Wednesday, February 1, 2023

ग्राउंडहॉग डे

अमेरिका में सब कुछ विज्ञान के आधार पर ही चलता है। कोई भी काम मुहूर्त देख कर नहीं किया जाता। नारियल नहीं फोड़े जाते। नई कार के आगे नींबू-मिर्च नहीं लगाए जाते। कार के डेशबोर्ड पर न गणेश होते हैं, न शिव, न कृष्ण, न साईबाबा। 


लेकिन तमाशा किसे नहीं अच्छा लगता है। 


हर साल, 2 फ़रवरी के दिन सारे टीवी चैनल और रेडियो ग्राउंडहॉग डे की बात करना नहीं भूलते हैं। इस दिन पेन्सिलवेनिया राज्य के छोटे से शहर में हज़ारों लोग एकत्रित होते हैं यह जानने के लिए कि ठंड ख़त्म होने में कितने हफ्ते बाक़ी रह गए हैं। वह कैसे पता चलता है? वह ऐसे कि एक ग्राउंडहॉग अपने दड़बे से निकलता है और यदि उसने अपनी छाया देख ली तो ठंड 6 हफ़्ते और रहेगी। वरना वसंत ऋतु का आगमन जल्दी हो जाएगा। 


छाया देखने का मतलब मौसम साफ़ रहा उस दिन। बदली छाई रही तो नहीं देख पाएगा। 


अब यह भविष्यवाणी कितनी सच और कितनी झूठ निकलती है इस पर कोई ध्यान नहीं देता है। बस तमाशा देखना है, दिखाना है। और यह तमाशा सन् 1886 से चला आ रहा है। 


इसी प्रकरण को लेकर एक बहुत ही बढ़िया अंग्रेज़ी फ़िल्म बनी है - ग्राउंडहॉग डे। रूचि हो तो अवश्य देखें। उस फ़िल्म में एक रिपोर्टर हर रोज़ एक ही दिन - 2 फ़रवरी - बार-बार जीता है। उसके क्या हास्यास्पद और अच्छे-बुरे परिणाम होते हैं ये इस फिल्म में बहुत अच्छी तरह से दिखाए जाते है। 


राहुल उपाध्याय । 1 फ़रवरी 2023 । सिएटल 






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