Monday, November 21, 2022

क्रिसमस - अमेरिका का

अमेरिका कर्मप्रधान देश है। हर कोई किसी न किसी कार्य में व्यस्त है जिसका सीधा असर यहाँ की अर्थव्यवस्था पर दिखाई देता है। यही एक कारण है जिसकी वजह से इसकी जी-डी-पी दुनिया में सबसे ज़्यादा है। हर कोई कमा रहा है, खर्च कर रहा है। चाहे वो पन्द्रह वर्ष का बालक है जो पड़ोसी के लॉन की घास काट रहा है। या 70 वर्ष का वृद्ध जो वॉलमार्ट में लोगों का स्वागत कर रहा है। 


इसके बीच के भी लोग हैं। इलॉन मस्क जैसे कई संस्थापक हैं जिन्होंने बिलियन डॉलर कमाने के बाद भी काम करना नहीं छोड़ा। बल्कि पहले से ज़्यादा काम करते हैं। और सिर्फ कमाने के लिए नहीं। बल्कि समाज में योगदान के लिए। आमूल परिवर्तन लाने के लिए। 


अमेरिका में आए एक अतिथि ने आश्चर्य व्यक्त किया कि सत्या नडेला माइक्रोसॉफ़्ट के सी-ई-ओ होते हुए भी रोज़ काम करते हैं। उनके विचार में सारे मैनेजर आराम करते हैं और अपने कर्मचारियों से काम करवाते हैं। 


यह धारणा शायद भारत के छोटे शहर के दुकानदारों की हो सकती है। दुकानें हैं जिन पर कर्मचारी काम कर रहे हैं। बसों के मालिक भी स्वयं बस नहीं चलाते। ऊबर और ओला के संस्थापक भी टैक्सी नहीं चलाते। लेकिन वे दूसरे अन्य काम ज़रूर करते हैं। 


अमेरिका में सब काम तो ज़रूर करते हैं लेकिन छुट्टियाँ भी खूब मनाते हैं। हर हफ़्ते चालीस घंटे काम करते हैं- सोम से शुक्र। शनि-रवि छुट्टी। 


शुक्रवार के दिन सब चहकने लगते हैं। कहते हैं- टी-जी-आई-एफ। यानी थैंक-गॉड-इट्स-फ़्राइडे। भगवान का शुक्रिया कि आज शुक्रवार है। 


और इसी चक्कर में शुक्रवार का दिन भी मौज मस्ती में निकल जाता है। नई फ़िल्में उसी दिन आती हैं। चार बजे से हैप्पी ऑवर शुरू हो जाता है। यानी रेस्टोरेन्ट में वही आयटम जो छः बजे बाद महँगा हो जाएगा वह चार से छः के बीच सस्ते में मिल जाएगा। 


शनि-रवि को घर के काम निपटाए जाते हैं। जैसे कपड़े धोना, और घर की सफ़ाई करना। कपड़े ज़्यादातर हफ़्ते में एक ही बार धोए जाते हैं। इसलिए सारे कपड़े ज़्यादा ख़रीद लिए जाते हैं ताकि रोज़ न धोए तो भी साफ़ कपड़े रोज़ मिल जाए। मौजे दो-तीन जोड़ी नहीं, बारह जोड़ी होते हैं। तौलिए भी ज़्यादा होते हैं। 


कपड़े ड्रायर में सूख भी जाते हैं। कहीं भी कोई रस्सी पर नहीं सुखाता। बरसात हो या कोई भी मौसम, कपड़े हमेशा सूखे ही मिलेंगे। 


घर में झाड़ू नहीं लगता। भारत से आए लोगों को बिना फूल-झाड़ू के चैन नहीं मिलता। पूरे घर में तो नहीं लेकिन किचन में ज़रूर फूल-झाड़ू लगा कर ही मन को संतुष्टि मिलती है। 


