बन्दना की प्रथा बहुत पुरानी है। और प्रभु के हज़ारों नामों को दोहराना भी एक प्रक्रिया है जिससे कई लोगों को शांति मिलती है।
कई लोगों को इन सबका अर्थ जाने बिना दोहराना भी अच्छा लगता है। जैसे मेरी मम्मी। विष्णु सहस्त्रनाम पढ़तीं है। लेकिन अर्थ से अनभिज्ञ।
कविता तिवारी की यह वन्दना कई मामलों में अनूठी है। एक तो यह आधुनिक है। दूसरा, वर्तमान समय की समस्याओं के समाधान की और ध्यान आकर्षित करती है। तीसरा, यह सार्वजनिक वन्दना है, निजी नहीं। चौथी, यह कोरी गुणगान या प्रशंसा नहीं है।
हालाँकि यह अवधि, संस्कृत या ब्रजभाषा में नहीं है, फिर भी शब्द इतने क्लिष्ट है कि शब्दकोश के बिना समझना कठिन है। ये बात और है कि कविता कविता इतने प्रभावशाली ढंग से सुनातीं हैं कि श्रोता ताली बजाए बिना रह नहीं सकता। ताली कई बार स्मरणशक्ति की सराहना में भी बजा दी जाती है।
हे ईश्वर, मालिक, हे दाता
हे जगत नियंता दीनबंधु
हे परमेश्वर, प्रभु, हे भगवन
हे प्रतिपालक, हे दयासिंधु
सच्चिदानंद, घट-घट वासी
हे पुण्यराशि, करूणावतार
हे विघ्नहरण, मंगलमूर्त
हे शक्तिरूप, हे गुणागार
सभ्यता यशस्वी हो जाए
मानवता का फैले प्रकाश
सब दिव्य दृष्टि के पोषक हो
कर दो कुदृष्टि का सर्वनाश
इतिहास गढ़े जाएँ प्रतिपल
पृष्ठों में अकलंकता रहे
सज्जनता का अनुशीलन हो
मानव को पथ का पता रहे
हर एक बालिका विदुषी हो
हर बालक नीति निधान रहे
फहराए तिरंगा अंबर तक
माँ का धानी परिधान रहे
'कविता' चाहेगी धरती पर
संस्कृतियों का सम्मान रहे
जब तक सूरज-चंदा चमके
तब तक ये हिंदुस्तान रहे
सुपुनीता होकर मनोवृत्ति
उत्तुंग शिखर स्पर्श करे
गुण श्रेष्ठ प्रस्फुटित हों इतने
सम्यक हों क्रांति विमर्श करें
उत्फुल्ल रहे हर एक व्यक्ति
पर परम सरलता बनी रहे
शब्दों की अपनी गरिमा हो
अविराम तरलता बनी रहे
हे त्रिभुवन के पथ-उन्नायक
आपदा प्रबन्धन के स्वामी
हम विनत भाव करबद्ध खड़े हैं
सर्वेश्वर अंर्तयामी
हे नाथ, सनाथ करो सबको
जन-जन हो जाए निर्विकार
विप्लवी घोष विध्वंश मिटे
खोलो सबके हित मोक्ष द्वार
नित नव किसलय विकसित प्रसून
अति स्वर्णिम सुखद विहान रहे
भ्रमरों का जिस पर झूम झूम
अनुगुंजित मधुरिम गान रहे
आरती भारती की उतरे
अर्पित तन-मन-धन प्राण रहे
जब तक सूरज-चंदा चमके
तब तक ये हिंदुस्तान रहे
सारंग धनुर्धारी भगवन
श्रीराम भुवन भय दूर करो
हे चक्रपाणी कर कृपादृष्टि
छल-दम्भ-द्वेष को चूर करो
हे त्रयम्बकेश्वर महादेव
हे नीलकंठ अवढरदानी
त्रैलोक्यनाथ रोको-रोको
बढ़ रही नित्य प्रति मनमानी
सम्मोहन-मारण-वशीकरण
उच्चाटन मंत्र प्रयुक्त दिखे
जिनके कारण भय व्याप्त हुआ
भयहीन दिखे, भयमुक्त दिखे
अरिहंत तुरंत करो कौतुक
रोको अनर्थ की छाया को
मन प्राण सन्न, सहमे, सकुचे
क्या हुआ मनुज की काया को
अनुरक्ति बढ़े सीमाओं तक
लेकिन विरक्ति का ध्यान रहे
मिट जाये तिमिर अशिक्षा का
