Sunday, November 20, 2016

मुझे बहती नदी में ख़त बहाने हैं

मुझे बहती नदी में ख़त बहाने हैं

क्यूँ?
क्यूँकि 
फ़िल्मों में देखा है
किताबों में पढ़ा है
गानों में सुना है

और
दिल भी टूटा है
साथ भी छूटा है
सब कुछ तो रूठा है

पर होगा नहीं 

क्यूँ?
क्यूँकि
न ख़त है
न नदी है
न बहता शिकारा है
बस गिटपिट का पिटारा है
जिसमें 
मिट के भी कुछ मिटता नहीं 
और हो के भी कुछ होता नहीं 

आप कहेंगे
फ़क़त बहाने हैं
लेकिन सच मानिए
कुछ लालसाएँ 
ऐसी ही होती हैं
पूरी नहीं होतीं

जीवन-मरण का
अनवरत चक्र 
चलता ही रहता है

दुनिया विकसित होती रहती है
और
फ़िल्मों-किताबों-गीतों के
मुहावरे बदलते नहीं

20 नवम्बर 2016
सैलाना | 001-425-445-0827
tinyurl.com/rahulpoems

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