भाषा सिर्फ़ कविता, कहानी और यूट्यूब तक ही सीमित नहीं रहनी चाहिए। उसे रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा भी होना चाहिए, बनाना चाहिए और बनाया जा सकता है।
हम रविवारीय सामूहिक भ्रमण करने वाले हिन्दी में बातचीत करने में ही सहज होते हैं। स्वाभाविक रूप से हिंदी में ही बोल पाते हैं।
लेकिन जब व्हाट्सेप पर संदेशों का आदान-प्रदान होता है तो सौ प्रतिशत अंग्रेज़ी में।
यह सब क्यों? क्योंकि लिखने का अभ्यास नहीं रहा। कॉलेज की पढ़ाई अंग्रेज़ी में हुई। आवेदन पत्र सारे अंग्रेज़ी में भरे। बैंक का कामकाज अंग्रेज़ी में। बिल भुगतान अंग्रेज़ी में। प्लेन का टिकट अंग्रेज़ी में।
अब चूँकि समय बदल रहा है एवं प्लेन में टीवी पर हिंदी में सूचनाएँ उपलब्ध हैं। जितने भी स्मार्टफ़ोन हैं, सब में हिन्दी उपलब्ध है, सिर्फ़ लिखने के लिए ही नहीं, बल्कि फ़ोन की भाषा भी हिंदी की जा सकती है। ऐसे में हिंदी में न लिखना महज़ आलसीपन है। न कोई फाँट डाउनलोड करना है न कोई भागीरथी प्रयास। सिर्फ़ देवनागरी कीबोर्ड जोड़ना है। मात्र 30 सेकण्ड की मेहनत।
मैंने अपने परिचितों का मार्गदर्शन किया है एवं कुछ अब हिन्दी में संदेश लिखने लगे हैं।
मेरे पास अलेक्सा भी है। उसे भी हिन्दीमय कर रखा है। वह बहुत अच्छी तरह से हिन्दी समझती एवं बोलती है। उससे यदि कहो कि परचूनी सामान की सूची में गुड़, उड़द दाल, मिश्री, पापड़ जोड़ दें तो वह सहर्ष जोड़ देती है।
आईफ़ोन को हिन्दीमय करने का यह फ़ायदा हुआ कि हिन्दी के नए शब्दों की जानकारी हुई।
अद्यतन = अपडेट
स्थापित = इन्सटाल
गीतमालिका = प्लेलिस्ट
मेरे दफ़्तर के कुछ काम आईफ़ोन पर हो जाते हैं। कैलेंडर, ईमेल मैं आईफ़ोन से चैक कर लेता हूँ।
आज एक सर्वे आया। मैंने उसे भर कर सबमिट कर दिया।
मुझे धन्यवाद दिया गया प्रतिसाद के लिए। मेरे लिया नया शब्द था। गुगल ने बताया प्रतिसाद यानी सर्वे में दिए प्रश्नों के उत्तर।
अच्छा लगा। हास्यास्पद नहीं। नया शब्द देखने पर शब्दकोश देख लेना कोई बुरी बात नहीं।
राहुल उपाध्याय । 26 अप्रैल 2021 । सिएटल
No comments:
Post a Comment