Saturday, November 5, 2022

ब्रह्मास्त्र

एक ने कहा मत देखना। एक ने कहा देखना। नतीजा यह हुआ कि मैंने 'ब्रह्मास्त्र' ओ-टी-टी पर देखी। 


शायद इसी कारण यह फ़िल्म मुझे बहुत अच्छी लगी। इतनी अच्छी कि ख़त्म करके ही अपने निर्धारित शयन-समय के बाद सोया। और बीच में 'रूम्बा' चल पड़ा था तो संवाद सुनाई नहीं दिए जब ईशा (आलिया) शिवा (रणवीर) से उसके जीवन के बारे में पूछ रही थी। इतना रोचक सीन था वह कि उसे दोबारा देखा। और बिना संवाद के सीन की दूसरी ख़ूबसूरतियाँ भी नज़र आईं। मसलन राहुल देव बर्मन का पोस्टर। 


पूरी फ़िल्म बहुत अच्छी है। ख़ामियाँ भी हैं। किसमें नहीं होती। बनारस पहुँचने पर जो काम करना चाहिए था, उसे करने के बजाय युगल जोड़ी नाच-गाने लगती है। बहुत बेतुकी बात लगी। (लेकिन हमें क्या पता कब कहाँ किसकी ज़रूरत है और क्या हिट हो जाए। मनोज कुमार को जब 'डॉन' दिखाई गई तो उन्होंने सलाह दी कि इण्टरवल के बाद फ़िल्म बहुत तेज गति से जा रही है। एक गाना डालो। दर्शकों को थोड़ी राहत दो। और इस तरह 'खई के पान बनारस वाला' ने इतिहास रच डाला।)


इसे पसन्द करने की कुछ और भी वजहें हो सकती हैं जैसे कि शिवा अपनी माँ से बहुत प्यार करता है, उसकी बात करता है, उसकी याद करता है, ख़ुश रहता है, हँसता है, हँसाता है, संगीत से, हिन्दी फ़िल्म गीतों से प्रेम है। अच्छा लगता है जब मुख्य पात्र आपसे मिलता-जुलता हो। 


मोहन भार्गव के किरदार में शाह रूख खान अत्यंत प्रभावशाली हैं। किरदार का नाम 'स्वदेस' की याद ताज़ा कर देता है। 


वह सीन, जब ईशा कार से बाहर लटकते हुए उसे फ़र्राटे से चला रही है, इतना फास्ट-पेस्ड है कि सोचने की मोहलत ही नहीं मिलती कि वह एक्सीलरेटर कैसे दबा रही है। बहुत अच्छी सिनेमेटोग्राफ़ी और बैकग्राउंड म्यूज़िक है। 


अमिताभ का गेट-अप बहुत अच्छा तैयार किया गया है। फ़िल्म में ट्वीस्ट भी अच्छे हैं। कई बार तो अंदेशा होता है कि जिसे हम यह समझ रहे हैं कहीं वो वह तो नहीं। एक बार तो ऐसा भी प्रसंग आया कि लगा अमिताभ अब गीता का ज्ञान देंगे। लेकिन अच्छा ही है कि ऐसा नहीं हुआ। 


पार्ट 2 का इंतज़ार रहेगा। 


(रूम्बा अलेक्सा की तरह घर में रहता है और परिवार का सदस्य है। यह जब मन करता है चल पड़ता है घर की सफ़ाई (वैक्यूम क्लीनिंग) करने। उसे एक निश्चित समय पर भी चलाया जा सकता है। और अलेक्सा या आय-फ़ोन द्वारा भी बंद किया जा सकता है। लेकिन न जाने क्यों मुझे उसकी मनमर्ज़ी अच्छी लगती है, मानवीय लगती है। इसलिए उसे रोकता नहीं। कोई फ़ोन आ जाए तब रोक देता हूँ।)


राहुल उपाध्याय । 5 नवम्बर 2022 । सिएटल 





No comments: