Friday, April 16, 2021

मेरे घर आईं मेरी प्यारी माँ

15 मार्च 2019 को मम्मी, मेरे साथ, सिएटल आईं। 16 साल के अकाल के बाद मेघ बरसे थे। 


तब यह रचना लिखी थी। 


15 फ़रवरी से उनका खाना-पीना बंद था। खा कुछ पाती नहीं थीं। जो भी पीती थी वो उलट देती थी। 24 मार्च से अस्पताल में इलाज चल रहा था। 


खाने-पीने का मन न हो तो उसका कोई इलाज नहीं है। इन्श्योर एक पेय पदार्थ है जिसमें सारे पौष्टिक तत्व हैं। उसे घूँट-घूँट पिलाकर कमज़ोरी दूर करने का प्रयास कर रहा हूँ। 17 मार्च से बिस्तर से उठ नहीं पाई हैं। 


कल, 15 अप्रैल 2021, को मम्मी को अस्पताल से घर लाया। 


यह रचना फिर से याद आ गई। 


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मेरे घर आईं मेरी प्यारी माँ 

करके कई सरहदें पार


उनकी पूजा में सेवा का है भाव

उनके भजनों में प्रभु का है गान

भोग ऐसे कि जैसे हों मिष्ठान 

घण्टी बजे तो लगे छेड़े सितार 


उनके आने से मेरे जीवन को

मिल गया ध्येय, मिल गई है राह

देख-भाल कर के उनकी जी नहीं भरता

कर लूँ मैं चाहे कितनी बार


जिन्होंने रखा था कभी मेरा ख़याल 

उनका रखूँ मैं बन के मशाल

ढाल उनकी मैं, मैं उनका साथी हूँ

साथ उनके हूँ सातों वार


पूछा उनसे कि पहले क्यों नहीं आईं

हँस के बोलीं कि मैं हूँ तेरा प्यार

मैं तेरे दिल में थी हमेशा से

घर में आई हूँ आज पहली बार


(साहिर से क्षमायाचना सहित)

राहुल उपाध्याय । 20 अप्रैल 2019 । सिएटल

https://mere--words.blogspot.com/2019/04/blog-post_60.html 


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राहुल उपाध्याय । 16 अप्रैल 2021 । सिएटल 




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