मंगलवार को अमेरिका में चुनाव है। इसे मिड-टर्म चुनाव कहते हैं। मिड-टर्म इसलिए कि ये राष्ट्रपति के चार साल के कार्यकाल के बिलकुल बीच में होता है। इसमें कांग्रेस (यानी यहाँ की लोकसभा) के सारे सदस्यों का चुनाव होता है। उनका कार्यकाल सिर्फ़ दो साल का होता है। सीनेट के एक-तिहाई सदस्यों का भी चुनाव होता है। सीनेट के सदस्यों का कार्यकाल 6 साल का होता है।
सीनेट का चुनाव कांग्रेस से ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है क्योंकि उनका कार्यकाल लम्बा होता है। और सीनेट में जिस दल का बहुमत होता है उसका सहयोग क़ानून पारित करने में आवश्यक होता है। उनकी ही मंज़ूरी से सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश चुने जाते हैं जिनका कार्यकाल आजीवन होता है। वे रिटायर भी नहीं होते।
आमतौर पर मिड-टर्म चुनाव में वर्तमान राष्ट्रपति का दल हारता है यानी सीटें कम हो जाती हैं। उसका कारण यह है कि कोई भी राष्ट्रपति अपने चुनावी वादे पूरे करने में असमर्थ होता है और नयी समस्याएँ आ जाती हैं सो अलग।
ईंधन के दाम जिस तरह से बढ़े हैं बाईडेन की डेमोक्रेटिक पार्टी के लिए हानिकारक है।
कई राज्यों के राज्यपाल का भी चुनाव है।
अमेरिका में सारे चुनाव नवम्बर के दूसरे मंगलवार को ही होते हैं। तमाम आपदाओं-विपदाओं के बावजूद यह क्रम बदला नहीं है। चुनाव के दिन छुट्टी नहीं होती है। मैं जिस राज्य में रहता हूँ, वाशिंगटन, वहाँ सारा चुनाव डाक द्वारा होता है। घर पर मतदान पात्र और लिफ़ाफ़ा आ जाता है। एक बुकलेट भी होती है जिसमें सारे उम्मीदवारों के नाम और उनके घोषणापत्र होते हैं। मतदान पत्र भर कर, हस्ताक्षर कर, डाक-टिकट लगाकर डाल सकते हैं। या कुछ निश्चित जगहों पर बैलेट बॉक्स में बिना डाक-टिकट के भी डाल सकते हैं।
अमेरिका में वोट डालने के अधिकार को लेकर कई आंदोलन हुए हैं। आज भी हो रहे हैं। लेकिन वोट डालने के प्रति जनता में उदासीनता ही दिखाई देती है। आम जनता को इन चुनावी नतीजों से उनके जीवन पर प्रत्यक्ष असर पड़ता नहीं दिखाई देता है। सब एक ही थैली के चट्टे बट्टे हैं।
कहा जा रहा है कि यदि ट्रम्प द्वारा मनोनीत रिपब्लिकन पार्टी के उम्मीदवार यदि भारी संख्या में जीत गए तो वे 2024 में राष्ट्रपति चुनाव लड़ने की घोषणा कर सकते हैं।
ऐसा हुआ तो यह अमेरिका के इतिहास में सिर्फ़ दूसरी बार होगा कि कोई राष्ट्रपति हारने के बाद फिर से चुनाव लड़े। पहली बार 1893 में क्लीवलैंड ने ऐसा किया था और जीत गए थे। वे पहले ऐसे राष्ट्रपति थे जिनका विवाह राष्ट्रपति बनने के बाद हुआ। वे 49 के थे और दुल्हन 21 की।
अपने पहले कार्यकाल (1885-1889) में उन्होंने टेक्सास राज्य के अकाल पीड़ितों के लिए सरकार की सहायता की माँग को ठुकरा दिया था यह कह कर कि किसी भी समूह के प्रति दरियादिली दिखाने से सरकार को अभिभावक बनने के लिए प्रोत्साहन मिलेगा और देश का चरित्र कमज़ोर होगा। इसी कारण वे 1889 का चुनाव हार गए थे। दोबारा 1893 में विजयी हुए।
राहुल उपाध्याय । 5 नवम्बर 2022 । सिएटल
(जो अन्य देशों से आकर यहाँ बस गए हैं उनकी उदासीनता का चित्रण कर रही है मेरी यह रचना:
डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते, हमें क्या
ये मुल्क नहीं मिल्कियत हमारी
हम इन्हें समझे, हम इन्हें जाने
ये नहीं अहमियत हमारी
तलाश-ए-दौलत आए थे हम
आजमाने किस्मत आए थे हम
आते हैं ख़्याल हर एक दिन
जाएँगे अपने घर एक दिन
डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते
बदलेगी नहीं नीयत हमारी
ना तो हैं हम डेमोक्रेट
और ना ही हैं हम रिपब्लिकन
बन भी गये अगर सिटीज़न
बन न पाएंगे अमेरिकन
डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते
छुपेगी नहीं असलियत हमारी
न डेमोक्रेट्स के प्लान
न रिपब्लिकन्स के उद्गार
कर सकते हैं हमारा उद्धार
डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते
पूछेगा नहीं कोई खैरियत हमारी
हम जो भी हैं अपने श्रम से हैं
हम जहाँ भी हैं अपने दम से हैं
डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते
काम आयेगी बस काबिलियत हमारी
फूल तो है पर वो खुशबू नहीं
फल तो है पर वो स्वाद नहीं
हर तरह की आज़ादी है
फिर भी हम आबाद नहीं
डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते
यहाँ लगेगी नहीं तबियत हमारी
)
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