Monday, December 21, 2020

20 दिसम्बर 2020

आज का रविवारीय भ्रमण फैंटम झील के इर्द-गिर्द हुआ। 


कल 21 दिसम्बर है। यानी साल का सबसे छोटा दिन। हम 47 डिग्री अक्षांश पर है। यानी बहुत ही छोटा दिन। सूर्योदय 7:54 पर। सूर्यास्त 4:20 पर। करेला, उस पर नीम चड़ा। 


(मेरा जन्म कर्क रेखा पर स्थित शिवगढ़ में हुआ। यानी 23 डिग्री अक्षांश। जो कि भूमध्य रेखा एवं सिएटल के बिलकुल बीच में है।)


भ्रमण का समय अडिग है। सो सुबह सात बजे घुप्प अंधेरा रहा। लेकिन सार्वजनिक शौचालय की, उसी शौचालय के बाहर लगी स्वर्णिम रोशनी के बीच तस्वीर बहुत ही सुन्दर आई। ऐसी ही सुन्दर तस्वीर ग्रीन झील के शौचालय की भी ली थी मैंने दो साल पहले। मेरी सारी तस्वीरों में से वह तस्वीर गुगल नक़्शे के उपभोक्ताओं को सर्वाधिक पसन्द आई थी। अब तक की सबसे ज़्यादा पसन्द की गई है सैलाना की तस्वीर। मुझे यह भी नहीं मालूम कि यह है क्या। यूँही चलते-चलते खींच ली थी। सैलाना उतनी बड़ी तहसील नहीं है। फिर भी कुछ क्षेत्रों से अनभिज्ञ हूँ। 


बोर्डवॉक भी सुन्दर लग रहा है। यह बोर्डवॉक हर उस स्थान पर लगाया जाता है जहाँ जमे हुए या बहते पानी से कीचड़ होने की या फिसलने की सम्भावना हो। ताकि पदगामियों को कोई असुविधा न हो। लेकिन बर्फ़ीले मौसम में यहाँ भी सचेत रहना पड़ता है। जमी हुई ओस से कोई बचाव अभी तक अवतरित नहीं हुआ है। 


शौचालय के बाहर तीन उपकरण है। पहला, सफ़ेद, हाथ धोने के लिए है। इसमें गरम पानी आता है। दूसरा हाथ सुखाने के लिए ड्रायर है। तीसरा पानी पीने के लिए। इसमें हमेशा बर्फीला पानी आता है। यहाँ लोगों को प्रायः पानी बर्फ़ डालकर पीना ही अच्छा लगता है। और पानी नीचे से ऊपर आता है, जिसमें मुँह लगाकर पीना होता है। बड़ा अजीब लगता है शुरू में। कि कैसे वहीं से पी लें जहाँ किसी और ने मुँह लगाया हो! लेकिन तरकीब यह है कि मुँह पानी की धार पर लगाए। पानी के स्रोत पर नहीं। 


भारत में पानी ऊपर से नीचे आता है और उसे हाथ से ओक बनाकर पिया जाता है। उसमें भी दिक्कत है। पानी कोहनी तक पहुँच जाता है। नीचे भी गिरता है। कीचड़ की समस्या हो जाती है। 


झील ज़्यादा बड़ी नहीं है। पर छोटी भी नहीं। बहुत शांति थी। वीडियो में पक्षियों की आवाज़ साफ़ सुनाई दे रही है। 


झील के सामने रहने वाले एक परिवार के पास नाव भी है। लेकिन इस झील में नाव उतारने की अनुमति नहीं है और व्यवस्था भी नहीं है। 


मछली पकड़ी जा सकतीं हैं। पर उनके भी नियम हैं। किस मछली को कब पकड़ा जा सकता है, उसका बक़ायदा कैलेंडर है। गिनी-चुनी मात्रा में ही  घर ले जाई जा सकतीं हैं। बाक़ी को वापस झील में डालना होता है। 


अजब हिसाब है! कौन देखने आएगा किसने कितनी लीं? कितनी वापस डाली? 


मैंने कभी मछली नहीं पकड़ी। किसी से बात करूँगा तो और जानकारी मिलेगी। 


वैसे अमेरिका में अधिकांश क़ानून/नियमों का पालन होता है। न हो तो पकड़े जाने पर रियायत नहीं दी जाती। जान-पहचान, धन-दौलत, शोहरत - किसी से काम नहीं चलता। 


इसी वजह से रात के तीन बजे भी सुनसान सड़क पर भी स्टॉप साईन पर हर गाड़ी रूकती है, फिर निकलती है। 


बिल गेट्स भी लापारवाही से गाड़ी चलाने के जुर्म में गिरफ़्तार हो चुके हैं। 


34 वर्ष पहले जब मैं यहाँ आया तब समाचार पत्र पढ़े जाते थे। जगह-जगह वेन्डिंग मशीन होती थी जिसमें सिक्के डालने पर दरवाज़ा खुल जाता था, और अख़बार की एक प्रति उठाई जा सकती थी। 


मैं हैरान था कि लोग इतने ईमानदार है कि सिर्फ एक ही प्रति निकालते हैं। चाहें तो एक से ज़्यादा निकाल सकते हैं। पूरा डब्बा ही ख़ाली कर सकते हैं। 


बाद में समझ आया कि इसकी वजह ईमानदारी नहीं है। पढ़नी तो एक ही प्रति है। बाक़ी का क्या करेंगे? अचार डालेंगे? 


यदि ईमानदार होते तो चिप्स और पेप्सी की भी ऐसी व्यवस्था होती। चिप्स पाँच-दस लेकर आज नहीं तो हफ़्ते भर में तो निपटाई जा सकतीं हैं। और कुछ नहीं तो परिवार के अन्य सदस्यों में बाँटी जा सकतीं हैं। 


राहुल उपाध्याय । 20 दिसम्बर 2020 । सिएटल 








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