Wednesday, April 14, 2021

रामचरितमानस भाग 3

तीसरे भाग में प्रस्तुत हैं बालकाण्ड के बाक़ी के वे दोहे - जिन्होंने मुझे अत्यधिक प्रभावित किया:


241.2 में राम-लक्ष्मण सीता स्वयंवर की सभा में उपस्थित हैं और उन्हें देखकर सब क्या सोच रहे हैं, इसे व्यक्त करने के लिए गोस्वामीजी ने यह लिखा:


जिन्ह कें रही भावना जैसी। प्रभु मूरति तिन्ह देखी तैसी॥2॥

भावार्थ:-जिनकी जैसी भावना थी, प्रभु की मूर्ति उन्होंने वैसी ही देखी॥2॥ 

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246.3 में सीता जी को सबसे श्रेष्ठ बतलाने के लिए गोस्वामी जी कमाल की सृजनात्मकता दिखाते हैं। सरस्वती जी में भी ख़ामी ढूँढ ली। 


गिरा मुखर तन अरध भवानी। रति अति दुखित अतनु पति जानी॥

बिष बारुनी बंधु प्रिय जेही। कहिअ रमासम किमि बैदेही॥3॥

भावार्थ:-(पृथ्वी की स्त्रियों की तो बात ही क्या, देवताओं की स्त्रियों को भी यदि देखा जाए तो हमारी अपेक्षा कहीं अधिक दिव्य और सुंदर हैं, तो उनमें) सरस्वती तो बहुत बोलने वाली हैं, पार्वती अंर्द्धांगिनी हैं (अर्थात अर्ध-नारीनटेश्वर के रूप में उनका आधा ही अंग स्त्री का है, शेष आधा अंग पुरुष-शिवजी का है), कामदेव की स्त्री रति पति को बिना शरीर का (अनंग) जानकर बहुत दुःखी रहती है और जिनके विष और मद्य-जैसे (समुद्र से उत्पन्न होने के नाते) प्रिय भाई हैं, उन लक्ष्मी के समान तो जानकीजी को कहा ही कैसे जाए॥3॥

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259.3 में सीताजी के मन में यह विश्वास जगाया कि:


जेहि कें जेहि पर सत्य सनेहू। सो तेहि मिलइ न कछु संदेहू॥3॥

भावार्थ:- जिसका जिस पर सच्चा स्नेह होता है, वह उसे मिलता ही है, इसमें कुछ भी संदेह नहीं है॥3॥ 


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282.4 में पोद्दार जी परशुराम के नौ गुणों के नाम बताते हैं। 


देव एकु गुनु धनुष हमारें। नव गुन परम पुनीत तुम्हारें॥

सब प्रकार हम तुम्ह सन हारे। छमहु बिप्र अपराध हमारे॥4॥

भावार्थ:-हे देव! हमारे तो एक ही गुण धनुष है और आपके परम पवित्र (शम, दम, तप, शौच, क्षमा, सरलता, ज्ञान, विज्ञान और आस्तिकता ये) नौ गुण हैं। हम तो सब प्रकार से आपसे हारे हैं। हे विप्र! हमारे अपराधों को क्षमा कीजिए॥4॥


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317.1 में आश्चर्य होता है कि राम कभी घोड़े पर सवार हुए थे। किसी चित्रकार ने ऐसा कोई चित्र नहीं बनाया। एक और जानकारी मिली कि शिवजी के तीन नहीं पन्द्रह नेत्र हैं। 


जेहिं बर बाजि रामु असवारा। तेहि सारदउ न बरनै पारा॥

संकरु राम रूप अनुरागे। नयन पंचदस अति प्रिय लागे॥1॥


भावार्थ:-जिस श्रेष्ठ घोड़े पर श्री रामचन्द्रजी सवार हैं, उसका वर्णन सरस्वतीजी भी नहीं कर सकतीं। शंकरजी श्री रामचन्द्रजी के रूप में ऐसे अनुरक्त हुए कि उन्हें अपने पंद्रह नेत्र इस समय बहुत ही प्यारे लगने लगे॥1॥


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317.2 और 317.3 में पता चलता है कि ब्रह्मा जी को 8 नेत्र भी कम पड़ रहे हैं राम जी के रूप को निहारने के लिए। स्वामी कार्तिक के 12 नेत्र हैं। इन्द्र के एक हज़ार। 


हरि हित सहित रामु जब जोहे। रमा समेत रमापति मोहे॥

निरखि राम छबि बिधि हरषाने। आठइ नयन जानि पछिताने॥2॥


भावार्थ:-भगवान विष्णु ने जब प्रेम सहित श्री राम को देखा, तब वे (रमणीयता की मूर्ति) श्री लक्ष्मीजी के पति श्री लक्ष्मीजी सहित मोहित हो गए। श्री रामचन्द्रजी की शोभा देखकर ब्रह्माजी बड़े प्रसन्न हुए, पर अपने आठ ही नेत्र जानकर पछताने लगे॥2॥


* सुर सेनप उर बहुत उछाहू। बिधि ते डेवढ़ लोचन लाहू॥

रामहि चितव सुरेस सुजाना। गौतम श्रापु परम हित माना॥3॥


भावार्थ:-देवताओं के सेनापति स्वामि कार्तिक के हृदय में बड़ा उत्साह है, क्योंकि वे ब्रह्माजी से ड्योढ़े अर्थात बारह नेत्रों से रामदर्शन का सुंदर लाभ उठा रहे हैं। सुजान इन्द्र (अपने हजार नेत्रों से) श्री रामचन्द्रजी को देख रहे हैं और गौतमजी के शाप को अपने लिए परम हितकर मान रहे हैं॥3॥


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329.1 में पता चला कि भोजन के पहले पाँच कौर पाँच मंत्रों के उच्चारण के साथ खाए जाते हैं। 

* पंच कवल करि जेवन लागे। गारि गान सुनि अति अनुरागे।

भाँति अनेक परे पकवाने। सुधा सरिस नहिं जाहिं बखाने॥1॥


भावार्थ:-सब लोग पंचकौर करके (अर्थात 'प्राणाय स्वाहा, अपानाय स्वाहा, व्यानाय स्वाहा, उदानाय स्वाहा और समानाय स्वाहा' इन मंत्रों का उच्चारण करते हुए पहले पाँच ग्रास लेकर) भोजन करने लगे। गाली का गाना सुनकर वे अत्यन्त प्रेममग्न हो गए। अनेकों तरह के अमृत के समान (स्वादिष्ट) पकवान परसे गए, जिनका बखान नहीं हो सकता॥1॥


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329.2 में जानकारी मिली की दावत में चार प्रकार के भोजन होने चाहिए। 


परुसन लगे सुआर सुजाना। बिंजन बिबिध नाम को जाना॥

चारि भाँति भोजन बिधि गाई। एक एक बिधि बरनि न जाई॥2॥


भावार्थ:-चतुर रसोइए नाना प्रकार के व्यंजन परसने लगे, उनका नाम कौन जानता है। चार प्रकार के (चर्व्य, चोष्य, लेह्य, पेय अर्थात चबाकर, चूसकर, चाटकर और पीना-खाने योग्य) भोजन की विधि कही गई है, उनमें से एक-एक विधि के इतने पदार्थ बने थे कि जिनका वर्णन नहीं किया जा सकता॥2॥


राहुल उपाध्याय । 14 अप्रैल 2021 । सिएटल 



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