आज के दिन 84 वर्ष पहले बाऊजी का जन्म हुआ था।
उन्होंने न कभी डाँटा, न पुचकारा। इन सबका मुझ पर गहरा असर पड़ा। और जो मैं आज हूँ, उसमें उनका कहीं न कहीं योगदान अवश्य है।
जब मैं नवीं कक्षा में गणित में विफल हो गया तब उन्होंने मेरी तथाकथित 'ट्यूशन' नहीं लगाई। उन्होंने अपने एक विधि के विद्यार्थी से कहा कि यह गणित में कमजोर है, देख लो कुछ मदद कर सको तो।
यह बहुत बेतुकी बात है। गणित का विधि से क्या लेना-देना?
लेकिन बाद में समझ आया कि शम्भू दा से बढ़िया और कोई शिक्षक नहीं हो सकता था। पहली बात तो वे परिवार के मित्र थे सो कोई झिझक नहीं थी। दूसरा वे अच्छी तरह से समझ जाते थे कि मुझे क्या कठिनाई हो रही है, क्यों हल करने का कोई तरीक़ा आसानी से समझ नहीं आ रहा है।
यह एक वरदान साबित हुआ। ऐसा नहीं कि मैं रातों रात ज्ञान की खान बन गया। लेकिन मुझमें प्रश्न पूछने की हिम्मत आ गई। अब मैं बेझिझक कक्षा में शिक्षक से प्रश्न पूछ सकता था, और पूछता था।
मेरा छोटा बेटा, वाशिंगटन विश्वविद्यालय में, कम्प्यूटर साईंस की पढ़ाई कर रहा है। वह कहता है कि वहाँ के एक प्रोफेसर क्रिप्टोग्राफ़ी की एक विशेष विधा के जनक हैं। वे विश्वविख्यात हैं। यशस्वी हैं। बहुत ज्ञानी हैं। लेकिन बहुत बुरे शिक्षक। उन्हें पता ही नहीं कि किसी को कुछ समझने में क्या कठिनाई हो सकती है। उनके लिए सब आसान है।
राहुल उपाध्याय । 15 नवम्बर 2020 । सिएटल
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Rahul
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