Friday, May 20, 2022

स्मार्ट लॉक

मैं जो अपने घर ताला नहीं लगाता, आज से असहाय हो गया हूँ। 


मेरे अपार्टमेंट वालों ने स्मार्ट लॉक लगा दिया है। यह तकनीक आज की नहीं, क़रीब पाँच साल पुरानी है। आप अपने फ़ोन से दुनिया के किसी भी कोने से घर का ताला लगा सकते हैं एवं खोल सकते हैं। 


यह एक सुविधा है। मेरे लिए असुविधा। 


कोई भी व्यक्ति दरवाज़े पर एक बटन दबाकर दरवाज़े पर ताला लगा सकता है। मैं यदि घर के अंदर हूँ तो खोल सकता हूँ। 


बाहर हुआ तो घर में घुसना मेरे लिए दुष्कर है। या तो फ़ोन हो, जिसमें ऐप हो, घर का वाईफ़ाई काम कर रहा हो, तो खुल सकता है। या फिर मुझे पासकोड याद हो। चाबी किसी काम की नहीं। 


कितने पासकोड याद रखूँ मैं?


एटीएम का? लेपटॉप का? दफ़्तर का? फ़ोन का? 


और अब अपने ही घर का। 


पहले जिस व्यक्ति को घर की एक्सट्रा चाबी दी जाती थी वह ख़ास होता था। मुसीबत के वक्त काम आता था। अब उसकी भी अहमियत गई। 


रतलाम जैसे शहरों में यह "सुविधा" अभी नहीं है। लगता है कुछ ही दिनों में वहाँ भी यह सुविधा आम हो जाएगी। 


बिना फ़ोन के, बिना पासकोड के जीना अब असम्भव लगने लगा है। 


हम जैसे लोगों का क्या होगा जिनकी याददाश्त कमजोर होती जा रही है। कब तक इतने पासकोड याद रख पाएँगे?


क्या लाए थे, क्या ले जाएँगे? एक दिन यूँही किन्हीं पासकोड के पीछे सब छोड़ जाएँगे। 


मेरी आधी-अधूरी रचनाएँ। मेरे फ़ोटो। मेरे डी-एम। मेरे संदेश। 


कोई भी उन पर उँगलियाँ फेर मुझे जानने-समझने की कोशिश न कर सकेगा। 


मेरे राज़ न मेरे साथ जल के राख होंगे, न किसी के हाथ लगेंगे, त्रिशंकु से अधर में लटके रहेंगे। 


राहुल उपाध्याय । 20 मई 2022 । सिएटल 

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