैठकर फिसलने का लुत्फ़ उठाते हैं। 


कल सुबह-सुबह सड़क ख़ाली थी सो बीचोंबीच खड़े हो कर तस्वीर खींचवा ली। 


राहुल उपाध्याय । 30 नवम्बर 2020 । सिएटल


Tuesday, November 24, 2020

राजेश शर्मा

यदि मैं नवीं में असफल न होता तो राजेश से कभी नहीं मिल पाता और हम दोस्त नहीं होते। 


वह मम्मी-बाऊजी के लिए हम दोनों बेटों से बढ़कर था। जब भी उन्हें कोई ज़रूरत महसूस हुई वो हमेशा मदद के लिए तैयार था। बेटा होता तो शायद दो-चार बात कह भी देता। सौ बहाने कर देता। 


बाऊजी की जब सर्जरी हो रही थी, उन्हें खून की आवश्यकता थी। मैं अमेरिका में था। भाई साहब का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। सारी ज़िम्मेदारी राजेश और उसके परिवार और मित्रों ने उठाई। 


और भी कई क़िस्से हैं जिन्हें मम्मी और बाऊजी ने मुझे बताया नहीं। कुछ पता है। 


इस धन्यवाद ज्ञापन दिवस ही नहीं, हर दिन, हर पल मैं उसका ऋणी हूँ। 


जब भी मैं उससे मिलता मैं सोचता था उसे कुछ नहीं होगा। वो हमेशा मेरी माँ का ख्याल रखेगा जब बाऊजी नहीं रहे। मुझे क्या पता था कि वो ही चल बसेगा। 


जुलाई 2015 में वह नींद से ही नहीं जागा। 


मुझे दुख है कि अब वो नहीं है लेकिन मुझे इस बात की ख़ुशी है कि उसके जीवन से मुझे प्रेरणा मिली और मेरे जीवन को नई राह। 


राहुल उपाध्याय । 24 नवम्बर 2020 । सिएटल 


नगद में घर

जब नगद में घर लिया तो कई लोग इससे सहमत नहीं थे। 


घर के लिए यदि क़र्ज़ लिया जाए तो उस पर जो ब्याज चढ़ता है उससे आयकर कम हो जाता है। क्यूँकि जितनी ब्याज राशि होती है वह आमदनी में से घटा दी जाती है। 


दूसरी ओर जो धन राशि घर ख़रीदने में नहीं लगाई, वह कहीं और लगाई जा सकती है। जैसे कि स्टॉक मार्केट में। या भारत में कोई घर ख़रीद कर किराए पर उठाकर कमाई की जा सकती है। या अमेरिका में ही घर ख़रीदकर किराए पर उठाए जा सकते है। 


इतनी बड़ी धनराशि जो मैंने जोड़ ली थी, उसके पीछे कारण था सेन फ़्रांसिस्को से सीबल की नौकरी छोड़ सिएटल में माइक्रोसॉफ़्ट में आना। वहाँ घर तीस साल के लोन पर था। सात साल भर चुका था। 23 साल और बचे थे। 


मुझे कुछ लोगों ने यह भी सलाह दी कि इसे बेचो मत। किराएदार रख लो। 


मुझे क़र्ज़ से सख़्त नफ़रत है। सो किसी की राय नहीं मानी। सेन फ़्रांसिस्को का घर बेचा। और सिएटल में ख़रीदा। 


चैन की नींद सोने का यह भी एक कारण है। 


राहुल उपाध्याय । 24 नवम्बर 2020 । सिएटल 


नवम्बर 2008

जुलाई, 2007 में जब मैंने सिएटल में घर नगद में ख़रीदा, एक राहत की साँस ली। 


अब न महीने-महीने किराया देना था। न ही कोई किश्त भरनी थी। मासिक ख़र्चे फिर भी थे। बिजली, पानी, फ़ोन, आदि के। कुछ वार्षिक ख़र्च भी थे। जैसे सम्पत्ति कर, बीमा, वाहन बीमा, पंजीकरण। और कुछ साप्ताहिक परचूनी ख़र्च। 


बच्चों की बारहवीं तक की पढ़ाई सार्वजनिक स्कूल में नि:शुल्क पढ़ाई होती है। कॉपी-किताब-पेन्सिल आदि के ख़र्च नगण्य है।


