मंगलवार को अमेरिका में चुनाव है। इसे मिड-टर्म चुनाव कहते हैं। मिड-टर्म इसलिए कि ये राष्ट्रपति के चार साल के कार्यकाल के बिलकुल बीच में होता है। इसमें कांग्रेस (यानी यहाँ की लोकसभा) के सारे सदस्यों का चुनाव होता है। उनका कार्यकाल सिर्फ़ दो साल का होता है। सीनेट के एक-तिहाई सदस्यों का भी चुनाव होता है। सीनेट के सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का होता है।
सीनेट का चुनाव कांग्रेस से ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है क्योंकि उनका कार्यकाल लम्बा होता है। और सीनेट में जिस दल का बहुमत होता है उसका सहयोग क़ानून पारित करने में आवश्यक होता है। उनकी ही मंज़ूरी से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश चुने जाते हैं जिनका कार्यकाल आजीवन होता है। वे रिटायर भी नहीं होते।
आमतौर पर मिड-टर्म चुनाव में वर्तमान राष्ट्रपति का दल हारता है यानी सीटें कम हो जाती हैं। उसका कारण यह है कि कोई भी राष्ट्रपति अपने चुनावी वादे पूरे करने में असमर्थ होता है और नयी समस्याएँ आ जाती हैं सो अलग।
ईंधन के दाम जिस तरह से बढ़े हैं बाईडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए हानिकारक है।
कई राज्यों के राज्यपाल का भी चुनाव है।
अमेरिका में सारे चुनाव नवम्बर के दूसरे मंगलवार को ही होते हैं। तमाम आपदाओं-विपदाओं के बावजूद यह क्रम बदला नहीं है।
कहा जा रहा है कि यदि ट्रम्प द्वारा मनोनीत रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार यदि भारी संख्या में जीत गए तो वे 2024 में राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की घोषणा कर सकते हैं।
ऐसा हुआ तो यह अमेरिका के इतिहास में सिर्फ़ दूसरी बार होगा कि कोई राष्ट्रपति हारने के बाद फिर से चुनाव लड़े। पहली बार 1893 में क्लीवलैंड ने ऐसा किया था और जीत गए थे। वे पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जिनका विवाह राष्ट्रपति बनने के बाद हुआ। वे 49 के थे और दुल्हन 21 की।
अपने पहले कार्यकाल (1885-1889) में उन्होंने टेक्सास राज्य के अकाल पीड़ितों के लिए सरकार की सहायता की माँग को ठुकरा दिया था यह कह कर कि किसी भी समूह के प्रति दरियादिली दिखाने से सरकार को अभिभावक बनने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा और देश का चरित्र कमज़ोर होगा। इसी कारण वे 1889 का चुनाव हार गए थे। दोबारा 1893 में विजयी हुए।
राहुल उपाध्याय । 5 नवम्बर 2022 । सिएटल
No comments:
Post a Comment