Wednesday, December 28, 2022

साहित्यकार गुरू नहीं है

मुझे कबीर बहुत पसन्द हैं। लेकिन जैसा कि आमतौर पर होता है साहित्य में हर तरह की बात कही जा सकती है। रचनाकार रचना में दी गई सलाह से सहमत हैं या नहीं यह आवश्यक नहीं है। 


काल करे सो आज कर, आज करे सो अब

पल में प्रलय होएगी बहुरी करेगा कब?


इससे लगता है कि वे कल का काम आज ही करने को अच्छा मानते हैं। जबकि इसमें कुछ अलग ही कह रहे हैं:


धीरे-धीरे रे मना, धीरे सब कुछ होय। 

माली सींचे सौ घड़ा, ॠतु आए फल होय॥ 


किसी भी रचनाकार को ज़्यादा पढ़ लो, तो वे 'गुनाहों के देवता' वाले बर्टी ही नज़र आएँगे। वे तटस्थ नहीं रह सकते। वे हर एक का दृष्टिकोण प्रस्तुत करेंगे। और यही एक अच्छे रचनाकार की पहचान है कि वह किसी दायरे में बँधकर नहीं लिखता। 


साहित्यकार गुरू नहीं है जो कि सही मार्ग दिखलाए। साहित्यकार रंग बदलता रहता है। बदलते रहना भी चाहिए। 


राहुल उपाध्याय । 28 दिसम्बर 2022 । दिल्ली 

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