ःःएक थी बाईःःःः
हमारी दादी को हम सब बाई कहते थे। उनका नाम श्यामाबाई था। बाई का जन्म सन् 1915 के आसपास हुआ था। उनके पुरखे मूलतः भानपुरा जिला मंदसौर के निवासी थे। बाद मे उनके पिता रतलाम आ गये थे। बाई की एक बहन थी जो कि उनसे करीब पन्द्रह बरस बड़ी थीं और नालारोड सैलाना में रहती थीं। उनका नाम गोबिंदा था। हम सब उन्हें बा कहते थे। बाई के एक भाई थे जो उनसे करीब सात-आठ वर्ष बड़े थे। उनका नाम गोवर्धन था। वे धामनोद वाले काकासा के पिताजी थे।
बाई की माताजी का बचपन में ही देहांत हो गया था। उनके पिता और बड़ी बहन ने उनकी परवरिश की। बाई का विवाह केवल नौ बरस की उम्र में ही हमारे दादाजी, जिन्हें हम दासाब कहते थे, के साथ हुआ। बाई के पाँच संतान हुईं। एक बेटा और चार बेटियां।
बाई की दिनचर्या बहुत ही व्यवस्थित थी। उन्होंने जीवन भर एक ही समय शाम को खाना खाया। वे हमेशा तांबे के लोटे में पानी पीती थीं। बाई बहुत ही धार्मिक प्रवृत्ति की महिला.थीं। वे सुबह चार बजे उठतीं और ठंडे पानी से नहाकर कथा पढ़तीं। कथा सुनने पास में रहने वाली राधा माँ और उनकी माँ भी आतीं। सात बजे कथा से निवृत्त होकर दासाब के नहाने पूजा और चायपानी का इंतजाम करतीं। प्रातः साढ़े सात बजे अखबार आते। अखबार वितरण की तैयारी में दासाब का हाथ बँटातीं। प्रातः नौ बजे फिर दूसरी बार का स्नान और पुजापाठ। ग्यारह बजे से चार बजे तक स्कूल संचालन में दासाब की मदद करती थीं।
बाई केवल पाँचवीं तक पढी थीं। लेकिन हिसाब किताब रखने में बहुत होशियार थीं। स्कूल और अख़बार के पैसो का व्यवस्थित लेखा रखना और दासाब के मांगने पर देना। बड़े परिवार में सबकी आवश्यकता का ध्यान रखना।
घर में हम सब भाई बहन के अलावा बुआजी के बच्चे और काकासा और उनके बच्चे भी रहते थे। वे सभी को एक समान रखती थीं। किसी के साथ भेदभाव नही किया। काकासा को पढ़ाने से लेकर, नौकरी और विवाह, सब बाई की वजह से ही हुआ।
दासाब गुस्से के बहुत तेज थे। पर बाई हमेशा शांत रहती थीं। मोहल्ले परिवार के लोग उनसे सलाह मशविरा करने आते थे। कभी भी किसी को गलत सलाह नही दी। प्रकाश मामासा भी फुर्सत में घंटो तक बाई से सलाह मशविरा करते थे। बाई बहुत आगे का सोचती थी। निर्णायक मौके पर बाई के द्वारा लिये गये सही निर्णय आज भी परिवार को सुकुन दे रहे हैं।
बाई की खास सहेलियाँ हैं - कोटड़ा ठाकुरसा की पत्नी, सेठ प्यारचंदजी रांका की पत्नी, हमारी नानीजी, पासवाले काकीसा, उनकी बड़ी बहन बा, और राधा माँ। पासवाले काकीसा तो हर रविवार को नहाने के बाद सिर में बोर गुंथवाने बाई के पास आते थे। वे बहुत ही सामाजिक थीं। परिवार समाज परिचितों के सुख-दुख में बराबर शामिल होती थीं।
बाई सबसे अधिक प्यार अपनी बीमार बेटी प्रभा बेन से करती थीं। उन्हें अधिकांश समय सैलाना में ही रखती थीं। प्रभाबेन के निधन के बाद वे पूरी तरह से टूट गईं और केवल 67 वर्ष की उम्र मे ही 19 अक्टूबर 1982 को उनका देहावसान हो गया।
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