बाक़ी कराटे-स्काउट-सॉकर-बेसबॉल आदि की फ़ीस भी ख़ास नहीं है। गर्मी की छुट्टियों में भ्रमण आदि के व्यय भी सामान्य ही है। 


कॉलेज की पढ़ाई अवश्य बहुत महँगी होती है। उसका भी इंतज़ाम था। और यहाँ यह भी व्यवस्था है कि यदि छात्र होनहार है, और माता-पिता गरीब तो कॉलेज स्वयं आपूर्ति कर देता है। और यदि होनहार नहीं है तो किसी सस्ते कॉलेज से भी पढ़ाई की जा सकती है। 


कुल मिलाकर अब जीवन इस पड़ाव पर आ गया था कि मासिक वेतन के लिए किसी की जी-हजूरी करने में अब कोई तुक नज़र नहीं आ रही थी। अमेरिका का नागरिक दो वर्ष पूर्व बन ही चुका था। सो किसी तरह की अब आवाजाही पर भी रोक नहीं थी। 


सो 2008 में सेवानिवृत्त होकर जीवन को नए सिरे से सोचने का प्रण किया। 


उसी वर्ष 27 साल बाद पहली बार घर पर मम्मी-बाऊजी के साथ दीवाली (28 अक्टूबर) और मम्मी का जन्मदिन (2 नवम्बर) मनाया। उससे पहले जब भी घर गया या तो बच्चों की गरमी की या क्रिसमस की छुट्टियों पर। 


इन चित्रों में जितना उल्लास है, उतना न इससे पहले देखा, न बाद में। बहुत ही सुखद यात्रा थी वह। 


राहुल उपाध्याय । 24 नवम्बर 2020 । सिएटल 






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Monday, November 23, 2020

26 नवम्बर 1963

मैं जब दसवीं की परीक्षा के लिए आवेदन पत्र भर रहा था, तब मैंने बाऊजी-मम्मी से अपनी जन्मतिथि पूछी तो दोनों में बहस होने लगी। एक कहे 26 अक्टूबर, एक कहे 26 नवम्बर। मुझे बहुत दु:ख हुआ कि चलो जन्मदिन नहीं मनाया कभी, सो कोई बात नहीं। पर जन्मदिन ठीक से याद भी नहीं?


मम्मी को याद था कि वह देवोत्थानी एकादशी की रात थी। सो पंचांग निकाल कर 26 नवम्बर मान लिया गया। अब पता चला कि रात की बारह बज चुके थे सो क़ायदे से 27 नवम्बर होना चाहिए। 


चूँकि शुरू के कुछ वर्षों में मैं जन्मोत्सव से वंचित रहा, इसलिए अब चार दिन अपना जन्मोत्सव मनाता हूँ। देवोत्थानी एकादशी और उसके अगले दिन द्वादशी को भी। 26 नवम्बर और 27 नवम्बर को भी।  


इस वर्ष विक्रम सम्वत् में बारह महीने के बजाय तेरह महीने रहे। पितृ पक्ष के समाप्त होते ही नवरात्रि आरम्भ हो जाती है। इस वर्ष वह एक महीने बाद हुई। अतिरिक्त माह को अधिक मास या पुरूषोत्तम माह कहा जाता है। 


जैसे कि ग्रिगोरियन कैलेण्डर, जो कि पूर्णिमा या अमावस पर आधारित नहीं है, में हर चार साल बाद फ़रवरी में एक दिन जोड़ दिया जाता है वैसे ही हर 32.5 महीने बाद चन्द्रमा पर आधारित भारतीय हिन्दू कैलेण्डर में एक अतिरिक्त महीना जोड़ दिया जाता है। 


लेकिन आश्चर्य की बात है कि कार्तिक माह कभी अधिक माह नहीं रहा। 250 साल की अवधि में (1901 ईस्वी से 2050 ईस्वी तक) सिर्फ एक बार ऐसा हुआ है। और वह था वर्ष 1963। यानी जिस वर्ष मैं पैदा हुआ। 


और इससे भी ज़्यादा अचरज की बात है कि उस वर्ष भैया दूज दीवाली के दो दिन बाद नहीं, 31 दिन बाद हुई। 16 अक्टूबर को दीवाली थी। 17 नवम्बर को भैया दूज। 


