Wednesday, August 9, 2023

धूप-छाँव- एक समीक्षा

धूप-छाँव- पुष्पा सक्सेना जी का नया कहानी संग्रह है। नाम जितना पुराना है, कहानियाँ उतनी ही नई हैं। 


एक ही साँस में पढ़ गया। सारी कहानियाँ रोचक हैं। हर कहानी में पात्रों के संवादों का बाहुल्य है। पुष्पा जी बॉलीवुड की बहुत अच्छी संवाद लेखिका बन सकती हैं। 


जैसे प्रेमचंद ने ग्रामीण पृष्ठभूमि पर कहानियाँ लिखी हैं, इस संग्रह की हर कहानी आधुनिक अमेरिका की पृष्ठभूमि पर लिखी गई है। इस संग्रह से एन-आर-आई के जीवन को अच्छी तरह से समझा जा सकता है। 


चूँकि कहानियाँ है तो नाटकीयता भी है। कोई न कोई सनसनीख़ेज़ मोड़ आवश्यक है। धोखा है। फ़रेब है। पब्लिक बूथ से फोन आते हैं। लोग अचानक मिल जाते हैं। संयोग होते रहते हैं। शादी हो जाती है और पति की कम्पनी का नाम तक पता नहीं है। और फिर भी दूसरा व्यक्ति उसे पहचान लेता है। 


चूँकि कहानियाँ संवाद प्रधान हैं, पढ़ने में आसानी हो जाती है। लगता है कमरे में लोग बातें कर रहे हैं। कुछ एक संवाद नहीं सुने तो भी बात समझ आ ही जाती है। 


पात्रों के मन में हो रही उहापोह के बारे में ज़्यादा नहीं लिखा है। शायद वह उपन्यास में सम्भव होता हो। मैंने हंस या सारिका में जितनी कहानियाँ पढ़ीं हैं उनमें इतने संवाद नहीं थे। ये कहानियाँ कई बार नाटक लगने लगती हैं जिनमें संवाद और सिर्फ़ संवाद ही होते हैं पात्रों का परिचय और परिवेश की जानकारी देने के बाद। 


सारी कहानियों में नारी प्रमुख पात्र हैं। सशक्त नहीं तो अबला भी नहीं हैं। 


कुल मिलाकर एक अच्छी पुस्तक है यदि कुछ नया-ताज़ा पढ़ना चाहें तो। 


राहुल उपाध्याय । 9 अगस्त 2023 । सिएटल 





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