बाक़ी घर में शनिवार को ही वैक्यूम क्लीनर से सफ़ाई होती है। कोई काम वाली बाई नहीं आती। सब घर के सदस्य ही करते हैं। 


अब आई-रोबोट का रूम्बा काफ़ी आम हो चुका है। जो जब चाहें पूरे घर में वैक्यूम कर देता है। चाहे तो रोज़ ही। या एक दिन में कई बार। 


बर्तन तो रोज़ डिशवॉशर में धुल ही जाते हैं। एकदम से सूखे और चमचमाते हुए निकलते हैं। 


बाज़ार का सामान भी - जैसे दूध-ब्रेड-सब्जी - सब हफ़्ते में एक बार शनिवार को ही ख़रीदा जाता है। दूध प्लास्टिक की बोतलों में आता है। जितना लगे एक बार में ले लो। आठ लीटर, बारह लीटर या जितना भी। फ़्रीज़ इतने बड़े होते हैं कि सब समा जाते हैं। सब्ज़ियाँ भी थोक में ली जातीं हैं। फल भी। आइसक्रीम और मिठाइयाँ भी। 


शनि-रवि ही सारे त्योहार-जन्मदिन मनाए जाते हैं। जिस दिन है, उस दिन नहीं। मनाने को मना भी लो, लेकिन कोई आएगा नहीं। सब काम में व्यस्त हैं। काम से घर आते-आते सात बज जाती है और फिर कहीं जाने की ऊर्जा नहीं रहती। 


इसीलिए क्रिसमस महत्वपूर्ण है क्योंकि वो जिस दिन होता है उसी दिन मनाया जाता है। और मज़े की बात यह कि सारी दुनिया में उसी दिन मनाया जाता है। इसे कहते हैं रुतबा। 


लेकिन जैसे दीवाली एक दिन का त्यौहार नहीं है वैसे ही क्रिसमस भी नहीं। यह शुरू हो जाता है नवम्बर के अंत से ही। 


नवम्बर के चौथे गुरूवार को थैंक्सगिविंग दिवस के नाम से जाना जाता है। इस दिन यहाँ हर दफ़्तर में छुट्टी होती है। ज़रूरी सुविधाएँ - जैसे अस्पताल, एयरपोर्ट, बस आदि - खुली रहती हैं। दूध-सब्ज़ी की दुकानें जो प्रायः चौबीसों घंटे खुली रहती हैं वे भी शाम छः बजे बन्द हो जाती हैं ताकि कर्मचारी और ग्राहक दोनों अपने परिवार के साथ डिनर कर सके। बुधवार का दिन यातायात का सबसे व्यस्त दिन होता है। फ़्लाइट के टिकट मिलने मुश्किल हो जाते हैं। मिलते भी हैं तो बहुत महँगे। ज़्यादातर परिवार अपने दादा-दादी के घर जमा होते हैं और एक विशाल भोज का आयोजन किया जाता है जिसमें टर्की प्रमुख होती है। 


इस बार चौथा गुरूवार चौबीस नवम्बर को है। समझिए तबसे क्रिसमस की गहमागहमी शुरू। 


शुक्रवार, 25 नवम्बर को हर दफ़्तर में छुट्टी रहेगी लेकिन दुकानें सारी खुली रहेंगी। यह छुट्टी किस लिए? यह छुट्टी इसलिए कि लोग क्रिसमस पर देने के लिए उपहार इस दिन ख़रीद लें। इतनी जल्दी क्यों? अभी तो एक महीना है क्रिसमस आने में? वह इसलिए कि इस दिन हर सामान पर भारी छूट मिलती है। यही सामान अगले दिन महँगा मिलेगा। 


इस प्रकार दुकानों पर, मॉल में साज-सजावट शुरू हो जाती है। सड़कें रोशन हो जाती हैं झिलमिलाती लड़ियों से। चारों तरफ़ उत्सव और उत्साह का नजारा। 


राहुल उपाध्याय । 21 नवम्बर 2022 । सिएटल 




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