देवोत्थानी एकादशी दीवाली के ग्यारह दिन बाद नहीं 41 दिन बाद हुई। 


इसीलिए मेरी जन्मतिथि और जन्मदिन एक लम्बे अरसे तक फिर से एक ही दिन नहीं हो सकते। 


और मैं जिस वर्ष पैदा हुआ, वह था 2020। यानी आज ही का साल। फ़र्क़ सिर्फ इतना है कि आज है 2020 ईस्वी। और वह था विक्रम सम्वत् 2020। 


इस वर्ष मेरे जन्मदिन पर अमेरिका में चार दिन, 26-29 तक, का अवकाश भी रहेगा। 26 को धन्यवाद ज्ञापन दिवस। 27 को क्रिसमस की ख़रीदारी। 28, 29 शनि-रवि। 


जब मेरा जन्मदिन 26 नवम्बर तय हो गया तो बाऊजी ने बड़े धूमधाम से मनाने का निर्णय लिया। तब हम कलकत्ता में ढाकूरिया झील के पास शरत बनर्जी रोड पर रहते थे। उस झील पर एक क्लब था। क्लब किराया से लिया गया। भव्य पार्टी दी गई। 


मैं बहुत रोष में रहा। मुझे लगा कि दिखावा हो रहा है। सब लोगों से कटा-कटा सा रहा। अनमना सा। 


उस दिन के लिए यह शर्ट ली गई थी। 


उसके बाद बारहवीं की परीक्षा, जे-ई-आ, मेडिकल, आर-ई-सी - सब के लिए यही फ़ोटो आवेदन पत्र पर चिपकाया गया। 


राहुल उपाध्याय । 23 नवम्बर 2020 । सिएटल 




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Sunday, November 22, 2020

22 नवम्बर 2020

आज का साप्ताहिक सामूहिक प्रात: भ्रमण वहीं से आरम्भ हुआ जहाँ से पिछले सप्ताह हुआ था। लेकिन इस बार हम दक्षिण दिशा की ओर चले। क़रीब दो मील दूर पर जीन कुलॉन बीच पार्क मिला। अति रमणीक स्थल है। पतझड़ के रंगों ने इसे और मनोरम बना दिया। तड़के सुबह धुँध का अपना रोमांच था। फिर धूप निकली तो छटा ही निराली हो गई। 


यह पार्क वाशिंगटन झील के पूर्वी छोर पर है। यहाँ से दूसरी ओर स्थित मर्सर द्वीप दिखाई देता है। दक्षिण में बोईंग का कारख़ाना है जहाँ हवाई जहाज़ बनते हैं। एक फ़ोटो में ग़ौर करें तो हवाई जहाज़ दिख जाएगा। झील के किनारे कारख़ाने की कल्पना ही अजीब लगती है। लेकिन यह सच है। यहीं पर रेंटन नगरपालिका विमानतल है। इस विमानतल की यह ख़ासियत है कि यहाँ जितनी उड़ानें जातीं हैं, उतनी आतीं नहीं हैं। क्योंकि बोईंग निर्मित हवाई जहाज़ परीक्षा में पारंगत हो जाने के बाद जब उड़ते हैं तो फिर वापस नहीं आते। 


हमारी तरह। 


छठ पूजा के उपलक्ष्य में एक सज्जन ठेकुआ ले कर आए। 57 वर्ष की उम्र में पहली बार इसका नाम सुना, और इसे खाया। जो इससे अपरिचित हो, उन्हें यह सन्दर्भ दे दूँ कि मालवा में चूरमा के लड्डू के लिए जो बाटी बनती है, वह स्वाद में और दिखने में ठेकुआ से मिलती-जुलती है। एक फ़ोटो में ठेकुआ का विवरण है। 


राहुल उपाध्याय । 22 नवम्बर 2020 । सिएटल 

Saturday, November 21, 2020

यदि मुक्ति मार्ग

कविता में शब्द होते हैं। और जैसा कि पिछली पोस्ट में कहा, कई बार हम उनका अर्थ समझे बिना उनसे प्रभावित हो जाते हैं। चाहे वे भारी भरकम हो या सीधे-सादे। 


पिछली पोस्ट में साहिर ने भी नज़्म पढ़ी, और अमिताभ ने भी। साहिर ने जब पढ़ी तो अदायगी न के बराबर थी। बिलकुल सपाट रही। हालांकि उन्होंने कुछ पंक्तियाँ दोहराई ज़रूर। लेकिन वो जादू नहीं था जो अमिताभ ने पैदा किया। 


