यदि मैं नवीं में असफल न होता तो राजेश से कभी नहीं मिल पाता और हम दोस्त नहीं होते।
वह मम्मी-बाऊजी के लिए हम दोनों बेटों से बढ़कर था। जब भी उन्हें कोई ज़रूरत महसूस हुई वो हमेशा मदद के लिए तैयार था। बेटा होता तो शायद दो-चार बात कह भी देता। सौ बहाने कर देता।
बाऊजी की जब सर्जरी हो रही थी, उन्हें खून की आवश्यकता थी। मैं अमेरिका में था। भाई साहब का स्वास्थ्य ठीक नहीं था। सारी ज़िम्मेदारी राजेश और उसके परिवार और मित्रों ने उठाई।
और भी कई क़िस्से हैं जिन्हें मम्मी और बाऊजी ने मुझे बताया नहीं। कुछ पता है।
इस धन्यवाद ज्ञापन दिवस ही नहीं, हर दिन, हर पल मैं उसका ऋणी हूँ।
जब भी मैं उससे मिलता मैं सोचता था उसे कुछ नहीं होगा। वो हमेशा मेरी माँ का ख्याल रखेगा जब बाऊजी नहीं रहे। मुझे क्या पता था कि वो ही चल बसेगा।
जुलाई 2015 में वह नींद से ही नहीं जागा।
मुझे दुख है कि अब वो नहीं है लेकिन मुझे इस बात की ख़ुशी है कि उसके जीवन से मुझे प्रेरणा मिली और मेरे जीवन को नई राह।
राहुल उपाध्याय । 24 नवम्बर 2020 । सिएटल
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