Friday, November 25, 2022

चुप

'चुप' - आर बाल्कि की फ़िल्म है इसलिए देखने का मन हुआ। लगा उनकी फिल्म - इंग्लिश-विंग्लिश जैसी होगी। लेकिन निराशा हाथ लगी। 


फ़िल्म को आकर्षक बनाने के लिए और भी हथकंडे हैं। अमिताभ भी हैं। अलबत्ता सिर्फ़ एक सीन के लिए। लेकिन उनका नाम ख़ूब भुनवाया गया। यहाँ तक कि फिल्म के अंत में जो क्रेडिट्स आते हैं तब जो संगीत बजता है उसके कम्पोज़र अमिताभ बच्चन है। मतलब हद ही हो गई। 


पूजा भट्ट भी हैं एक अहम किरदार में। सनी देओल का किरदार बहुत ही कमजोर है। श्रेया धन्वंतरि की अदायगी बहुत ही उम्दा है। हर सीन में विश्वसनीय लगी। हालाँकि फ़िल्म के अंत में उनका किरदार एक रोते बच्चे सा हो जाता है जो कि स्क्रिप्ट की कमजोरी है। 


कहानी बहुत ही मनगढ़ंत है। यथार्थ से कोसों दूर। मुख्य पात्र को जो करना है करता चला जाता है। पूरी आज़ादी से। क्रिकेट पिच पर फ़्लडलाइट्स में भी कोई उसे नहीं देख पाता है। 


एक बहुत ही कमज़ोर फ़िल्म जिसमें इतने वीभत्स सीन हैं कि कई बार आँखें बंद करनी पड़ती है। 


न देखें तो ही बेहतर है। 


राहुल उपाध्याय । 25 नवम्बर 2022 । सिएटल 



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