Sunday, December 13, 2020

13 दिसम्बर 2020

आज का रविवारीय सामूहिक भ्रमण बेलव्यू के रॉबिंसवुड पार्क के आसपास हुआ। वहाँ से हम दो मील दूर माइक्रोसॉफ्ट और बोइंग के दफ़्तर तक पहुँचे। वहाँ से एक चर्च के सामने होते हुए वापस आए।  


यह चर्च बहुत ही भब्य है, शानदार है। इसके सामने फ़व्वारा है, अमरीका का लहराता झंडा है। सारे चर्च इतने भव्य नहीं होते हैं। यह एक अपवाद है। इस चर्च के सामने लिखा भी है सिएटल टेम्पल। बहुत ही अनोखी बात लगी। टेम्पल का मतलब मंदिर समझा जाता है। या जहाँ पूजा की जाती हो। इस अर्थ में चर्च भी मंदिर ही है, इसमें दो राय नहीं। लेकिन फिर भी किसी मंदिर के सामने चर्च लिखा नहीं दिखेगा। हाँ अमृतसर के गुरुद्वारे को मंदिर ज़रूर कहते हैं। 


आज मैं एपल घड़ी द्वारा रास्ता नापना भूल गया था। एक घंटे बाद याद आया तो लगाया। 


अमेरिका में प्रायः हर दूसरे-तीसरे परिवार के घर में एक पालतू कुत्ता रहता है। उन्हें बाहर घूमाना ज़रूरी होता है। सारे कुत्तों को बाक़ायदा समझाया जाता है कि सभ्य समाज में कैसे रहा जाता है। अनावश्यक भोंकते नहीं हैं। किसी को परेशान नहीं करते। फिर भी मालिकों को सख़्त हिदायत है कि बाहर ले जाते वक़्त वे लीश पर रहे ताकि ग़लती से किसी अनजान व्यक्ति को काट न लें। 


पार्क में जाली से सुरक्षित एक क्षेत्र ऐसा बना दिया जाता है जहाँ वे कुत्तों को खुला छोड़ सकते हैं। राबिंसवुड पार्क में भी ऐसा क्षेत्र है। एक फ़ोटो में आप देख सकते हैं कि यदि दौड़भाग में कुत्ते को प्यास लग जाए तो उसके लिए एक विशेष नल का इंतज़ाम है जिससे कुत्ता आराम से पानी पी सके। 


यहाँ कुछ लोगों के पास अपने घोड़े भी हैं। उनके पास लम्बी-चौड़ी ज़मीन है जहाँ अस्तबल होते हैं। वे जब घोड़े लेकर घूमने निकलते हैं तो कई बार कोई सड़क भी पार करनी पड़ती है। ट्रेफ़िक को रोकने के लिए एक बटन दबाना पड़ता है, ताकि ट्रैफ़िक को लाल लाईट दी जा सके। ऐसे स्थानों पर बटन बहुत ऊँचा होता है ताकि घुड़सवार को उतर कर बटन न दबाना पड़े। 


यहाँ समाज के हर तबके का ख़याल रखा जाता है। यहाँ तक कि किसी गली में यदि कोई बहरा इंसान रहता है तो बड़ा सा ट्रैफ़िक साईन होगा कि यहाँ कोई बहरा है तो आप ध्यान से गाड़ी चलाए। 


नेत्रहीन भी सिनेमाघर में जाकर फ़िल्म का आनंद उठा सके, उसका भी इंतज़ाम है। जैसे हमें तेलुगु समझ न आए तो हम सबटाइटल से समझ जाते हैं। वैसे ही नेत्रहीन देख नहीं सकते हैं तो क्या हुआ, सुन तो सकते हैं। उन्हें एक विशेष हेडफ़ोन दिया जाता है जिसमें फ़िल्म के हर सीन का आँखों देखा हाल सुनाया जाता रहता है। जैसे एक ज़माने में हम क्रिकेट की कमेंट्री से कपिल देव के चौके-छक्के 'देखा' करते थे, वैसे ही ये फ़िल्म 'देखते' हैं। 


राहुल उपाध्याय । 13 दिसम्बर 2020 । सिएटल 


1 comment:

कबीर कुटी - कमलेश कुमार दीवान said...

सियट्ल भ्रमण का विवरण पढा अच्छा है