मेरे विचार में अदायगी भी श्रोता पर असर छोड़ती है। यदि यश चोपड़ा इस नज़्म को फिल्म में न लेते, यदि अमिताभ की आवाज़ का जादू उस पर नहीं चढ़ता तो शायद यह नज़्म इतना असर नहीं करती और न ही इतनी सुनी जाती। शायद यही हश्र साहिर की अन्य रचनाओं का होता यदि काबिल संगीतकार, एवं गायक उन्हें एक नया रूप नहीं देते। 


इन दिनों, कविता तिवारी की एक रचना बहुत प्रसिद्ध हुई। मैंने वीडियो देखा। प्रभावशाली अदायगी। सुनते ही कोई भी मंत्रमुग्ध हो जाए। इतने कठिन, तत्सम शब्द कि सर ही चकरा जाए। मैंने इसे इंटरनेट पर खोजने की कोशिश की। लिखित रूप में कहीं नहीं मिली। सो मैंने स्वयं ही सुन-सुन कर लिख डाली। कठिन शब्दों के अर्थ भी खोजे। कुछ का अंदाजा लगाया। 


पहले प्रस्तुत है, बिना अर्थों के। उसके बाद है अर्थ सहित। 


मन चंचल है, तन व्यूहल है 

झंझावातों का है समूह 

अगणित प्रतिकूल परीक्षाएँ 

नित जीवन पथ लगता दुरूह 


विकृतियाँ, कृतियों के दल का 

यदि फलादेश सी लगती हों  

संस्तुतियाँ चल विपरीत दिशा 

यदि महाक्लेश सी लगती हों 


यदि काव्यतत्व के समीकरण 

संत्रास दिखाई देते हों 

यदि वर्तमान वाले अवगुण

इतिहास दिखाई देते हों 


यदि मर्यादाएँ मार्ग छोड़ 

पथ भ्रष्ट दिखाई देती हों 

यदि नराधमों की अनुकृतियाँ 

उत्कृष्ट दिखाई देती हों 


कर दो विरोध के स्वर बुलंद 

सबके हित में परिणाम कहो

निश्चित मत करो समय सीमा 

फिर सुबह कहो या शाम कहो 


तम हर, अंतर्मन उज्ज्वल कर 

जय करुणाकर सुखधाम कहो 

यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो

मेरे संग जय सिया राम कहो 


शुभ लक्ष्य लिए आए अतीत 

तब तो भविष्य के स्वप्न बुनों 

अन्यथा सहज पथ पर चल कर 

विक्षिप्त बनों, निज शीश धुनों 


जो अंधकार का अनुचर है 

अनुयायी है पथ भ्रष्टों का 

औचित्य भला कैसे होगा 

ऐसे निकृष्ट परिशिष्टों का 


तुम याज्ञवल्क के वंशज हो 

नचिकेता जैसा तप लेकर 

हिरण्यकश्यप से युद्ध करो 

प्रहलाद सरीखा जप लेकर 


धुन के पक्के पौरुष वाले 

ध्रुव जैसे श्रेष्ठ तपस्वी हो 

वह कृत्य करो, अनुरक्ति भरो 

जिससे यह विश्व यशस्वी हो 


हो त्याज्य अशुभ कुल फलादेश 

जागृत हो कर शुभ नाम कहो 

जो संस्कृति के संरक्षक हो

उनको ही बस गुणधाम कहो

 

हो हंस वंश अवतंश श्रेष्ठ 

होकर सकाम निष्काम कहो 

यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो

मेरे संग जय सिया राम कहो 


कर्तार उन्हें कर तार-तार 

जो हैं कतार को तोड़ रहे

शुचिता-श्रद्धा-करुणा नकार 

अपसंस्कृतियों को जोड़ रहे 


उद्देश्य पूर्ण कर दे धरती 

कर दे मानवता का विकास 

क्षमता को दे जागरण मंत्र 

तम हर भर दे सात्विक प्रकाश 


तू निखिल विश्व का स्वामी है 

अंतर्यामी घट-घट वासी 

सज्जनता को कर दे विराट 

कर खड़ी खाट जो संत्रासी 


उद्भव-स्थिति-संहार-शक्ति

कुल तेरी ही तो छाया है 

कहते हैं वेद, पुराण ग्रंथ 

तुझमें ही विश्व समाया है


कवियो, भूमिका निभाओ तुम 

यति-लय-गति-छंद-ललाम कहो 

शुद्धतायुक्त परिमार्जन हो 

मत उनको दक्षिण-वाम कहो 


श्रद्धायुत नतशीर होकर के 

तत्क्षण शत बार परिणाम कहो 

यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो

मेरे संग जय सिया राम कहो 


———


अब अर्थ सहित:


