1933 में जन्में सागर सरहदी 14 वर्ष के थे जब भारत का विभाजन हुआ। अपनी आँखों देखा हाल वे सुना रहे हैं यूनुस खान को विविध भारती के पसंदीदा कार्यक्रम 'उजाले उनकी यादों के' में। यह एक महत्वपूर्ण दस्तावेज है बिना किसी राजनीतिक दृष्टिकोण के। इस पर कोई लेप नहीं है।
सागर सरहदी एक अच्छे कहानीकार थे। वे उसका श्रेय विभाजन ने जो उनसे छीना, और उससे जो दुख-दर्द-क्रोध उभरा, उसे देते हैं। वे यह भी कहते हैं कि उन्होंने विवाह नहीं किया इस कारण उन पर पाबंदियाँ नहीं लगीं और वे खुल कर अपना जीवन जी सके, लेखन कर सके, रोमांटिक हो सके, रोमांस कर सके।
एक और रोचक बात उन्होंने कही कि वे नमस्ते करना नहीं जानते, विश करना नहीं जानते। किसी से भी किसी भी बात पर बात बिगड़ सकती है। जो मन में आया वही किया। देव आनंद और राज कपूर ने उनसे लिखने को कहा लेकिन उन्होंने मना कर दिया। वे जानते थे कि जो मैं लिखता हूँ उसे ये पसंद नहीं कर सकेंगे।
सागर सरहदी के कलम से लिखी कहानियाँ बहुत ही महत्वपूर्ण फ़िल्में बनी हैं। जैसे- कभी-कभी, सिलसिला, और नूरी।
इस कार्यक्रम में प्रस्तुत गीत एक से बढ़कर एक हैं। अंतिम गीत क़मर जलालाबादी का है। धुन बनाई श्याम सुन्दर ने। गाया लता ने।
साजन की गलियां छोड़ चले
दिल रोया आंसू बह न सके
यह जीना भी कोई जीना है
हम उनको अपना कह न सके
जब उनसे बिछड़ कर आने लगे
रुक-रुक के चले, चल-चल के रुके
लब काँपे, आँखें भर आयी
कुछ कहना चाहा कह न सके
उनके लिए उनको छोड़ दिया
खुद अपने दिल को तोड़ दिया
हम उनके दिल में रहते थे
उनके क़दमों में रह न सके
साजन है वहाँ और हम हैं यहाँ
ऐसे दिल को ले जायें कहाँ
जो पास भी उनके रह न सके
और दर्द-ऐ-जुदाई सह न सके
राहुल उपाध्याय । 4 नवम्बर 2022 । सिएटल
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