Thursday, February 23, 2023

गुडबाय की समीक्षा

हिन्दी फ़िल्मों में अक्सर परिवार दो ही तरह के होते हैं। या तो राज श्री जैसे संस्कारी। या गैंग्स ऑफ़ वासेपुर जैसे परिवार हीन। 


'गुडबाय' एक ऐसी हिन्दी फ़िल्म है जिसमें पहली नज़र में यह परिवार बहुत विचित्र लगेगा, बिखरा हुआ, टूटा हुआ, बिगड़ैल। बाद में धीरे-धीरे यह अपने परिवार सा लगने लगेगा। वह परिवार नहीं जिससे हमें प्यार है। बल्कि वह परिवार जो ऐसा नहीं होना चाहिए और है। और यही सच्चाई है। हम सबके परिवार - चाहे संयुक्त हो या इकाई, देश में हो या विदेश में, गाँव में हो या शहर में - ऐसे ही हैं बिखरे हुए, टूटे हुए, बिगड़ैल। 


अंत में निदेशक को न जाने क्या सूझी कि इसे राज श्री परिवार बना दिया। 


यदि अंत को छोड़ दें तो पूरी फिल्म बहुत अच्छी बनी है। सब को देखनी चाहिए। और सपरिवार देखी जा सकती है। 


अमिताभ का किरदार कोई भी निभा सकता था। अनुपम खेर, संजय मिश्रा। बोमन ईरानी। लेकिन अमिताभ ने निभाया अच्छा हुआ। इसी बहाने इसे दर्शक मिलेंगे। मैंने भी इसी वजह से देखी। अच्छा हुआ देख ली। 


एक और आश्चर्यजनक कास्टिंग। रश्मिका मंदाना। पुष्पा के बाद मैं कभी सोच भी नहीं सकता था कि वैसी ऐसी फिल्म में दिख जाएँगी। फ़िल्म की शुरू की फ़्रेम में ही उनकी काजल वाली आँखों ने मोह लिया। मुझे हीरोइनों को पहचानने में दिक्कत होती है। तो सोचा मेरा भ्रम है। कोई और होंगी। अंत में क्रेडिट से पुष्टि हो गई कि वे रश्मिका ही हैं। 


फ़िल्म के शुरू होने से पहले के टाइटल्स से मन खिन्न हुआ। सब कुछ हिन्दी में था। नाम भी। और लिपि भी देवनागरी। लेकिन देवनागरी में थैंक्स ठीक नहीं लगा। इन एसोसिएशन विथ भी। क्या मजबूरी थी समझ नहीं आई। 


फ़िल्म का विषय नाज़ुक है। बहुत संजीदगी बरती गई। लेकिन मज़ाक़ भी है। कॉमेडी भी है। बुरी लग सकती है। लगनी भी चाहिए। लेकिन यह सच्चाई है। अंतिम क्रिया के वक्त ऐसी हास्यास्पद घटनाएँ होना आम बात है। 


सुनील ग्रोवर एक ख़ास भूमिका में हैं। उनके ऊपर से अभी तक कपिल शर्मा का असर गया नहीं है। उन्हें रहस्यमयी बनाने का प्रयास किया गया है। 


फ़िल्म चंडीगढ़ रहनेवाले एक परिवार की है। इसलिए गाने पंजाबी में हैं। ठीक हैं। याद रखने के लायक़ नहीं। ज़्यादातर गाने फ़िल्म की लम्बाई बढ़ाते हैं। 


अमिताभ को तीन अवस्थाओं में दिखाया गया है। युवा, अधेड़ और उम्रदराज़। तीनों में देखकर बहुत अच्छा लगा। अधेड़ वाले अमिताभ के लिए मेकअप टीम वाले बधाई के पात्र हैं। 


फ़िल्म इसलिए भी अच्छी है कि यह दर्शक को एक परिपक्व दर्शक मानती है। उसे खुद सब समझने देती है। 


विकास बहल की कहानी और उनका निर्देशन प्रशंसनीय है। रश्मिका का अभिनय भी शानदार है। 


कई सारी ग़लतियाँ हैं स्क्रिप्ट में। उन्हें सही किया जा सकता था। सब कुछ - अचार, पतंग, यूकेलयली, पर्वतारोहण, फ़ोन चार्जर, कुत्ता, अनाथालय - एक ही फिल्म में डालना ज़रूरी नहीं है। 


राहुल उपाध्याय । 23 फ़रवरी 2023 । सिएटल 

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