Sunday, August 27, 2023

देव कोहली

1942 में जन्मे हिन्दी फ़िल्मों के गीतकार, देव कोहली, 26 अगस्त को गुज़र गए। 


इनके लिखे गीत जाने-पहचाने हैं पर उन पर अभिनेताओं की छाप अधिक है। गीतकार का नाम प्रचलित नहीं हुआ। उसकी एक वजह यह भी हो सकती है कि उन्होंने किसी फ़िल्म के सारे गीत नहीं लिखे। मैंने प्यार किया - सलमान खान और भाग्यश्री के लिए जानी जाती है। गाने सुपर हिट हैं। कई गाने हैं। लेकिन गीतकार कौन? नहीं पता। दो गीतकार थे। एक, देव कोहली, दूसरे असद भोपाली। 


ये रहे कुछ गीतों की सूची जिन्हें देव कोहली ने लिखाः



आजा शाम होने आई

आते-जाते हँसते-गाते

क़सम की क़सम है क़सम से

गीत गाता हूँ मैं, गुनगुनाता हूँ मैं

टन टनाटन टन टन टारा

दीदी तेरा देवर दीवाना

पहला-पहला प्यार है

माई न माई मुँडेर पे तेरी

मुझसे जुदा होकर तुम्हें दूर जाना है

ये काली-काली आँखें

हम साथ-साथ हैं


राहुल उपाध्याय । 28 अगस्त 2023 । ऑस्टिन 

Thursday, August 24, 2023

बाई-दादा

25 अगस्त 1991. 


मेरे दादा-दादी। 


यह तस्वीर मैंने तब ली थी जब पहला कैमरा लिया था, रील वाला। 


बाई-दादा हमेशा शिवगढ़ में रहे। बाऊजी ने पूरी दुनिया देखी। इंग्लैंड से पीएचडी की। ऑस्ट्रेलिया और न्यूज़ीलैंड में विश्वविद्यालय में व्याख्याता रहे। थाईलैण्ड में संयुक्त राष्ट्र संघ की सभा में भारत का प्रतिनिधित्व किया। भारत के कई शहरों - जम्मू, शिमला, दिल्ली, मेरठ, कलकत्ता, जबलपुर, बैंगलोर- में काम किया। 


लेकिन बाई-दादा शिवगढ़ ही रहे। उस  घर में कभी कोई फ़र्निचर या इलेक्ट्रॉनिक उपकरण नहीं आया। सिवाय चाबी वाली अलार्म घड़ी, लालटेन, फ़्लैशलाइट (टॉर्च) और स्टोव के। मेरे नाना के यहाँ ट्यूब वाला रेडियो था। बाई-दादा के लिए रेडियो की कोई आवश्यकता नहीं थी। जैसे कि हमें कभी सेलफोन (या आज आईफ़ोन) ज़बरदस्ती का आईटम लगता था। 



Tuesday, August 22, 2023

गुलज़ार

अभी 18 अगस्त को गुलज़ार 89 वर्ष के हुए। तब से मैं उनके 89 गीतों की सूची बना रहा था। चाहता तो किसी वेबसाइट से यह बना सकता था। लेकिन मैं वे गाने चाहता था जो कि मेरे ज़हन में हो। सदा रहे हो। 


आज बन गई। कुछ प्रचलित गाने जो आपको भी पसन्द हों और छूट गए हो तो बताइएगा। ग्यारह साल बाद शतक में काम आएँगे। 



