अमेरिका में कुछ ही मुद्दे ऐसे हैं जिन पर ज़बरदस्त बहस छिड़ती है। ये मुद्दे लोगों को विभाजित करते हैं, और इतने साफ़ हैं कि किसी को भी समझ आ जाए।
उनमें से एक है गर्भपात। गर्भपात अमेरिका में इसलिए नहीं होता कि परिवार वालों को लड़की नहीं लड़का चाहिए।
यहाँ परिवार वालों को कोई फ़र्क़ नहीं पड़ता है कि उनकी संतान विवाह करती है या नहीं। बाल-बच्चे करती है या नहीं।
गर्भ निरोधक तमाम सुविधाएँ हैं जिनसे अव्वल तो अनचाहा गर्भ होता नहीं है। टीन एज की उम्र से ही सब जागरूक रहते हैं। या तो बर्थ कंट्रोल पिल्स, या कंडोम, या आई-यू-डी से काम चल जाता है।
किन्ही अनवांछित कारणों से कई बार अनावश्यक गर्भ हो जाता है। उस स्थिति में यह सिर्फ़ माँ का निर्णय होता है कि वह गर्भ गिराए या नहीं। किसी की भी अनुमति आवश्यक नहीं है।
क़रीब पचास साल पहले बने एक क़ानून के तहत यह सम्भव हुआ। यह एक मुक़दमे के फ़ैसले के तहत हुआ।
अब आशंका यह जताई जा रही है कि यह फ़ैसला पलट दिया जाएगा।
क्या अब स्थिति पचास साल पहले जैसी हो जाएगी? जब औरतें हैंगर से गर्भपात करती थी और अपनी जान जोखिम में डालती थी?
शायद नहीं। ऐसा अनुमान है कि हर राज्य की निर्वाचित सरकार जैसा चाहे कर सकती है। गर्भपात को वैध या अवैध ठहरा सकती है।
कुछ राज्य मानते हैं कि गर्भपात ग़ैर क़ानूनी है। कुछ मानते हैं कि यह माँ का हक है वो जो चाहे सो करे।
मान लें कि वाशिंगटन राज्य में गर्भपात वैध है। और सीमापार राज्य आयडाहो में अवैध। तब यदि आयडाहो की महिला वाशिंगटन आ कर गर्भ गिराए तो भी उसे आयडाहो की सरकार अवैध करार देगी और उसे प्रताड़ित करेगी।
अभी सिर्फ़ अटकलें लगाई जा रही हैं। आधिकारिक निर्णय आया नहीं है। कहीं से कोई दस्तावेज लीक हो गया है। लगता है यह निर्णय फ़रवरी में लिया गया था। जिसे अंतिम प्रारूप अभी तक नहीं दिया गया है।
20 साल पहले जब भी कोई चुनाव होता था, हर उम्मीदवार से यह प्रश्न पूछा जाता था कि आप किसके पक्ष में हैं? प्रायः सब माँ का ही पक्ष लेते थे।
सुप्रीम कोर्ट के सारे जज आजीवन अवधि के लिए नियुक्त किए जाते हैं। वे तत्कालीन राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं। ज़्यादातर रिपब्लिकन पार्टी वालों का मत होता है कि गर्भपात भ्रूण हत्या है और किसी को भी हत्या का अधिकार नहीं दिया जा सकता। राज्य का दायित्व है कि वह हर जान की रक्षा करे। भले ही उसमें माँ को तकलीफ़ उठानी पड़े। बच्चा होने के बाद वो उसे किसी को गोद दे सकती है। लेकिन बच्चे को जन्म तो देना ही पड़ेगा।
हर मनोनीत जज से नियुक्ति से पहले उनका मत पूछा जाता है। सब हाँ में हाँ मिलाते हैं और माँ का हक सर्वोपरि बताते हैं।
इन्हीं लोगों द्वारा अब फ़ैसला बदल देना लोगों को एक धोखा लग रहा है।
वर्तमान राष्ट्रपति माँ के हक़ में हैं। वर्तमान राष्ट्रीय सरकार माँ के हक़ में है।
अगले कुछ महीनों में स्थिति साफ़ होगी।
राहुल उपाध्याय । 5 मई 2022 । सिएटल
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