Saturday, October 22, 2022

दासाब - ज्योति का आलेख

"""""""""""दासाब की कहानी""""""""                       

—- ज्योति नारायण त्रिवेदी 


हमारे दादाजी को हम सब दासाब  कहते थे। दासाब  का पूरा नाम लक्ष्मीनारायण था। उनका जन्म 23 अप्रैल 1910 को सैलाना में हुआ था। वे केवल पांच वर्ष के थे तब उनके पिता शालीग्राम जी का निधन हो गया।  उनकी माता का नाम रामीबाई था। रामी बाई ने अभावों के बीच अपनी दोनों संतानों को पालकर बड़ा किया। 


दासाब के बड़े भाई, मेरे बड़े दादाजी, रामनारायण जी गोद ले लिए गए सैलाना के ही निवासी उनके निःसंतान मामा द्वारा। दासाब ने मेट्रिक तक की शिक्षा प्राप्त कर केवल 15 वर्ष की उम्र में ही मिठाई की दुकान खोल ली थी।  उनका विवाह 15 वर्ष की उम्र में हमारी 9 वर्षीय दादी श्यामा बाई से हुआ। 


रामानारायण जी पढ़ने म़े काफी होशियार थे। सैलाना रियासत के तत्कालीन  दीवान की नजर उन पर पड़ी। चूँकि उनके मामा पैसे वाले थे उन्हें समझाकर उच्च शिक्षा के लिए बाहर भेजने के लिए प्रेरित किया। उन्होंने इस प्रकार अलीगढ से एल एल बी की और पवई में मजिस्ट्रेट हो गये। बाद में भारत की आज़ादी के लिए चले आंदोलन में भाग लेने के लिये नौकरी छोड दी। और जेल भी गये। दासाब  को भी उन्होने देश में चल रहे आजादी के आंदोलन से अवगत कराया और हलवाई का काम छोडकर निजी स्कूल खोलने, पत्रकारिता के क्षेत्र में आने और आजादी के आंदोलन में भाग लेने के लिये प्रेरित किया। दासाब ने उनकी सलाह मानकर सन् 1936 में सैलाना में त्रिवेदी प्राथमिक विद्यालय के नाम से स्कूल स्थापित किया। तथा सन् 1940 के आसपास पत्रकारिता के क्षेत्र में कदम रखा। वे पूरे आदिवासी अंचल के पहले निजी स्कूल शिक्षक और पत्रकार बने। सबसे पहले टाईम्स आफ इ़डिया ग्रुप सहित बनारस से निकलने वाले हिंदी अखबार के पत्रकार बने। बाद में सन् 1945 में इंदौर समाचार और सन् 1947 में नयी दुनिया अखबार से जुडे। उस समय सैलाना और रतलाम के बीच केवल एक बस चलती थी। अगर उस बस में अखबार नहीं आते तो वे पैदल ही सैलाना से रतलाम जाते और अखबार लाकर वितरीत करते। आज भी दासाब  की तीसरी पीढ़ी के रूप में सैलाना में उनके पोते, मेरे बड़े भाई, वीरेन्द्र त्रिवेदी नयी दुनिया के पत्रकार हैं। सन् 1936 से संचालित त्रिवेदी स्कूल को 30 जून 2019 तक तीन पीढ़ियों ने संचालित किया। लगभग 83 वर्ष के सफर म़े त्रिवेदी स्कूल से दिग्गज प्रतिभाएं पढकर निकलीं। जिसम़े से प्रमुख नाम नामी-गिरामी पत्रकार शाहिद मिर्जा, प्रकाश उपाध्याय, आरिफ बेग, प्रथम श्रेणी प्राचार्य जयंतीलाल जी मेहता,  प्रसिद्ब अभिभाषक नरेंदसिह पुरोहित आदि प्रमुख हैं। दासाब ने स्कूल को मिशन के रुप में चलाया। सैलाना जैसी आदिवासी तहसील में, जहां निरक्षरता प्रतिशत सबसे ज्यादा था, अपने विद्यालय के माध्यम से साक्षरता का प्रकाश फैलाया तथा समाचारपत्रों के विक्रेता के रुप में लोगो में पढने की रुचि भी पैदा की।


रामनारायण जी ने सैलाना में प्रजामंडल की स्थापना की। दासाब उसके सक्रिय सदस्य थे। मध्यभारत में प्रजामंडल के पदाधिकारियों और सदस्यों ने महात्मा गांधी के नेतृत्व में चल रहे आजादी के आंदोलन में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। रतलाम के प्रसिद्ध इतिहासकार और विश्व हिंदू परिषद के पूर्व अध्यक्ष स्वर्गीय भंवरलाल भाटी की रतलाम जिले  के इतिहास पर लिखी गयी पुस्तक में इसका उल्लेख है तथा उस पुस्तक में दासाब और बडे दादाजी का फोटो भी है। 


दासाब ने 9 अगस्त 1942 को भारत छोडो आंदोलन में अपने विद्यालय के विद्यार्थियों के साथ प्रदर्शन किया। जिसका  फोटो आज भी हमारे पास है। आजादी के बाद दासाब लंबे समय तक नगर कांग्रेस के अध्यक्ष रहे। दासाब नगरपालिका सैलाना के पार्षद भी रहे। सत्तर के दशक में राजनीति को अलविदा कर समाजसेवा के क्षेत्र में कदम रखा। 


गर्मियों में आदिवासियों की रोजी-रोटी के संकट को देखते हुए दासाब ने ग्रीष्मकाल में आदिवासियो को वर्षो तक रोटी और गुड बांटा। इस कार्य में आर्थिक मदद उनके सेठ मित्रों ने की।


सैलाना की शमशान भूमि को सुधारने का बीड़ा भी उन्होंने उठाया और अकेले के दम पर जिले के उत्कृष्ट शमशानों की श्रेणी मे खड़ा कर दिया तथा शमशान का नाम शांतिवन कर दिया।  सनाढ्य समाज मंदिर ट्रस्ट के भी वे वर्षो तक अध्यक्ष रहे। 


उन दिनों सैलाना में टेंट हाऊस नही थे। सैलाना दरबार ने टेंट की साम्रगी उपलब्ध कराई। दासाब ने लोगो को विवाह आदि कार्य के लिये बहुत ही सस्ते दर पर टेंट साम्रागी उपलब्ध कराई तथा प्रतिमाह उसका हिसाब  दरबार को दिया तथा इस कार्य के लिये कोई पारिश्रमिक नहीं लिया। 


दासाब ने गांधीजी के आव्हान पर सूत भी काता।  उन्होंने अपना कफन भी सन 1942 में ही चरखे पर कातकर रखा। उनके निधन पर उनके द्वारा काते गये कफन को ही ओढ़ाया गया।  


उनका निधन 28 अक्टूबर 1989 को रुपचौदस के दिन हुआ तथा अंतिम संस्कार अगले दिन दीपावली को हुआ। दीपावली का त्यौहार होने के बाद भी बाजार उनकी  अंतिमयात्रा निकलने तक के लिए बंद रहा। उनके पार्थिव देह को तिरंगे में ले जाया गया था। शांतिवन पर वक्ताओं ने सैलाना के कीर्ति स्तंभ, कैक्टस गार्डन, 'केदारेश्वर और त्रिवेदी स्कुल को सैलाना की पहचान बताया। 


आज दासाब की 33 वीं पुण्य तिथि के अवसर पर उनकी स्मृति को नमन करते हुए सम्पूर्ण परिवार श्रद्धांजलि अर्पित करता है !

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