मेरे ऊपर एक नए दम्पति आए हैं। चन्द्र कला, और उसका पति। ढाई साल की बेटी भी है।
जैसा कि मैं सबसे कहता हूँ, मैंने चन्द्र कला से भी कहा कि मेरे अपार्टमेंट का दरवाज़ा हमेशा खुला रहता है। 24 घंटे। कभी ताला नहीं लगाया। सो जब चाहे आ जाना। मम्मी से भी मिल लेना।
सब के अपने-अपने गुट होते हैं। उसका भी है। उसके जैसी ही किसी तीन साल की बच्ची की माँ। उसके साथ वो आसपास टहलने निकल जाती है। बाक़ी वक़्त बच्ची को नहलाने-धुलाने-खिलाने-सुलाने में निकल जाता है। किस के पास कभी कोई वक़्त बचता है किसी और को अपने से जोड़ने का?
आज रविवार है। कल और आज, दो दिन, तापमान शिमला से लेकर कलकत्ता तक का हो गया। सुबह सात डिग्री, दोपहर 26 डिग्री। सिएटल में 26 होते ही त्राहि-त्राहि मच जाती है। ऐसे दिन साल में ले-दे कर सात-आठ ही होते हैं। इसलिए ज़्यादातर अपार्टमेंट में एयरकंडिशनर नहीं होता है। सेन्ट्रल हीटिंग तो अनिवार्य है और वह हर जगह होती है। एयरकंडिशनर हर दफ़्तर, मन्दिर, दुकान, बस, सिनेमाघर, पुस्तकालय में होता है। यानी हर सार्वजनिक स्थल पर। सो अधिकांश जनता किसी रमणीक जगह घूमने निकल जाती हैं या किसी सार्वजनिक स्थल को कूच कर जाती हैं। इन दिनों कोरोना के चक्कर में सारे सार्वजनिक स्थलों पर एकत्रित होना ठीक नहीं।
सो चन्द्र कला का गुट आज भंग हो गया। या तो उसकी सहेली घर में व्यस्त है या बाहर घूमने-घामने गई है। चन्द्र कला का पति सो रहा था। सो वो बच्ची को लेकर मेरे यहाँ आ गई।
कहने लगी घर पर ताला क्यों नहीं लगाते? मैंने सुना है यहाँ बहुत चोरी होती है।
मैंने कहा कि चोरी कहाँ नहीं होती? खून ख़राबा कहाँ नहीं होता? एयरपोर्ट से आधी रात को टैक्सी में लूटपाट कहाँ नहीं हुई?
सब बुरे काम सब जगह होते हैं। फिर भी हम विश्वास करते है। ट्रेन में जब सहयात्री अपना भोजन साझा करता है तो उसका विश्वास करते हैं।
विश्वास न हो तो दुनिया चल ही न पाए।
वैसे भी मेरे घर में चोरी लायक़ कुछ भी नहीं है। जो है सब फ़्री का है। कोई ले जाएगा तो फ़्री में दूसरा आ जाएगा।
जो फ़्री की वस्तुएँ नहीं हैं उन्हें कोई नहीं ले जाएगा। मेरे फ़ोटो। मम्मी-बाऊजी का कैनवास पर फ़ोटो। चम्मच। बर्तन। प्लेटें।
मेरे पास बच्चों को बहलाने का कोई साधन नहीं है। टेबल टेनिस का शौक़ है। सो उसकी गेंद और पैडल है। बच्ची को गेंद दी। वह कुछ देर तक उलझी रही। फिर फ़्रीज़ पर चिपकने वाले चुम्बकीय अल्फाबेट्स दिए। उसे 26 में से 23 की पक्की पहचान है। चाहे आड़ा-तिरछा-घुमा-फिरा के कैसे भी पड़ा हो पहचान लेती है। रंग भी सारे पता हैं।
भुने हुए चने दिए मुरमुरे के साथ। बैठकर एक-एक दाना शांति से खा गई।
मैं खाने में सिर्फ़ सब्ज़ी और सलाद खाता हूँ। सलाद में खीरा-टमाटर-शिमला मिर्च-अवाकाडो-नींबू का रस लेता हूँ। काट कर बनाया। बच्ची है इसलिए शिमला मिर्च छोड़ दी।
मुझे भरोसा नहीं था कि वो खाएगी। बड़े सलाद पसन्द नहीं करते हैं तो यह क्यों करेगी।
चन्द्र कला भी लगातार शिकायत कर रही थी ये कुछ खाती नहीं है। आज सुबह दो घंटे तक लगी रही तब जाकर आधा डोसा खाया। न दाल खाती है, न चावल। दूध भी चम्मच से पीती है। वह भी तब जब हर घूँट में ब्रिटानिया बिस्किट का टुकड़ा हो।
मैंने एक बोल में सलाद दिया चम्मच के साथ। वह ख़ुश हो कर खाने लगी। खाती ही रही।
चन्द्र कला ने पुलाव बनाया था। मैंने कहा कि मैं कोई अनाज नहीं खाता। लेकिन कोई प्रेम से बनाता है तो मना भी नहीं करता।
उसने कहा कि मैं लेकर आती हूँ। पति को बता भी दूँगी कि मैं यहाँ हूँ।
मुझे लगा कि माँ के जाते ही बच्ची रोने लगेगी।
लेकिन यह तो बहुत ख़ुश थी।
हम दोनों एक दूसरे को देख-देख कर हँसते जा रहे थे।
लग ही नहीं रहा था कि हम आज पहली बार मिले हैं। वह पहली बार इस अपार्टमेंट में आई है। पहली बार यह सलाद खा रही है।
बाद में उसने माँ के हाथ का पुलाव भी खाया। मेरा बनाया दही भी।
राहुल उपाध्याय । 18 अप्रैल 2021 । सिएटल
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