अब के ना सावन बरसे

आज बिछड़े हैं

आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे

आनेवाला पल जानेवाला है

आपकी आँखों में कुछ महके हुए से

इस मोड़ से जाते हैं

एक अकेला इस शहर में

एक दिन सपने में देखा सपना

एक बात कहूँ 'गर मानो तुम

एक ही ख़्वाब कई बार देखा है मैंने

ऐ अजनबी तू भी कभी आवाज़ दे कहीं से

ऐ ज़िंदगी गले लगा ले

ऐ मेरे प्यारे वतन

ऐ वतन-वतन मेरे आबाद रहे तू

ऐ हैरत-ए-आशकी

ओ माँझी रे

ओ साथी रे

ओंकारा, सबसे बड़े लड़ैया रे 

कजरारे

कतरा-कतरा ज़िन्दगी

केसरिया बालमा

कोई नहीं है कहीं

कोई होता जिसको अपना

ख़ामोश सा अफ़साना

ख़ाली हाथ शाम आई

गंगा आए कहाँ से

गुलमोहर 'गर हमारा नाम होता

घर जाएगी, तर जाएगी

चप्पा-चप्पा चरखा चले

चल छईया

चाँद चुरा के लाया हूँ

छई छपा छई

छड़ी रे छड़ी कैसी गले में पड़ी

छोड़ आए हम वो गलियाँ

जब भी ये दिल उदास होता है

जाने क्या सोच कर नहीं गुज़रा

ज़िन्दगी मेरे घर आना

ज़े-हाल-ए-मिस्कीं

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी

तुम आ गए हो नूर आ गया है

तुम पुकार लो, तुम्हारा इंतज़ार है

तुमसे मिला था प्यार कुछ अच्छे नसीब थे

तुम्हें हो न हो, मुझको तो इतना यक़ीं है

तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा

तेरे बिना जिया जाए ना

तेरे बिना बेस्वादी रतिया

थोड़ा है थोड़े की ज़रूरत है

थोड़ी सी ज़मीं, थोड़ा आसमाँ

दिल ढूँढता है फिर वही

दिल तो बच्चा है जी

दिल से रे

दिल हूँ हूँ करे

दो दीवाने शहर में

दो नैना, इक कहानी

दो नैनों में आँसू भरे हैं

नाम गुम जाएगा

फिर वही रात है

फिर से आए बदरा

बँटी और बबली

बीड़ी जलई ले

बीती ना बिताई रैना

बेचारा दिल क्या करे

मुझे जाँ न कहो मेरी जान

मुड़-मुड़ के न देखो ओ दिलबरो

मुसाफ़िर हूँ यारो

मेरा कुछ सामान पड़ा है

मैं एक सदी से बैठी हूँ

मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने

मोरा गोरा अंग लई ले

मौसम मौसम लवली मौसम

यारा सिली-सिली रात

ये जीना है अंगूर का दाना

ये साये हैं, ये दुनिया है

राह पे चलते हैं

रूके-रूके से कदम रूक के बार-बार चले

रोज़-रोज़ आँखों तले

लकड़ी की काठी

वो शाम कुछ अजीब थी

सारे के सारे गामा को लेकर

सिली हवा छू गई

सुन सुन दीदी तेरे लिए एक रिश्ता आया है

सुरमई अँखियों में नन्हा-मुन्ना

सुरमई शाम इस तरह आए

हज़ार राहें मुड़ के देखीं

हज़ूर इस कदर भी ना इतरा के चलिए

हम को मन की शक्ति देना

हमने देखी हैं उन आँखों की महकती

हमें रास्तों की ज़रूरत नहीं है

हवाओं पे लिख दो


राहुल उपाध्याय । 22 अगस्त 2023 । सिएटल 

Friday, August 18, 2023

ग़दर 2 - समीक्षा

अनिल शर्मा की पहली 'ग़दर' फ़िल्म के गाने अच्छे थे। भावनात्मक जुड़ाव था। आनन्द बक्षी के शब्द हमेशा की तरह सरल और दिल को छू गए थे। 


दूसरी 'ग़दर' में भी वही गीत हैं। लिहाज़ा अच्छे लगने ही चाहिए और अच्छे लगे भी। लेकिन कथानक के साथ भावनात्मक जुड़ाव वैसा नहीं बन पाया। सारी सिचुएशन्स कृत्रिम लगीं। ज़बरदस्ती की। इक मोड़ आया, मैं उत्थे दिल छोड़ आया के लिए बेटे को मोटरसाइकिल चाहिए वाली लम्बी चौड़ी कहानी जोड़ डाली। धर्मेन्द्र का भी ज़िक्र ले आए। 


अनिल शर्मा के मुताबिक़ इस कहानी का सारांश ये है कि अभिमन्यु चक्रव्यूह में फँस जाता है और उसके पिता उसकी मदद को आते हैं। न जाने क्यों वे मूल विषय से भटक कर अन्य प्रकरणों में समय गँवा देते हैं। मूल कहानी तो इंटरवल के बाद शुरू होती है। 


अमिशा पटेल की उम्र हो चुकी है फिर भी उन्हें हमेशा ग्लैमर से भरपूर दिखाया है। नई अभिनेत्री सिमरत कौर को कुछ करने का अवसर नहीं मिला। 


गोलियाँ इतनी चलती हैं और कई पात्र धराशायी हो जाते हैं लेकिन तारा, जीते और मुस्कान अभयदान प्राप्त हैं। उन्हें कुछ नहीं होता। 


फिल्म की रील बढ़ाने के चक्कर में कई दौड़-भाग के सीन हैं, टैंक हैं, गोला-बारूद हैं। सब बचकाने जैसे। जैसे घर में न बना कर हम ज़ोमाटो से ऑर्डर कर लोगों का पेट भरने की कोशिश करते हैं, वैसे। जम कर लड़ाई हो रही है और लगता है टॉम एण्ड जैरी का कार्टून चल रहा है। मनीष वधवा और सनी देओल - दोनों ने अभिनय में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन निर्देशन की कमी से दृश्य प्रभावशाली नहीं बन पाए। कहीं भी तनाव नहीं बना रहा। गाने बाधा डालते रहे। 


