Friday, May 20, 2022

पार्किंग

माइक्रोसॉफ़्ट का रेडमण्ड कैम्पस काफ़ी बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है। कई बिल्डिंग्स हैं। एक-दो ही हैं जो छ: मंज़िला हैं। बाक़ी सब चार मंज़िला। 


कई बार पार्किंग ढूँढने में काफ़ी वक़्त बर्बाद होता है। इसलिए अब ऐसी कई स्वचालित सुविधाएँ हैं जिनसे समय बच सकता है। किसी पार्किंग लॉट में घुसने से पहले ही पता चल जाता है कि अंदर क्या स्थिति है। अंदर जाने पर हर दिशा/फ़्लोर की स्थिति भी पता चल जाती है। 


इस फ़ोटो से पता चलता है कि इस बिल्डिंग में दिव्यांगों की पार्किंग की सुविधा भी है और उसकी क्या स्थिति है। ए-डी-ए - यानी अमेरिकन्स विथ डिसएबिलिटी एक्ट। यह क़ानून 1990 में पारित हुआ था। 


इस वक्त 25 दिव्यांग पार्किंग स्थल ख़ाली हैं। 


कोई इसे देख कर सोच सकता है कि जब एक बिल्डिंग में इतने दिव्यांग कर्मचारी हैं तो अमेरिका में कितने दिव्यांग होंगे? और यह भी कि अमेरिका का दाना-पानी ठीक नहीं है। दिव्यांग की संख्या भारत से ज़्यादा है।


मेरा यह मानना है कि अमेरिका में दिव्यांग घर में क़ैद नहीं हैं। वे समाज में सक्रिय हैं। अर्थव्यवस्था में उनका भी हाथ है। 


हर बस में सुविधा है कि व्हीलचैयर अपने आप बस में चढ़ जाए। जैसे हम और आप चढ़ते हैं वैसे ही वे भी व्हीलचैयर पर बैठे-बैठे चढ़ जाते हैं। 


हर सार्वजनिक स्थल पर शौचालय ऐसे बनाए गए हैं कि व्हीलचैयर वाले भी आराम से उनका इस्तेमाल कर सकते हैं। 


किसी भी बिल्डिंग या रेस्टोरेन्ट का परमिट तब तक पारित नहीं होता है जब तक कि उसमें दिव्यांगों की सुविधाओं का ख़्याल न रखा गया हो। दो पायदान वाली सीढ़ी भी हो, तो व्हीलचैयर के लिए रैम्प बनाना आवश्यक है। 


माइक्रोसॉफ़्ट में कोई दिव्यांग विभिन्न प्रकार के काम करते हैं। माइक्रोसॉफ़्ट का मानना है कि पूरे विश्व में कई दिव्यांग हैं। कुछ नज़र आते हैं, कुछ नहीं। 


इसलिए माइक्रोसॉफ़्ट अपने हर प्रोडक्ट में कोशिश करती है कि वह समाज के हर तबके को आसानी से उपलब्ध हो। 


आप देख नहीं सकते तो कम्प्यूटर आपको बोल कर सब बता सकता है। 


कोई फ़ोटो है तो उसका भी विवरण दे सकता है। 


अमेरिका के सिनेमाघरों में हेडसेट मिलते हैं जिनके ज़रिए नेत्रहीन भी फ़िल्म 'देख' सकते हैं। जैसे हम तमिल की फ़िल्म सबटाइटल पढ़ कर समझ सकते हैं। वैसे ही वे विवरण सुन कर दृश्य समझ लेते हैं। संवाद तो वे स्वयं ही सुन लेते हैं। वैसे ही जैसे हम क्रिकेट की कमेंट्री सुना करते थे। 


राहुल उपाध्याय । 20 मई 2022 । सिएटल 


स्मार्ट लॉक

मैं जो अपने घर ताला नहीं लगाता, आज से असहाय हो गया हूँ। 


मेरे अपार्टमेंट वालों ने स्मार्ट लॉक लगा दिया है। यह तकनीक आज की नहीं, क़रीब पाँच साल पुरानी है। आप अपने फ़ोन से दुनिया के किसी भी कोने से घर का ताला लगा सकते हैं एवं खोल सकते हैं। 


यह एक सुविधा है। मेरे लिए असुविधा। 


कोई भी व्यक्ति दरवाज़े पर एक बटन दबाकर दरवाज़े पर ताला लगा सकता है। मैं यदि घर के अंदर हूँ तो खोल सकता हूँ। 


बाहर हुआ तो घर में घुसना मेरे लिए दुष्कर है। या तो फ़ोन हो, जिसमें ऐप हो, घर का वाईफ़ाई काम कर रहा हो, तो खुल सकता है। या फिर मुझे पासकोड याद हो। चाबी किसी काम की नहीं। 


कितने पासकोड याद रखूँ मैं?


एटीएम का? लेपटॉप का? दफ़्तर का? फ़ोन का? 


