Tuesday, August 22, 2023

गुलज़ार

अभी 18 अगस्त को गुलज़ार 89 वर्ष के हुए। तब से मैं उनके 89 गीतों की सूची बना रहा था। चाहता तो किसी वेबसाइट से यह बना सकता था। लेकिन मैं वे गाने चाहता था जो कि मेरे ज़हन में हो। सदा रहे हो। 


आज बन गई। कुछ प्रचलित गाने जो आपको भी पसन्द हों और छूट गए हो तो बताइएगा। ग्यारह साल बाद शतक में काम आएँगे। 



अब के ना सावन बरसे

आज बिछड़े हैं

आजकल पाँव ज़मीं पर नहीं पड़ते मेरे

आनेवाला पल जानेवाला है

आपकी आँखों में कुछ महके हुए से

इस मोड़ से जाते हैं

एक अकेला इस शहर में

एक दिन सपने में देखा सपना

एक बात कहूँ 'गर मानो तुम

एक ही ख़्वाब कई बार देखा है मैंने

ऐ अजनबी तू भी कभी आवाज़ दे कहीं से

ऐ ज़िंदगी गले लगा ले

ऐ मेरे प्यारे वतन

ऐ वतन-वतन मेरे आबाद रहे तू

ऐ हैरत-ए-आशकी

ओ माँझी रे

ओ साथी रे

ओंकारा, सबसे बड़े लड़ैया रे 

कजरारे

कतरा-कतरा ज़िन्दगी

केसरिया बालमा

कोई नहीं है कहीं

कोई होता जिसको अपना

ख़ामोश सा अफ़साना

ख़ाली हाथ शाम आई

गंगा आए कहाँ से

गुलमोहर 'गर हमारा नाम होता

घर जाएगी, तर जाएगी

चप्पा-चप्पा चरखा चले

चल छईया

चाँद चुरा के लाया हूँ

छई छपा छई

छड़ी रे छड़ी कैसी गले में पड़ी

छोड़ आए हम वो गलियाँ

जब भी ये दिल उदास होता है

जाने क्या सोच कर नहीं गुज़रा

ज़िन्दगी मेरे घर आना

ज़े-हाल-ए-मिस्कीं

तुझसे नाराज़ नहीं ज़िन्दगी

तुम आ गए हो नूर आ गया है

तुम पुकार लो, तुम्हारा इंतज़ार है

तुमसे मिला था प्यार कुछ अच्छे नसीब थे

तुम्हें हो न हो, मुझको तो इतना यक़ीं है

तेरे बिना ज़िन्दगी से कोई शिकवा

तेरे बिना जिया जाए ना

तेरे बिना बेस्वादी रतिया

थोड़ा है थोड़े की ज़रूरत है

थोड़ी सी ज़मीं, थोड़ा आसमाँ

दिल ढूँढता है फिर वही

दिल तो बच्चा है जी

दिल से रे

दिल हूँ हूँ करे

दो दीवाने शहर में

दो नैना, इक कहानी

दो नैनों में आँसू भरे हैं

नाम गुम जाएगा

फिर वही रात है

फिर से आए बदरा

बँटी और बबली

बीड़ी जलई ले

बीती ना बिताई रैना

बेचारा दिल क्या करे

मुझे जाँ न कहो मेरी जान

मुड़-मुड़ के न देखो ओ दिलबरो

मुसाफ़िर हूँ यारो

मेरा कुछ सामान पड़ा है

मैं एक सदी से बैठी हूँ

मैंने तेरे लिए ही सात रंग के सपने चुने

मोरा गोरा अंग लई ले

मौसम मौसम लवली मौसम

यारा सिली-सिली रात

ये जीना है अंगूर का दाना

ये साये हैं, ये दुनिया है

राह पे चलते हैं

रूके-रूके से कदम रूक के बार-बार चले

रोज़-रोज़ आँखों तले

लकड़ी की काठी

वो शाम कुछ अजीब थी

सारे के सारे गामा को लेकर

सिली हवा छू गई

सुन सुन दीदी तेरे लिए एक रिश्ता आया है

सुरमई अँखियों में नन्हा-मुन्ना

सुरमई शाम इस तरह आए

हज़ार राहें मुड़ के देखीं

हज़ूर इस कदर भी ना इतरा के चलिए

हम को मन की शक्ति देना

हमने देखी हैं उन आँखों की महकती

हमें रास्तों की ज़रूरत नहीं है

हवाओं पे लिख दो


राहुल उपाध्याय । 22 अगस्त 2023 । सिएटल 

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