Friday, August 18, 2023

ग़दर 2 - समीक्षा

अनिल शर्मा की पहली 'ग़दर' फ़िल्म के गाने अच्छे थे। भावनात्मक जुड़ाव था। आनन्द बक्षी के शब्द हमेशा की तरह सरल और दिल को छू गए थे। 


दूसरी 'ग़दर' में भी वही गीत हैं। लिहाज़ा अच्छे लगने ही चाहिए और अच्छे लगे भी। लेकिन कथानक के साथ भावनात्मक जुड़ाव वैसा नहीं बन पाया। सारी सिचुएशन्स कृत्रिम लगीं। ज़बरदस्ती की। इक मोड़ आया, मैं उत्थे दिल छोड़ आया के लिए बेटे को मोटरसाइकिल चाहिए वाली लम्बी चौड़ी कहानी जोड़ डाली। धर्मेन्द्र का भी ज़िक्र ले आए। 


अनिल शर्मा के मुताबिक़ इस कहानी का सारांश ये है कि अभिमन्यु चक्रव्यूह में फँस जाता है और उसके पिता उसकी मदद को आते हैं। न जाने क्यों वे मूल विषय से भटक कर अन्य प्रकरणों में समय गँवा देते हैं। मूल कहानी तो इंटरवल के बाद शुरू होती है। 


अमिशा पटेल की उम्र हो चुकी है फिर भी उन्हें हमेशा ग्लैमर से भरपूर दिखाया है। नई अभिनेत्री सिमरत कौर को कुछ करने का अवसर नहीं मिला। 


गोलियाँ इतनी चलती हैं और कई पात्र धराशायी हो जाते हैं लेकिन तारा, जीते और मुस्कान अभयदान प्राप्त हैं। उन्हें कुछ नहीं होता। 


फिल्म की रील बढ़ाने के चक्कर में कई दौड़-भाग के सीन हैं, टैंक हैं, गोला-बारूद हैं। सब बचकाने जैसे। जैसे घर में न बना कर हम ज़ोमाटो से ऑर्डर कर लोगों का पेट भरने की कोशिश करते हैं, वैसे। जम कर लड़ाई हो रही है और लगता है टॉम एण्ड जैरी का कार्टून चल रहा है। मनीष वधवा और सनी देओल - दोनों ने अभिनय में कोई कसर नहीं छोड़ी लेकिन निर्देशन की कमी से दृश्य प्रभावशाली नहीं बन पाए। कहीं भी तनाव नहीं बना रहा। गाने बाधा डालते रहे। 


जीते की भूमिका में उत्कर्ष के लिए अभिनय के कई अवसर थे पर किसी न किसी कारण वे खरे नहीं उतर पाए। 


आपमें से बहुत लोगों ने शायद देख ही ली होगी। न देखी हो तो न देखें। कश्मीर फ़ाइल्स का थोड़ा बेहतर रूप है। पर है तो पड़ोसी से नफ़रत के ही इर्द-गिर्द। 


राहुल उपाध्याय । 18 अगस्त 2023 । सिएटल 

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