जीते की भूमिका में उत्कर्ष के लिए अभिनय के कई अवसर थे पर किसी न किसी कारण वे खरे नहीं उतर पाए। 


आपमें से बहुत लोगों ने शायद देख ही ली होगी। न देखी हो तो न देखें। कश्मीर फ़ाइल्स का थोड़ा बेहतर रूप है। पर है तो पड़ोसी से नफ़रत के ही इर्द-गिर्द। 


राहुल उपाध्याय । 18 अगस्त 2023 । सिएटल 

Wednesday, August 16, 2023

बार्बी- समीक्षा

21 जुलाई से चल रही फ़िल्म 'बार्बी' आज भी उतनी ही लोकप्रिय है। थियेटर लगभग हाउस फ़ुल था। मैं कभी बार्बी डॉल के सम्पर्क में नहीं आया। न मेरी कोई बहन है, न बेटी। फिर भी अमेरिका में 37 साल रहने के बाद कुछ तो जानकारी है। यह फिल्म बार्बी से जुड़े सारे मुद्दों को सामने लेकर आती है। बहुत ही संवेदनशील फ़िल्म है। कल्पना से परे। निर्देशन, कहानी, संवाद एवं अभिनय बेहतरीन हैं। अस्सी के दशक के टीवी सीरियल 'चीयर्स' की अभिनेत्री रिया पर्लमेन को एक महत्वपूर्ण भूमिका में देखकर अच्छा लगा। सैटरडे नाइट लाइव की अभिनेत्री कैट को देखकर भी ख़ुशी हुई। 


एक पात्र का यह मोनोलॉग बहुत ही प्रभावशाली है:


कितना मुश्किल है एक औरत होना। आप बहुत सुंदर हैं, और बहुत स्मार्ट हैं, फिर भी यह काफ़ी नहीं है। जैसे, हमें हमेशा असाधारण रहना है, लेकिन फिर भी कहीं न कहीं कुछ न कुछ ग़लत है।


आपको पतला होना है, लेकिन बहुत पतला नहीं। और आप कभी नहीं कह सकते कि आप पतला होना चाहते हैं। आपको यह कहना होगा कि आप स्वस्थ रहना चाहते हैं, लेकिन आपको पतला फिर भी होना ही होगा। आपके पास पैसा होना चाहिए, लेकिन आप पैसे नहीं मांग सकते क्योंकि यह बहुत चीप है। आपको बॉस बनना है, लेकिन आप बुरे नहीं बन सकते। आपको नेतृत्व करना है, लेकिन आप दूसरे लोगों के विचारों को कुचल नहीं सकते। आपको माँ बनना अच्छा लगना चाहिए, लेकिन हर समय अपने बच्चों के बारे में बात नहीं करना चाहिए। आपको एक कैरियर बनाना है लेकिन साथ ही हमेशा अन्य लोगों का भी ध्यान रखना है।


आपको पुरुषों के बुरे व्यवहार के लिए ज़िम्मेदार ठहराया जाता है, जो कि पागलपन है, लेकिन यदि आप इसे इंगित करते हैं, तो आप पर शिकायत करने का आरोप लगाया जाता है। आपको पुरुषों के लिए सुंदर रहना होगा, लेकिन इतना सुंदर नहीं कि आप उन्हें बहुत अधिक लुभाएं या कि अन्य महिलाओं को ख़तरा महसूस हो क्योंकि आपको सिस्टरहुड का भी ख़्याल रखना है।


हमेशा ऊपर उठें, अपनी एक जगह बनाए और हमेशा आभारी रहें। लेकिन यह कभी न भूलें कि सिस्टम में धांधली हुई है। इसे स्वीकार करने का एक तरीका खोजें लेकिन साथ ही हमेशा आभारी भी रहें।


आपको कभी बूढ़ा नहीं होना है, कभी असभ्य नहीं होना है, कभी दिखावा नहीं करना है, कभी स्वार्थी नहीं होना है, कभी नीचे नहीं गिरना है, कभी असफल नहीं होना है, कभी डर नहीं दिखाना है, कभी लाइन से बाहर नहीं जाना है। यह बेहद मुश्किल है! यह बहुत विरोधाभासी है और इसके लिए कोई पदक या धन्यवाद भी नहीं मिलता! बल्कि यह पता चलता है कि न केवल आप सब कुछ गलत कर रहे हैं, बल्कि सब कुछ आपकी गलती है।


मैं यह देख-देख कर थक गई हूँ कि मैं स्वयं और बाक़ी सारी औरतें दूसरों को ख़ुश करने के चक्कर में अपनी हालत ख़राब किए जा रही हैं। और यही हाल आज इस गुड़िया का भी हो गया है तो इसे क्या मान लिया जाए?


