Monday, December 5, 2022

घर पे बताओ

'घर पे बताओ' - 72 मिनट की एक अनूठी फ़िल्म है, जिसमें सिर्फ़ दो पात्र हैं, और एक ही शॉट में बनाई गई है। कैमरे की नज़रों से पात्र कभी ओझल नहीं होते। माथेरान के रमणिक पथ पर वे चलते रहते हैं। कैमरा कभी पीछे से तो कभी आगे से उन पर निगाहें बनाए रखता है। 


नेशु सलूजा द्वारा निर्देशित यह फ़िल्म अनूठी होने के साथ-साथ अच्छी भी है। प्रियंका बहुत अच्छी अभिनेत्री है। 72 मिनट में उनके पात्र के असंख्य भाव आते जाते हैं और वे सारे उनके चेहरे पर स्पष्ट देखे जा सकते हैं। दोनों अभिनेताओं ने ग़ज़ब की क्षमता दिखाई है कि बिना कट के 72 मिनट के पूरे डायलॉग ही नहीं, हर हरकत, हर मोड़, हर ठहराव को याद रखना और एक-दूसरे से ताल-मेल बनाए रखना। 


दोनों पात्रों के नाम भी नहीं बताए जाते हैं ताकि यह ध्यान रहे कि कहानी सिर्फ़ इनकी नहीं है। इनके जैसे करोड़ों लड़के-लड़कियों की है जो कि हर तरह से आज़ाद हैं लेकिन फिर भी कुछ मामलों में अपने आपको परिवार की अदृश्य सलाख़ों में क़ैद पाते हैं। शादी से पहले हनीमून कर सकते हैं लेकिन घर पर शादी करने की बात नहीं कर पाते हैं। आज से पचास साल पहले बनी 'कभी-कभी' और 30 साल पहले बनी 'दिलवाले दुल्हनिया ले जाएँगे' की काली छाया ऐसी पड़ी हैं कि हर कोई आज्ञाकारी पुत्र और दामाद का प्रमाणपत्र पाना चाहता है। 


हम लाख कहें कि फिल्म और साहित्य समाज का दर्पण होते हैं। लेकिन सच तो यही है कि फ़िल्मों में हर तरह की कहानी होती है लेकिन जनता अपनाती वही है जो हिट हो जाती हैं। एक दूजे के लिए में प्रेमी युगल आत्महत्या कर लेते हैं। लेकिन आत्महत्या का मार्ग समाज ने अपनाया नहीं। क़यामत से क़यामत तक में प्रेमी युगल कत्ल कर दिए जाते हैं। समाज ने यह रूख भी नहीं अपनाया। 


अब उम्र हो चली है सो शायद मेरा दृष्टिकोण सही न हो। 


'घर पे बताओ' जैसी फ़िल्म बनती रहनी चाहिए और देखी जानी चाहिए। ये 72 मिनट किसी भी लम्बी सीरीज़ के दस घंटों को टक्कर दे सकते हैं। 


गीत भी नेशु सलूजा ने लिखे हैं। 


राहुल उपाध्याय । 5 दिसम्बर 2022 । सिएटल 




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