Saturday, November 5, 2022

तड़का

'तड़का' बहुत ही प्यारी फ़िल्म है। बहुत प्यार से बनाई गई है। गोआ इतना ख़ूबसूरत शायद ही किसी फ़िल्म में दर्शाया गया है। अंतिम सीन में सेंट आगस्टिन चर्च बहुत ही सुन्दर लगा। 


पूरी फ़िल्म एक परी की कहानी सी है। सब सुन्दर है। सब रंगीन है। सब सुव्यवस्थित है। दुख भी है तो ऐसा कि ऐसे दुख में जीने को जी चाहे। 


नाना पाटेकर की फ़िल्में इन दिनों कम हो गई है। उम्र भी है सो चरित्र अभिनेता की भूमिकाएँ ही मिलती होंगी। छब्बीस साल पहले संजय लीला भंसाली की 'ख़ामोशी' में हीरोइन के पिता का रोल किया था। 


इस फ़िल्म में वे मुख्य किरदार में हैं, श्रिया सरन के साथ। एकदम फ़िट रोल है। कहीं से भी उम्रदराज़ नहीं लगते।


यह छोटे शहर या गाँव की कहानी नहीं है। ऐसी समस्याएँ गाँव में नहीं होती हैं। होती भी हैं तो मानी नहीं जाती हैं। हँसी-मज़ाक़ में उड़ा दी जाती हैं। 


श्रिया ने कमाल का अभिनय किया है। मदुरा का किरदार जीवंत हो उठता है। शायद यह उनकी पहली फ़िल्म है। तापसी का रोल ज़्यादा नहीं है। फिर भी स्पेश्यल अपीयरेंस नहीं है। ज़्यादातर सीन में श्रिया के साथ वे भी हैं। 


एक अरसे के बाद लिलित दुबे को देखकर अच्छा लगा। एक सीन में तीनों - श्रिया, तापसी और लिलित - हैं। तीनों हमउम्र लगीं। 


नाना पाटेकार का मोनोलॉग - मैं कमज़ोर हूँ - बहुत प्रभावशाली है। उनकी स्टाइल जो कि मिमिक्री के बाज़ार में बहुत बिकती है, उससे कोसों दूर। 


खाना-पीना ख़ूब दिखाया गया है। आलू के पराठे से लेकर फ़्रूट केक और मछली तक। 


एक बहुत ही साफ़ सुथरी और अच्छी फ़िल्म। 


राहुल उपाध्याय । 5 नवम्बर 2022 । सिएटल 

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