Friday, April 2, 2021

28 मार्च 2021

कैसी होली? कहाँ की होली?


होली जो बचपन में ही हो ली? 


होली का अमेरिका के उत्तरी-पश्चिमी भाग में होना, न होना बराबर है। फिर भी इंसान का क्या, वो तो जंगल में भी मंगल मना लेता है। गुरूकुल, एक स्थायी संस्था है, जो स्कूल सत्र के दौरान, हर रविवार को दो घंटे के लिए हिन्दी पढ़ना-लिखना सीखाती है। वह होली जून में मनाती है। तब अच्छी ख़ासी गर्मी हो जाती है। एकाध दिन एयरकंडिशनर चलाने का मौक़ा भी मिल जाता है। सिएटल शहर स्वत: वातानुकूलित है। पूरे विश्व में इससे बेहतर कोई शहर नहीं जहाँ इससे बेहतर मौसम हो, रोज़गार हो और शिक्षण संस्थान हो। कोई आश्चर्य नहीं कि विश्व के सबसे अधिक धनवान व्यक्तियों में से दो - बिल गेट्स और जेफ़ बेज़ोस, इसी शहर के निवासी हैं। 


अब यहाँ भारतीय मूल के लोगों की जनसंख्या बढ़ने लगी है। लिहाज़ा भारतीय परचूनी सामान की दुकानें भी बढ़ रही हैं। उन दुकानों में घुसते ही तीज-त्योहार आप पर टूट पड़ता है। इधर रंगों से बचो तो उधर ठंडाई पीछा करती है। उससे पीछा छुड़ाओ तो मिष्ठान गले पड़ जाते हैं। 


सो चाहे-अनचाहे बेमन से सूखे रंगों और बासी पकवानों के साथ परदेस में होली मन ही जाती है। 


आज का रविवारीय सामूहिक प्रात: भ्रमण मैंने अस्पताल के पास ही तय किया जहाँ पिछले चार दिन से मम्मी भर्ती है। वे क़रीब चालीस दिनों से कुछ खा नहीं रही है। कहती हैं इच्छा नहीं है। मुँह का निवाला मुँह में रह जाता है। उतरता नहीं। जूस पिलाओ तो उल्टी। 


हार कर 5 मार्च को इमरजेंसी वार्ड में ले गया। वहाँ दिमाग़, दिल, फेफड़े, गुर्दे, रक्तचाप, इकेजी सब सामान्य पाए गए सो घर लौटा दिए गए। 25 मार्च को गले में कैमरा डाल कर देखने पर पता चला कि खाने की नली में फ़ंगस है। पेट में अल्सर है। इसीलिए भर्ती है। 


होली कब होती है यह भी कुछ समझ नहीं आता। एक तो वैसे ही भारत और अमेरिका के दिन अलग होते हैं। यहाँ रवि तो वहाँ सोम। फिर दहन का एक दिन, रंग का अलग। दहन पहले यहाँ नहीं होता था। ज़्यादातर घर लकड़ी के हैं। जल कर राख होने का ख़तरा रहता है। प्रह्लाद बच सकते हैं। इमारतें नहीं। 


जनसंख्या बढ़ी सो मन्दिर भी बढ़े। मेरे ही घर के क़रीब 16 मन्दिर हैं। सबको अपनी अलग धाक जमानी होती है। कोई गणेश पूजा के झंडे गाड़ता है। कोई जन्माष्टमी के। कोई अखंड रामायण के। 


होलिका दहन भी प्रतिस्पर्धा में शामिल है। पिछले साल मम्मी और मैं गए थे। निकट के ही मन्दिर में। तब तक कोरोना के प्रकोप से मेरा दफ़्तर बन्द हो चुका था। घर से काम करने की हिदायत थी। मन्दिर प्रबंधकों ने तब तक कोई निर्णय नहीं लिया था। होली के बाद मन्दिर भी बन्द हो गए थे। 


अब खुल गए हैं। होलिका दहन भी हुआ। हम नहीं गए। मम्मी कहीं जाने-आने की स्थिति में नहीं हैं। होतीं तो भी नहीं जाते कोरोना की वजह से। 


भ्रमण की शुरुआत अस्पताल से एक मील की दूरी पर ही हुई। सब साथियों को आगाह किया कि मैं अस्पताल में मम्मी के साथ दिन-रात गुज़ार रहा हूँ। ताकि कोई आपत्ति हो तो बता दो। मुझसे दूरी बनाए रखना। 


हमेशा की तरह बहुत खूबसूरत नज़ारे देखे। सिएटल एक बन्दरगाह है। जहाँ एवर गिवन जैसे जहाज़ आते हैं। उनसे उतारे गए माल वाले डब्बे मालगाड़ी द्वारा विभिन्न क्षेत्रों में वितरित किए जाते हैं। 


पटरियाँ समुद्री तट पर हैं। बहुत मनोरम दृश्य रहा रेल के डिब्बों का लहरों के साथ ताल से ताल मिलाकर एक ही दिशा में आने का।


भ्रमण के दौरान कई विषयों पर संवाद होता है। पता चला कि शोभित की धर्मपत्नी अर्चना विधिवत रूप से होली के उपलक्ष्य में पकवान बना रही हैं। मुझे डायबीटीज़ है। फिर भी लालच बुरी बला। स्वयं ने प्रस्ताव रखा और धमक गया रसास्वाद करने। दही-बड़ा, गुझिया, रसगुल्ला और छोले-मटर खा कर तृप्त हुआ। 


असली पार्टी सोमवार, 29 मार्च, को थी। 


https://youtu.be/RDTy_GMdrY4 


राहुल उपाध्याय । 2 अप्रैल 2021 । सिएटल 







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