Tuesday, April 20, 2021

आक्सीजन

अजब संयोग है। या विडम्बना। 


कल पहली बार नर्स घर आई। हर हफ़्ते सोमवार की दोपहर 12 बजे आना तय हुआ था। अस्पताल से छुट्टी देने पर यह बताया गया था कि मम्मी को कोई तकलीफ़ न हो इसलिए नर्स आती रहेंगी। कोई ज़रूरत होने पर 24 घंटो खुली हॉट लाईन भी है। 


उसने ब्लड प्रेशर लिया, 122/78। दिल की धड़कन, 143। आक्सीजन, 90%


उसने डॉक्टर से फ़ोन पर बात की। आक्सीजन आर्डर किया। दो घंटे में घर पर मशीन आ गई। जिससे दिन-रात लगातार जितनी मात्रा में आक्सीजन चाहिए उतनी ली जा सकती है। 57 फ़ीट की नली भी साथ में। ताकि उसे मरीज़ से दूर कहीं लगा दिया जाए और मरीज़ मशीनी शोर से परेशान न हो। 


साथ ही दो टैंक। ताकि यदि बिजली चली जाए या मशीन काम करना बंद कर दे तो 12 घंटे तक निर्बाध रूप से जितनी आक्सीजन चाहिए ली जा सके। 


मम्मी के नथुनों में जब नली टिकाई जाने लगी मम्मी ने मना कर दिया। बहुत ज़ोर से झिड़क दिया। टैंक और मशीन अब भी यही है। क्या पता कब ज़रूरत पड़ जाए इसलिए छोड़ गए। 


मैं आक्सीमीटर ख़रीद कर ले आया। मम्मी का आक्सीजन स्तर 96 था। 


और उसी समय उज्जैन में कृष्णा के लिए परिजन भटक रहे थे एक अस्पताल से दूसरे अस्पताल आक्सीजन के लिए। 


राहुल उपाध्याय । 20 अप्रैल 2021 । सिएटल 







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