Thursday, December 17, 2020

माँ को मालूम है

आज यह पढ़कर किसी ने बहुत प्यारी बात कही: 'माँ को मालूम है कब साथ रहना ज़रूरी है।'


सच! हमें नहीं पता हमें कब क्या चाहिए। कहते भी हैं कि मन की हो तो अच्छा, न हो तो और भी अच्छा। 


सारी घटनाएँ जिन्होंने एक समय बहुत दुख दिया, आज वरदान लगतीं हैं। 


मेरा अभाव के जीवन में पलना, बाऊजी से आठ वर्ष की उम्र तक परिचय न होना, नवीं में असफल होना, इन सबसे मुझे वह सब मिला जो अन्यथा न मिलता। 


अभाव के जीवन - बिजली नहीं, नल नहीं, बाथरूम नहीं, फ़र्निचर नहीं - ने ऐसी शक्ति दी है कि मैं किसी भी परिस्थिति में ख़ुश रह सकता हूँ। 


मैं 34 महीने का था जब बाऊजी लंदन पी-एच-डी करने चले गए थे। इस कारण चौथी कक्षा तक मैं मम्मी-भाईसाब के साथ ननिहाल में रहा। एक भरा पूरा परिवार - मामासाब, मामीसाब, दासाब, बाई, दो मौसियाँ, छोटे मामासाब, छोटी मामीसाब, मासीजी की बेटी, मामासाब की बेटी, मामासाब के तीन बेटे - और उन सबका लाड़-दुलार मिला। मैं छोटा था सो सब को आप कहता था। सब मुझे तू कहते थे। जबकि दोनों मामीसाब मुझे आप कहतीं थीं। और कहतीं हैं। भानजे को हमेशा सम्मान से सम्बोधित किया जाता है। और सम्मान भी दिया जाता है। 


नवीं में असफल होने पर शम्भु दा के सम्पर्क में आया। प्रश्न पूछने की झिझक ख़त्म हुई। जिस विषय में कमजोर था, उसी में रूचि पैदा हुई, सफलता हासिल हुई। 


राहुल उपाध्याय । 17 दिसम्बर 2020 । सिएटल 








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