और अब अपने ही घर का। 


पहले जिस व्यक्ति को घर की एक्सट्रा चाबी दी जाती थी वह ख़ास होता था। मुसीबत के वक्त काम आता था। अब उसकी भी अहमियत गई। 


रतलाम जैसे शहरों में यह "सुविधा" अभी नहीं है। लगता है कुछ ही दिनों में वहाँ भी यह सुविधा आम हो जाएगी। 


बिना फ़ोन के, बिना पासकोड के जीना अब असम्भव लगने लगा है। 


हम जैसे लोगों का क्या होगा जिनकी याददाश्त कमजोर होती जा रही है। कब तक इतने पासकोड याद रख पाएँगे?


क्या लाए थे, क्या ले जाएँगे? एक दिन यूँही किन्हीं पासकोड के पीछे सब छोड़ जाएँगे। 


मेरी आधी-अधूरी रचनाएँ। मेरे फ़ोटो। मेरे डी-एम। मेरे संदेश। 


कोई भी उन पर उँगलियाँ फेर मुझे जानने-समझने की कोशिश न कर सकेगा। 


मेरे राज़ न मेरे साथ जल के राख होंगे, न किसी के हाथ लगेंगे, त्रिशंकु से अधर में लटके रहेंगे। 


राहुल उपाध्याय । 20 मई 2022 । सिएटल 

Thursday, May 5, 2022

गर्भपात

अमेरिका में कुछ ही मुद्दे ऐसे हैं जिन पर ज़बरदस्त बहस छिड़ती है। ये मुद्दे लोगों को विभाजित करते हैं, और इतने साफ़ हैं कि किसी को भी समझ आ जाए। 


उनमें से एक है गर्भपात। गर्भपात अमेरिका में इसलिए नहीं होता कि परिवार वालों को लड़की नहीं लड़का चाहिए। 


यहाँ परिवार वालों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि उनकी संतान विवाह करती है या नहीं। बाल-बच्चे करती है या नहीं। 


गर्भ निरोधक तमाम सुविधाएँ हैं जिनसे अव्वल तो अनचाहा गर्भ होता नहीं है। टीन एज की उम्र से ही सब जागरूक रहते हैं। या तो बर्थ कंट्रोल पिल्स, या कंडोम, या आई-यू-डी से काम चल जाता है। 


किन्ही अनवांछित कारणों से कई बार अनावश्यक गर्भ हो जाता है। उस स्थिति में यह सिर्फ़ माँ का निर्णय होता है कि वह गर्भ गिराए या नहीं। किसी की भी अनुमति आवश्यक नहीं है। 


क़रीब पचास साल पहले बने एक क़ानून के तहत यह सम्भव हुआ। यह एक मुक़दमे के फ़ैसले के तहत हुआ। 


अब आशंका यह जताई जा रही है कि यह फ़ैसला पलट दिया जाएगा। 


क्या अब स्थिति पचास साल पहले जैसी हो जाएगी? जब औरतें हैंगर से गर्भपात करती थी और अपनी जान जोखिम में डालती थी? 


शायद नहीं। ऐसा अनुमान है कि हर राज्य की निर्वाचित सरकार जैसा चाहे कर सकती है। गर्भपात को वैध या अवैध ठहरा सकती है। 


कुछ राज्य मानते हैं कि गर्भपात ग़ैर क़ानूनी है। कुछ मानते हैं कि यह माँ का हक है वो जो चाहे सो करे। 


मान लें कि वाशिंगटन राज्य में गर्भपात वैध है। और सीमापार राज्य आयडाहो में अवैध। तब यदि आयडाहो की महिला वाशिंगटन आ कर गर्भ गिराए तो भी उसे आयडाहो की सरकार अवैध करार देगी और उसे प्रताड़ित करेगी। 


अभी सिर्फ़ अटकलें लगाई जा रही हैं। आधिकारिक निर्णय आया नहीं है। कहीं से कोई दस्तावेज लीक हो गया है। लगता है यह निर्णय फ़रवरी में लिया गया था। जिसे अंतिम प्रारूप अभी तक नहीं दिया गया है। 


20 साल पहले जब भी कोई चुनाव होता था, हर उम्मीदवार से यह प्रश्न पूछा जाता था कि आप किसके पक्ष में हैं? प्रायः सब माँ का ही पक्ष लेते थे। 


सुप्रीम कोर्ट के सारे जज आजीवन अवधि के लिए नियुक्त किए जाते हैं। वे तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं। ज़्यादातर रिपब्लिकन पार्टी वालों का मत होता है कि गर्भपात भ्रूण हत्या है और किसी को भी हत्या का अधिकार नहीं दिया जा सकता। राज्य का दायित्व है कि वह हर जान की रक्षा करे। भले ही उसमें माँ को तकलीफ़ उठानी पड़े। बच्चा होने के बाद वो उसे किसी को गोद दे सकती है। लेकिन बच्चे को जन्म तो देना ही पड़ेगा। 


हर मनोनीत जज से नियुक्ति से पहले उनका मत पूछा जाता है। सब हाँ में हाँ मिलाते हैं और माँ का हक सर्वोपरि बताते हैं। 


इन्हीं लोगों द्वारा अब फ़ैसला बदल देना लोगों को एक धोखा लग रहा है। 


वर्तमान राष्ट्रपति माँ के हक़ में हैं। वर्तमान राष्ट्रीय सरकार माँ के हक़ में है। 


अगले कुछ महीनों में स्थिति साफ़ होगी। 


राहुल उपाध्याय । 5 मई 2022 । सिएटल