मन चंचल है, तन व्यूहल (विहल) है 

झंझावातों का है समूह 

अगणित प्रतिकूल परीक्षाएँ

नित जीवन पथ लगता दुरूह 


विकृतियाँ, कृतियों के दल का 

यदि फलादेश (परिणाम) सी लगती हों  

संस्तुतियाँ (सुझाव) चल विपरीत दिशा 

यदि महाक्लेश सी लगती हों 


यदि काव्यतत्व के समीकरण (संतुलन)

संत्रास (आतंक) दिखाई देते हों 

यदि वर्तमान वाले अवगुण

इतिहास दिखाई देते हों 


यदि मर्यादाएँ मार्ग छोड़ 

पथ भ्रष्ट दिखाई देती हों 

यदि नराधमों की अनुकृतियाँ (नकल)

उत्कृष्ट दिखाई देती हों 


कर दो विरोध के स्वर बुलंद 

सबके हित में परिणाम कहो

निश्चित मत करो समय सीमा 

फिर सुबह कहो या शाम कहो 


तम हर, अंतर्मन उज्ज्वल कर 

जय करुणाकर सुखधाम कहो 

यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो

मेरे संग जय सिया राम कहो 


शुभ लक्ष्य लिए आए अतीत 

तब तो भविष्य के स्वप्न बुनों 

अन्यथा सहज पथ पर चल कर 

विक्षिप्त (पागल) बनों, निज शीश धुनों 


जो अंधकार का अनुचर है 

अनुयायी (समर्थक) है पथ भ्रष्टों का 

औचित्य भला कैसे होगा 

ऐसे निकृष्ट परिशिष्टों (बाद में जो जोड़ा गया) का 


तुम याज्ञवल्क के वंशज हो 

नचिकेता जैसा तप लेकर 

हिरण्यकश्यप से युद्ध करो 

प्रहलाद सरीखा जप लेकर 


धुन के पक्के पौरुष वाले 

ध्रुव जैसे श्रेष्ठ तपस्वी हो 

वह कृत्य करो, अनुरक्ति (लगाव) भरो 

जिससे यह विश्व यशस्वी हो 


हो त्याज्य अशुभ कुल फलादेश 

जागृत हो कर शुभ नाम कहो 

जो संस्कृति के संरक्षक हो

उनको ही बस गुणधाम कहो

 

हो हंस वंश अवतंश (श्रेष्ठ) श्रेष्ठ 

होकर सकाम निष्काम कहो 

यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो

मेरे संग जय सिया राम कहो 


कर्तार (करने वाला, ईश्वर) उन्हें कर तार-तार 

जो हैं कतार को तोड़ रहे

शुचिता (सफाई, पवित्र)-श्रद्धा-करुणा नकार 

अपसंस्कृतियों को जोड़ रहे 


उद्देश्य पूर्ण कर दे धरती 

कर दे मानवता का विकास 

क्षमता को दे जागरण मंत्र 

तम हर भर दे सात्विक प्रकाश 


तू निखिल विश्व का स्वामी है 

अंतर्यामी घट-घट वासी 

सज्जनता को कर दे विराट 

कर खड़ी खाट जो संत्रासी (आतंकी)


उद्भव-स्थिति-संहार-शक्ति

कुल तेरी ही तो छाया है 

कहते हैं वेद, पुराण ग्रंथ 

तुझमें ही विश्व समाया है


कवियो, भूमिका निभाओ तुम 

यति (कविता में एक जगह )-लय-गति-छंद-ललाम (अलंकार) कहो 

शुद्धतायुक्त परिमार्जन (सफाई) हो 

मत उनको दक्षिण-वाम (परंपरावादी-प्रगतिशील) कहो 


श्रद्धायुत नतशीर होकर के 

तत्क्षण शत बार परिणाम कहो 

यदि मुक्तिमार्ग चुनना चाहो

मेरे संग जय सिया राम कहो 


https://youtu.be/be5qsYTJWtc 

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राहुल उपाध्याय । 23 अगस्त 2020 । सिएटल 



