ऊँ जय नगदीश हरे, स्वामी जय नगदीश हरे
भक्त जनों के संकट, दास जनों के संकट
क्षण में दूर करे
जो धावे वही पावे, दुख बिनसे मन का
स्वामी दुख बिनसे मन का
सुख सम्पति घर आवे
कष्ट मिटे तन का
मात पिता तुम मेरे, शरण गहूँ मैं किसकी
स्वामी शरण गहूँ मैं किसकी
तुम बिन और न दूजा, ए-टी-एम और न दूजा,
आस करूँ मैं जिसकी
तुम पूरण सुखदाता, तुम से हर पाई
स्वामी तुम से हर पाई
यार-दोस्त-नेता आदि
तुम सबके स्वामी
तुम मूल्यों के सागर, तुम पालन करता
स्वामी तुम पालन करता
मैं सेवक तुम स्वामी
कृपा करो भरता
तुम हो एक अगोचर, सबके प्राण पति
स्वामी सबके प्राण पति
किस विधि मिले विनिमय
तुम हो शाणपति
दीन बंधु दुख हरता, तुम रक्षक मेरे
स्वामी तुम रक्षक मेरे
बहुधा हस्त में आओ
द्वार पड़ा मैं तेरे
क्रय विकार मिटाओ, बिल भरो देवा
स्वामी बिल भरो देवा
समृद्धि सम्पत्ति बढ़ाओ
खावे नित मेवा
तन-मन-धन सब कुछ है तुझसे
स्वामी सब कुछ है तुझसे
सबका मुझको अर्पण
क्यूँ छोड़ूँ किसीका
(शिवानन्द स्वामी से क्षमायाचना सहित)
19 नवम्बर 2016
भवानी मण्डी के आसपास