राहुल उपाध्याय । 16 अगस्त 2023 । सिएटल 


Wednesday, August 9, 2023

धूप-छाँव- एक समीक्षा

धूप-छाँव- पुष्पा सक्सेना जी का नया कहानी संग्रह है। नाम जितना पुराना है, कहानियाँ उतनी ही नई हैं। 


एक ही साँस में पढ़ गया। सारी कहानियाँ रोचक हैं। हर कहानी में पात्रों के संवादों का बाहुल्य है। पुष्पा जी बॉलीवुड की बहुत अच्छी संवाद लेखिका बन सकती हैं। 


जैसे प्रेमचंद ने ग्रामीण पृष्ठभूमि पर कहानियाँ लिखी हैं, इस संग्रह की हर कहानी आधुनिक अमेरिका की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है। इस संग्रह से एन-आर-आई के जीवन को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। 


चूँकि कहानियाँ है तो नाटकीयता भी है। कोई न कोई सनसनीख़ेज़ मोड़ आवश्यक है। धोखा है। फ़रेब है। पब्लिक बूथ से फोन आते हैं। लोग अचानक मिल जाते हैं। संयोग होते रहते हैं। शादी हो जाती है और पति की कम्पनी का नाम तक पता नहीं है। और फिर भी दूसरा व्यक्ति उसे पहचान लेता है। 


चूँकि कहानियाँ संवाद प्रधान हैं, पढ़ने में आसानी हो जाती है। लगता है कमरे में लोग बातें कर रहे हैं। कुछ एक संवाद नहीं सुने तो भी बात समझ आ ही जाती है। 


पात्रों के मन में हो रही उहापोह के बारे में ज़्यादा नहीं लिखा है। शायद वह उपन्यास में सम्भव होता हो। मैंने हंस या सारिका में जितनी कहानियाँ पढ़ीं हैं उनमें इतने संवाद नहीं थे। ये कहानियाँ कई बार नाटक लगने लगती हैं जिनमें संवाद और सिर्फ़ संवाद ही होते हैं पात्रों का परिचय और परिवेश की जानकारी देने के बाद। 


सारी कहानियों में नारी प्रमुख पात्र हैं। सशक्त नहीं तो अबला भी नहीं हैं। 


कुल मिलाकर एक अच्छी पुस्तक है यदि कुछ नया-ताज़ा पढ़ना चाहें तो। 


राहुल उपाध्याय । 9 अगस्त 2023 । सिएटल 





Tuesday, August 8, 2023

रॉकी और रानी की प्रेम कहानी

रॉकी और रानी की प्रेम कहानी- करण जोहर की नवीनतम फिल्म है। काफ़ी निराशा हुई। मैं उनकी टाइट स्क्रिप्ट का हमेशा प्रशंसक रहा हूँ। इस बार उनसे चूक हो गई। 


आमतौर पर हर कहानी प्रेम कहानी होती है। देखना यह होता है कि इस प्रेम कहानी के पात्र कैसे हैं, उनकी पृष्ठभूमि कैसी है, उनके रास्ते में कौनसी बाधाएँ आती हैं। 


सत्यप्रेम की कथा में नए विषय उठाए गए थे। रॉकी और रानी के सामने भी नए मुद्दे हैं। लेकिन जिस तरह से उन्हें स्क्रिप्ट में ढाला गया है वे स्वाभाविक नहीं लगते हैं। जैसे कि कुछ अंग्रेज़ी शब्दों को लेकर हास्य डालने की कोशिश की गई है वे भद्दे लगते हैं। 


रणवीर और आलिया ने अपने अभिनय में कोई कसर नहीं छोड़ी है। दोनों की बहस के दृश्य कमाल के हैं। मुद्दे अच्छे हैं और दर्शकों को अपने-अपने पूर्वाग्रहों की तरफ़ सचेत करते हैं। बताते हैं कि भाई-बहन कैसे भी हो, स्वीकार किए जाते हैं। लेकिन जब दामाद या बहू ढूँढने निकलो तो छाँट कर लिए जाते हैं। 


हर गाने में कम से कम दो हज़ार लोग नाच रहे हैं हीरो-हीरोइन के आगे-पीछे। इतना ज़्यादा तामझाम कि मैं तो दंग ही रह गया। 


जैसा कि करण जोहर अक्सर करते हैं, इसमें भी अपनी चहेती हीरोइन एक गाने में दिखाई दे जाती हैं। काजोल और रानी न होकर, इसमें करीना, जाह्नवी और अनन्या हैं। 


राहुल उपाध्याय । 8 अगस्त 2023 । सिएटल