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Sunday, November 15, 2020

15 नवम्बर 2020

आज के दिन 84 वर्ष पहले बाऊजी का जन्म हुआ था। 


उन्होंने न कभी डाँटा, न पुचकारा। इन सबका मुझ पर गहरा असर पड़ा। और जो मैं आज हूँ, उसमें उनका कहीं न कहीं योगदान अवश्य है। 


जब मैं नवीं कक्षा में गणित में विफल हो गया तब उन्होंने मेरी तथाकथित 'ट्यूशन' नहीं लगाई। उन्होंने अपने एक विधि के विद्यार्थी से कहा कि यह गणित में कमजोर है, देख लो कुछ मदद कर सको तो। 


यह बहुत बेतुकी बात है। गणित का विधि से क्या लेना-देना?


लेकिन बाद में समझ आया कि शम्भू दा से बढ़िया और कोई शिक्षक नहीं हो सकता था। पहली बात तो वे परिवार के मित्र थे सो कोई झिझक नहीं थी। दूसरा वे अच्छी तरह से समझ जाते थे कि मुझे क्या कठिनाई हो रही है, क्यों हल करने का कोई तरीक़ा आसानी से समझ नहीं आ रहा है। 


यह एक वरदान साबित हुआ। ऐसा नहीं कि मैं रातों रात ज्ञान की खान बन गया। लेकिन मुझमें प्रश्न पूछने की हिम्मत आ गई। अब मैं बेझिझक कक्षा में शिक्षक से प्रश्न पूछ सकता था, और पूछता था। 


मेरा छोटा बेटा, वाशिंगटन विश्वविद्यालय में, कम्प्यूटर साईंस की पढ़ाई कर रहा है। वह कहता है कि वहाँ के एक प्रोफेसर क्रिप्टोग्राफ़ी की एक विशेष विधा के जनक हैं। वे विश्वविख्यात हैं। यशस्वी हैं। बहुत ज्ञानी हैं। लेकिन बहुत बुरे शिक्षक। उन्हें पता ही नहीं कि किसी को कुछ समझने में क्या कठिनाई हो सकती है। उनके लिए सब आसान है। 


राहुल उपाध्याय । 15 नवम्बर 2020 । सिएटल 



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Sunday, November 8, 2020

8 नवम्बर 2020

आज शून्य डिग्री सेल्सियस तापमान में 4.87 मील, क़रीब 8 किलोमीटर का रविवारीय साप्ताहिक सामूहिक भ्रमण हुआ। 900 फ़ीट से ज़्यादा की चढ़ाई चढ़ी। 


किन्हीं कारणवश आज हम सिर्फ़ तीन ही थे।


लेकमॉन्ट इलाक़े में हम पहले जा चुके हैं। लेकिन यह क्षेत्र इतना विशाल है कि कोई भी नया कोना पकड़ लो, एक नई राह मिल जाती है। हर तरफ़ सुन्दर नज़ारे। बस देखने भर की देर है। 


सिएटल में वर्ष में एक-दो बार ही बर्फ गिरती है। जब गिरती है तो इन पहाड़ियों पर ज़्यादा गिरती है और जमी भी कई दिनों तक रहती है। पहाड़ी पर स्थित होने की वजह से कारों का आवागमन भी मुश्किल हो जाता है। 


आज भी ठंड ज़्यादा थी सो कहीं-कहीं ओस की परत जम गई थी। 


घर लौटते वक़्त कार में रेडियो पर सुना कि एलेक्स ट्रेबेक नहीं रहें। बहुत दुख हुआ। 


वे 80 वर्ष के थे। पिछले एक साल से कैंसर से जूझ रहे थे। वही कैंसर जिसने स्टीव जॉब्स की जान ले ली थी। 


एलेक्स ज्यपोर्डी कार्यक्रम के मेज़बान थे। शुरू से अंत तक। यह 22 मिनट का एक ऐसा अनूठा प्रतियोगिता कार्यक्रम है जिसमें उत्तर दिए जाते हैं, और प्रतिभागियों को सही प्रश्न बताने पर इनाम मिलता है। जैसे कि:

उत्तर: इन्हें भारत का राष्ट्रपिता भी कहा जाता है और इनके जीवन पर बनी फ़िल्म को ऑस्कर पुरस्कार भी मिल चुका है। 

यदि प्रतिभागी कहे: महात्मा गाँधी 

तो वह ग़लत होगा। 


सही होगा: महात्मा गांधी कौन है? 