भाषित शिक्षा का दान रहे
मानव अर्पित हो राष्ट्र हेतु
पूजित युग-युग अभिमान रहे
जब तक सूरज-चंदा चमके
तब तक ये हिंदुस्तान रहे
(कविता तिवारी)
अब अर्थ के साथ:
हे ईश्वर, मालिक, हे दाता
हे जगत नियंता दीनबंधु
हे परमेश्वर, प्रभु, हे भगवन
हे प्रतिपालक, हे दयासिंधु
सच्चिदानंद घट-घट वासी
हे पुण्यराशि करूणावतार
हे विघ्नहरण मंगलमूर्त
हे शक्तिरूप, हे गुणागार
सभ्यता यशस्वी हो जाए
मानवता का फैले प्रकाश
सब दिव्य दृष्टि के पोषक हो
कर दो कुदृष्टि का सर्वनाश
इतिहास गढ़े जाएँ प्रतिपल
पृष्ठों में अकलंकता रहे
सज्जनता का अनुशीलन (नियमित अध्ययन) हो
मानव को पथ का पता रहे
हर एक बालिका विदुषी हो
हर बालक नीति निधान (आधार) रहे
फहराए तिरंगा अंबर तक
माँ का धानी (हल्का हरा) परिधान रहे
'कविता' चाहेगी धरती पर
संस्कृतियों का सम्मान रहे
जब तक सूरज-चंदा चमके
तब तक ये हिंदुस्तान रहे
सुपुनीता (मक्खन) होकर मनोवृत्ति (मन की स्थिति)
उत्तुंग ( ऊँचा) शिखर स्पर्श करे
गुण श्रेष्ठ प्रस्फुटित हों इतने
सम्यक (उचित) हों क्रांति विमर्श करें
उत्फुल्ल (प्रसन्न) रहे हर एक व्यक्ति
पर परम सरलता बनी रहे
शब्दों की अपनी गरिमा हो
अविराम तरलता बनी रहे
हे त्रिभुवन के पथ-उन्नायक
आपदा प्रबन्धन के स्वामी
हम विनत भाव करबद्ध खड़े हैं
सर्वेश्वर अंर्तयामी
हे नाथ, सनाथ (जो अनाथ न हो) करो सबको,
जन-जन हो जाए निर्विकार (जिसमें कोई दोष न हो)
विप्लवी (उपद्रवी) घोष विध्वंश मिटे,
खोलो सबके हित मोक्ष द्वार
नित नव किसलय (पौधों में निकलने वाले नए पत्ते) विकसित प्रसून (फूल),
अति स्वर्णिम सुखद विहान (सवेरा) रहे
भ्रमरों का जिस पर झूम झूम
अनुगुंजित मधुरिम गान रहे
आरती भारती की उतरे
अर्पित तन-मन-धन प्राण रहे
जब तक सूरज-चंदा चमके
तब तक ये हिंदुस्तान रहे
सारंग (विष्णु का धनुष ) धनुर्धारी भगवन,
श्रीराम भुवन भय दूर करो
हे चक्रपाणी कर कृपादृष्टि
छल-दम्भ-द्वेष को चूर करो
हे त्रयम्बकेश्वर महादेव
हे नीलकंठ अवढरदानी (मुँहमाँगा दे डालने वाले)
त्रैलोक्यनाथ रोको-रोको
बढ़ रही नित्य प्रति मनमानी
सम्मोहन-मारण-वशीकरण
उच्चाटन ( एक तांत्रिक प्रयोग) मंत्र प्रयुक्त दिखे
जिनके कारण भय व्याप्त हुआ
भयहीन दिखे, भयमुक्त दिखे
अरिहंत (योग्य एवं गुणी) तुरंत करो कौतुक (आवेग)
रोको अनर्थ की छाया को
मन प्राण सन्न, सहमे, सकुचे
क्या हुआ मनुज की काया को
अनुरक्ति (प्रेम) बढ़े सीमाओं तक,
लकिन विरक्ति (किसी के प्रति प्रेम, सहानुभूति आदि न रह जाने का भाव ) का ध्यान रहे
मिट जाये तिमिर (अंधकार) अशिक्षा का
भाषित शिक्षा का दान रहे
मानव अर्पित हो राष्ट्र हेतु
पूजित युग-युग अभिमान रहे
जब तक सूरज-चंदा चमके
तब तक ये हिंदुस्तान रहे
इसे यहाँ सुना जा सकता है:
राहुल उपाध्याय । 9 दिसम्बर 2020 । सिएटल
--Rahul
425-445-0827
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