Monday, December 5, 2022

आर-के/आरके

किसी अच्छी कविता की तरह 'आर के/आरके' एक ऐसी फिल्म है कि यह कभी समझ आती है, कभी नहीं, कभी अद्भुत लगती है, कभी बकवास, कभी गुदगुदाती है, कभी हंसाती है, और कभी गहन दर्शन से साक्षात्कार करा देती है। 


लगता है जैसे कि रजत कपूर ने विश्व का सारा साहित्य और दर्शन पढ़ा हो और उसका निचोड़ इसमें छिड़क दिया हो। 


रजत कपूर द्वारा लिखित, अभिनीत, एवं निर्देशित यह फ़िल्म एक बहुत ही अच्छी फिल्म है जो पूरे परिवार के साथ बेहिचक देखी जा सकती है।  मैं आमतौर पर हवाई जहाज़ में सोना पसन्द करता हूँ। फ़िल्में नहीं देखता। आज खाना खाते वक्त यूँही देख रहा था कि क्या हिन्दी भाषा में भी यह इंटरटेनमेंट सिस्टम उपलब्ध है कि नहीं। निराशा हाथ लगी। आज से चार साल पहले यूनाईटेड एयरलाइन्स में यह सुविधा उपलब्ध थी जो आज कतर एयरवेज़ में नहीं है। 


बॉलीवुड फ़िल्मों की सूची में पहली फ़िल्म यही थी। रजत कपूर का नाम देख कर अपने आप को रोक नहीं पाया। उनकी सारी फ़िल्में एक से बढ़कर एक हैं। पहले सीन से ही फ़िल्म इतनी अच्छी लगी कि पूरी देख ली। 


पूरी फ़िल्म में कहीं नहीं लगा कि यह दृश्य न होता तो भी चल जाता। यह डायलॉग थोड़ा छोटा या लम्बा होता तो बेहतर होता। लगता है जैसे सब कुछ नाप-तौल कर डाला गया है। न कम न ज़्यादा। 


मल्लिका शेरावत को इस फिल्म में देखकर हैरानी हुई लेकिन उन्होंने भी अपनी भूमिका खूब निभाई। रनवीर शोरी तो रजत कपूर की हर फिल्म का स्थायी हिस्सा है। 


सबसे अच्छा अभिनय कुब्रा सैत ने किया है। बहुत ही उम्दा कलाकार है। मनुऋषि चड्डा की दाद देनी होगी कि उन्होंने गोयल साहब का किरदार जीवंत कर दिया।  


रजत कपूर ने तीनों क्षेत्र - लेखन, अभिनय और निर्देशन- में दक्षता हासिल कर ली है। आर-के और महबूब के किरदार एक जैसे होते हुए भी रजत कपूर की अभिनय क्षमता से इतने अलग लगते हैं कि मन झूम उठता है। 


अवश्य देखें। 


राहुल उपाध्याय । 5 दिसम्बर 2022 । दोहा, क़तर 


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