माइक्रोसॉफ़्ट का रेडमण्ड कैम्पस काफ़ी बड़े क्षेत्रफल में फैला हुआ है। कई बिल्डिंग्स हैं। एक-दो ही हैं जो छ: मंज़िला हैं। बाक़ी सब चार मंज़िला।
कई बार पार्किंग ढूँढने में काफ़ी वक़्त बर्बाद होता है। इसलिए अब ऐसी कई स्वचालित सुविधाएँ हैं जिनसे समय बच सकता है। किसी पार्किंग लॉट में घुसने से पहले ही पता चल जाता है कि अंदर क्या स्थिति है। अंदर जाने पर हर दिशा/फ़्लोर की स्थिति भी पता चल जाती है।
इस फ़ोटो से पता चलता है कि इस बिल्डिंग में दिव्यांगों की पार्किंग की सुविधा भी है और उसकी क्या स्थिति है। ए-डी-ए - यानी अमेरिकन्स विथ डिसएबिलिटी एक्ट। यह क़ानून 1990 में पारित हुआ था।
इस वक्त 25 दिव्यांग पार्किंग स्थल ख़ाली हैं।
कोई इसे देख कर सोच सकता है कि जब एक बिल्डिंग में इतने दिव्यांग कर्मचारी हैं तो अमेरिका में कितने दिव्यांग होंगे? और यह भी कि अमेरिका का दाना-पानी ठीक नहीं है। दिव्यांग की संख्या भारत से ज़्यादा है।
मेरा यह मानना है कि अमेरिका में दिव्यांग घर में क़ैद नहीं हैं। वे समाज में सक्रिय हैं। अर्थव्यवस्था में उनका भी हाथ है।
हर बस में सुविधा है कि व्हीलचैयर अपने आप बस में चढ़ जाए। जैसे हम और आप चढ़ते हैं वैसे ही वे भी व्हीलचैयर पर बैठे-बैठे चढ़ जाते हैं।
हर सार्वजनिक स्थल पर शौचालय ऐसे बनाए गए हैं कि व्हीलचैयर वाले भी आराम से उनका इस्तेमाल कर सकते हैं।
किसी भी बिल्डिंग या रेस्टोरेन्ट का परमिट तब तक पारित नहीं होता है जब तक कि उसमें दिव्यांगों की सुविधाओं का ख़्याल न रखा गया हो। दो पायदान वाली सीढ़ी भी हो, तो व्हीलचैयर के लिए रैम्प बनाना आवश्यक है।
माइक्रोसॉफ़्ट में कोई दिव्यांग विभिन्न प्रकार के काम करते हैं। माइक्रोसॉफ़्ट का मानना है कि पूरे विश्व में कई दिव्यांग हैं। कुछ नज़र आते हैं, कुछ नहीं।
इसलिए माइक्रोसॉफ़्ट अपने हर प्रोडक्ट में कोशिश करती है कि वह समाज के हर तबके को आसानी से उपलब्ध हो।
आप देख नहीं सकते तो कम्प्यूटर आपको बोल कर सब बता सकता है।
कोई फ़ोटो है तो उसका भी विवरण दे सकता है।
अमेरिका के सिनेमाघरों में हेडसेट मिलते हैं जिनके ज़रिए नेत्रहीन भी फ़िल्म 'देख' सकते हैं। जैसे हम तमिल की फ़िल्म सबटाइटल पढ़ कर समझ सकते हैं। वैसे ही वे विवरण सुन कर दृश्य समझ लेते हैं। संवाद तो वे स्वयं ही सुन लेते हैं। वैसे ही जैसे हम क्रिकेट की कमेंट्री सुना करते थे।
राहुल उपाध्याय । 20 मई 2022 । सिएटल