बड़ा ही रोचक कार्यक्रम है। मैं जब से अमेरिका में हूँ (1986) तब से उनका कार्यक्रम देखता आया हूँ। वे अभी कोरोना काल में भी यह कार्यक्रम रिकार्ड कर रहे थे। जून-जुलाई में रिकार्ड हुए प्रोग्राम इन दिनों दिखाए जा रहे हैं। अंतिम कार्यक्रम क्रिसमस के दिन दिखाया जाएगा। 


राहुल उपाध्याय । 8 नवम्बर 2020 । सिएटल 






Sunday, November 1, 2020

1 नवम्बर 2020


आज का रविवारीय सामूहिक प्रात: भ्रमण सोमरसेट में स्थित फ़ॉरेस्ट रिज स्कूल के इर्द गिर्द हुआ। इस निजी स्कूल में बिल गेट्स की बेटी पढ़ी है। अमेरिका में सरकारी स्कूलों में बारहवीं तक की पढ़ाई मुफ़्त है। यदि आप निजी स्कूल जाते हैं तो ख़र्चे बहुत हैं। आम तौर पर सरकारी स्कूलों में पढ़ाई बहुत अच्छी होती है। सो निजी स्कूलों में जाने का कोई औचित्य नहीं है लेकिन फिर भी कुछ निजी स्कूल हैं और कुछ अभिभावक अपने बच्चे वहाँ भेज देते हैं।  बिल गेट्स स्वयं एक निजी स्कूल में पढ़े हैं।  वहीं साठ के दशक में उन्हें कंप्यूटर का उपयोग करने की सुविधा मिल गई थी। उन्हें उसमें रुचि आने लगी थी। बाक़ी की कहानी तो सब जानते ही हैं कि कैसे कम उम्र में उन्होंने कंप्यूटर प्रोग्रामिंग की नौकरी की। एक कंपनी भी खोली जो ज़्यादा नहीं चली। बाद में माइक्रोसॉफ्ट खोली। जिसमें मैं अभी काम कर रहा हूँ। 


पूरे देश में समान स्थिति नहीं है। जब मैं सेन फ़्रांसिस्को में था, वहाँ सरकारी स्कूलों में अच्छी पढ़ाई न होने के कारण विवश हो प्रेरक को निजी स्कूल में भेजना पड़ा। इतनी फ़ीस कि मैं हैरान हो गया। कॉलेज की फ़ीस कम होती है, पहली कक्षा की ज़्यादा। और दाख़िला भी निश्चित नहीं। प्रेरक के दाख़िले के लिए मैं और मेरे मित्र फोल्डिंग कुर्सी पर रात भर क़तार में बैठे रहे तब जाकर सुबह दाख़िले में नम्बर आया। 


फ़ारेस्ट रिज की सालाना फ़ीस 33 हज़ार डॉलर है। मेरे छोटे बेटे की वाशिंगटन विश्वविद्यालय की सालाना फ़ीस 17 हज़ार डॉलर है। 


फ़ॉरेस्ट रिज कैथोलिक स्कूल है और सिर्फ़ लड़कियों का। बिल की पत्नी मिलिंडा भी डलास में ऐसे ही किसी लड़कियों के कैथोलिक स्कूल में पढ़ीं हैं। 


सोमरसेट इलाक़ा मेरे ही शहर में है और मेरी ही सड़क पर पाँच मील दूर है। यह बहुत ही संभ्रान्त इलाक़ा है और 900 फ़ीट ऊँची पहाड़ी पर स्थित है। यहाँ से पूरे सिएटल का नज़ारा दिखता है। यहाँ से ओलंपिक और केस्केड पर्वतों की श्रृंखलाएं दिखती है। सिएटल शहर एक वादी में बसा हुआ है कई झीलों के साथ। मार्च में कोविड के कारण भ्रमण रूक गया था अब जब शुरू हुआ तो लोग आने लगे।  आज पाँच साथी ओर जुड़ गए। बड़े दिनों बाद सबको मिलकर बहुत अच्छा लगा। हमेशा की तरह बहुत फ़ोटो खींचे। चाय पी और कुछ मीठा-नमकीन मी खाया गया। सिएटल शहर की प्रख्यात मीनार -  स्पेस मिडल -  605 फ़ीट ऊँची है। हमने आज के भ्रमण में सात सौ फ़ीट की चढ़ाई चढ़ ली। 


राहुल उपाध्याय । 1 नवम्बर 2020 । सिएटल