विज्ञान वह ज्ञान है जो सर्वमान्य है। पानी कब उबलता है, कब जमता है, सूर्योदय कब होता है, सूर्यास्त कब होता है जैसी तमाम बातों पर सबका एकमत है। चाहे किसी भी जाति, समाज, धर्म, भाषा का इंसान हो, इन बातों पर बहस नहीं करता।
इसलिए मुझे विज्ञान प्रिय है। यहाँ तेरा-मेरा विज्ञान नहीं होता। सबका है।
विज्ञान के परे की बातों पर दुनिया को सहमत करवाना आसान नहीं है। धर्मगुरु, समाज सुधारक, क्रांतिकारी प्रयास करते हैं लेकिन कुछ लोगों को ही समझा पाते हैं।
ग़ालिब और ग़ालिब जैसे साहित्यकारों की कलम में वो ख़ूबी है कि वे सारी दुनिया को सहमत होने के लिए मजबूर कर देती है और दुनिया उनकी आजीवन प्रशंसक बन जाती है।
इसलिए मुझे साहित्य में भी रूचि है। चाहे वो सीख देनेवाली ख़रगोश-कछुए की कहानी हो, या ग़ालिब की दार्शनिक रचनाएँ।
ग़ालिब स्मारक की दीवारों पर लगे पोस्टर से उद्धृत हैं कुछ अशआर जिन पर शायद ही कोई विवाद खड़ा हो सकता है।
उग रहा है दर-ओ-दीवार पर सब्ज़ा ग़ालिब
हम बयाबां में हैं और घर में बहार आई है
तेरे वादे पर जिए हम, तो ये जान झूठ जाना
के ख़ुशी से मर न जाते अगर एतबार होता
बस के दुश्वार है हर काम आसां होना
आदमी को भी मयस्सर नहीं इंसां होना
राहुल उपाध्याय । 20 दिसम्बर 2022 । मदुरै
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