Friday, December 11, 2020

फेसियल रिकागनिशन

औज़ार और हथियार में कई बार फ़र्क़ करना मुश्किल हो जाता है। चाक़ू रसोईघर में सब्ज़ी काटने के काम भी आ सकता है, और किसी का गला भी काट सकता है। 


इसका मतलब यह नहीं कि चाक़ू बनाने बन्द कर देना चाहिए। ज़रूरत है इन्सान की समझदारी की। 


आग जब तक नियन्त्रण में रहे, दीप जलाकर रोशनी दे सकती है। आपे से बाहर होते ही सब जलाकर राख कर देती है। 


फेसियल रिकागनिशन सॉफ़टवेयर के साथ भी यही समस्या है। 


आज इसका सदुपयोग भी हो रहा है, एवं दुरूपयोग भी। 


सदुपयोग तो यह कि आपको अपने फ़ोन को खोलने के लिए पासवर्ड याद रखना ज़रूरी नहीं। आपका चेहरा पहचानते ही खुद-ब-खुद खुल जाएगा। कई लोगों को यह आलसीपन लग सकता है। पासवर्ड याद रखना क्या कोई मुश्किल काम है? लेकिन मैं जानता हूँ कि हमारे समाज का एक बड़ा तबक़ा ऐसा भी है जो बूढ़ा हो चला है और उन्हें बहुत सी बातें याद नहीं रहती हैं। 


मेरी अस्सी वर्षीय माँ आजकल के स्मार्टफ़ोन को बिलकुल नहीं चला पाती हैं। कब, कहाँ, कैसे, क्या क्लिक करना है, बिलकुल नहीं समझ पाती हैं। ऐसे में अलेक्सा वरदान है, जिसके सहारे वे सिर्फ बोलकर किसी को भी फ़ोन कर सकती हैं, भजन सुन सकती हैं, परचूनी सामान की सूचि बनी सकती हैं, आनेवाले विशिष्ट दिनों की जानकारी प्राप्त कर सकती हैं, समाचार सुन सकती हैं। और यह सब हिन्दी में। अंग्रेज़ी का एक अक्षर जाने बग़ैर। 


आपके पास हज़ारों फ़ोटो है। आप अपने मित्र रमेश के फ़ोटो देखना चाहते हैं। एक बार एक फ़ोटो में बता दीजिए कि रमेश कौन है। बस रमेश के सारे फ़ोटो आपके सामने होंगे। यही नहीं, यह टेक्नोलॉजी तो रमेश के बचपन से लेकर बुढ़ापे तक के सारे फ़ोटो आपको बता देगी। न जाने कैसे सही अंदाज़ा लगा लेती है। 


ग़ज़ब की टेक्नोलॉजी है। सबसे पहले इसका बड़े पैमाने पर गुगल ने उपयोग किया। यूट्यूब पर इतने वीडियो हर मिनट जोड़े जाते हैं कि किसी मनुष्य के बस की बात नहीं कि वह उसकी जाँच पड़ताल कर सके। 


मान लीजिए वीडियो का टाइटल कह रहा है कि यह मोदीजी का भाषण है। और असलियत में आप उसमें अपनी कविता पढ़ रहे हैं। यह तो धोखाधड़ी हुई। जनता का यूट्यूब से विश्वास उठ जाएगा। इसी कारण, यह टेक्नोलॉजी काम में ली जाती है ताकि ग़लत एवं ग़ैर-क़ानूनी सामग्री से यूट्यूब बचा रहे। 


भारत सरकार ने इसी टेक्नोलोजी की मदद से कई लापता बच्चों को अपने माँ-बाप से मिलवाया है। 


ऑस्ट्रेलिया में एक बैंक चेहरे की पहचान और पिन का उपयोग करके ग्राहकों को एक स्वचालित टेलर मशीन से पैसे निकालने देती है। कार्ड की कोई आवश्यकता नहीं। 


लाभ कई हैं। नुक़सान है ग़लत काम करने वालों से। कोई तानाशाह यदि अपनी जनता पर कड़ी निगरानी रखना चाहे तो रख सकता है। 


आप कब कहाँ जाते हैं, सब पर अंकुश लगाया जा सकता है। आप कब किस मोर्चे में शामिल हुए। किस धरने में आप किसके साथ बैठे थे। कौन सी गाड़ी में आप कब कहाँ जाते हैं। आपके बारे में सही-ग़लत अवधारणा बनाई जा सकती है।  


आपकी नौकरी पर ख़तरा आ सकता है। बैंक आपको क़र्ज़ देने से मना कर सकता है। 


इस टेक्नोलॉजी की शुरूआत हुई थी फ़ोटो/वीडियो में बिल्ली को पहचानने की इच्छा से। जो तकनीक अपनाई गई उसे डीप-लरनिंग या न्यूरल नेटवर्किंग कहा जाता है। 


यह एक ऐसी टेक्नोलॉजी है जिसमें स्वयं प्रोग्रामर नहीं जानता कि उसका लिखा प्रोग्राम बिल्ली कैसे पहचान लेता है। और अब तो यह हर तरह के जानवर, इन्सान, चल-अचल सबको पहचान लेता है। वह सब फ़ोटो जिनमें आप अपने छोटे बेटे के साथ क्रिकेट खेल रहे हैं, तुरंत हाज़िर है। 


चूँकि यह सॉफ़टवेयर है, इंसान नहीं, सो ग़लतियाँ स्वाभाविक हैं एवं बहुत सुधार की गुंजाईश है। उदाहरण के तौर पर बिल्ली को पहचानने के लिए हज़ारों फ़ोटो दिए गए थे सॉफ़टवेयर को बिल्ली को हर तरह से देखने समझने के लिए। अब यदि हर फ़ोटो में बिल्ली काले रंग की ही हुई तो सॉफ़टवेयर यह ग़लत धारणा बना लेंगा कि हर बिल्ली काली होती है। और भी कई ग़लत धारणाएँ बन सकती हैं। जैसे कि हर फ़ोटो में बिल्ली बिस्तर पर बैठी हुई है तो यह समझेगा कि बिल्ली हमेशा घरों में पाई जाती है। 


यह भी कहा जा रहा है कि प्रोग्रामर के पूर्वाग्रह भी सॉफ़टवेयर में रच-बस जाते हैं। यदि अधिकांश प्रोग्रामर गोरे आदमी हैं, तो औरतों और ग़ैर-गोरों के साथ भेदभाव हो सकता है। 


बहरहाल, आज के लोकतांत्रिक समाज में इस टेक्नोलॉजी से लाभ अधिक है, एवं ख़तरे की सम्भावनाएँ कम। 


व्हाट्सैप आज के भारत का अभिन्न अंग है। इस पर फैलाएँगे कुछ झूठी ख़बरों से कुछ व्यक्तियों की जान भी गई हैं किन्तु व्हाट्सैप को ठुकरा देना तर्कसंगत नहीं।


राहुल उपाध्याय । 11 दिसम्बर 2020 । सिएटल 

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Best Regards,
Rahul
425-445-0827

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