Thursday, October 8, 2020

अमेरिका में चुनाव - भाग 1

अमेरिका में हर चार साल नवम्बर के पहले मंगलवार को राष्ट्रपति पद के लिए मतदान होता है। और उस दिन छुट्टी नहीं होती है। और न ही कोई संस्था अपने कर्मचारियों को छुट्टी देती है कि वे अपने मताधिकार का आसानी से लाभ उठा सकें। 


हर नागरिक को मतदान का अधिकार है चाहे वे किसी अन्य शहर, राज्य या विदेश में हों। सब डाक द्वारा मतदान कर सकते हैं। हर वर्ष एक बड़ी संख्या में ऐसे मतदान किया जाता है। अमेरिका के सैनिक विश्व के विभिन्न कोनों में आज भी तैनात हैं। और वे सब इसी प्रकार मतदान करते हैं। 


आश्चर्य की बात यह है कि जिस दिन मतदान होता ही उसी शाम पक्का अनुमान हो जाता है कि कौन जीता। जबकि उस दिन शाम पाँच बजे तक आप डाक में अपना मत डाल सकते हैं। यह मेरी समझ से बिलकुल परे था। कि अभी तो आपने मेरा लिफ़ाफ़ा खोला नहीं और परिणाम कैसे तय हो गया?


होता यह है कि उन्हें अनुमान है कि यदि एक प्रत्याशी हज़ार वोट से जीत रहा है और सौ-पचास लिफ़ाफ़े ही खोलने बाक़ी रह गए हैं तो क्या फ़र्क़ पड़ता है?


राष्ट्रपति का चुनाव भी सीधा चुनाव नहीं है। इसके लिए हर राज्य से प्रतिनिधि चुने जाते हैं जो दिसम्बर में असली राष्ट्रपति चुनते हैं। लेकिन आमतौर पर जिसे जनता ने चुना, उसे ही प्रतिनिधि भी चुनते हैं। 


एक और बात यह कि पूरे देश से कुल मिलाकर 538 वोट बनते हैं। जिसने 270 पा लिए वो विजयी। 


हर राज्य के जनसंख्या के आधार पर वोट हैं। कैलिफ़ोर्निया के, 55, सबसे ज़्यादा। अलास्का के, 3, सबसे कम। अब यदि कैलिफ़ोर्निया के मतदान में एक हज़ार एक नागरिकों ने प्रत्याशी 'क' को चुना, और एक हज़ार ने प्रत्याशी 'ख' को तो सारे वोट प्रत्याशी 'क' को मिलते हैं। 'ख' के खाते में कुछ भी नहीं। 


इसी प्रकार यदि प्रत्याशी 'क' हर बड़े राज्य में एक वोट से भी जीत जाए तो वो राष्ट्रपति बन सकता है। चाहे अन्य राज्य में कोई भी नागरिक उसे न चुने। 


एक और ख़ास बात। वह यह कि अधिकांश राज्य पहले से ही मान लिए गए हैं कि वे किसे वोट देंगे। ये राज्य प्रत्याशी देखकर वोट नहीं देते हैं। बल्कि ये पार्टी के प्रति समर्पित हैं। जो डेमोक्रेटिक पार्टी को देते आ रहे हैं, वे डेमोक्रेटिक पार्टी को ही देते जाएँगे। जो रिपब्लिकन को देते हैं, वे रिपब्लिकन को ही देंगे। 


मेरे राज्य, वाशिंगटन, में तय है कि सारे वोट डेमोक्रेटिक पार्टी को ही मिलेंगे।


जिनकी राजनीति में ज़्यादा दिलचस्पी नहीं है वे वोट ही नहीं देते इसी कारण, इन राज्यों में, कि परिणाम तो बदलेगा नहीं। 


कुछ राज्य हैं जिनका पूर्वानुमान लगाना मुश्किल है। इसलिए सारी जंग वहीं छिड़ती है। वे राज्य हैं: ओहायो, मिशिगन, पेन्सिलवेनिया, और फ़्लोरिडा। 


अन्य देशों के लोग जो यहाँ पर कई वर्षों तक रहने के बाद नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं, उन्हें भी मताधिकार प्राप्त है। उनके वोट की क़ीमत भी उतनी है जितनी किसी अन्य नागरिक की। 


लेकिन नागरिकता हासिल करने का लक्ष्य मताधिकार प्राप्त करना नहीं था। आमतौर पर लक्ष्य होते हैं आवागमन की सुविधा, एवं नया व्यवसाय करने में आसानी। 


मतदान करना भी एक ज़िम्मेदारी का काम है। जैसे कि बच्चे का कॉलेज में दाख़िला कराना। क्या पता कौनसा सही निकलेगा? लेकिन इसे नज़रअंदाज़ भी नहीं कर सकते। 


लेकिन वोट न डालने के कई कारण पहले ही बता चुका हूँ। इसीलिए अमेरिका इतना विकसित है लेकिन अभी भी मतदान की स्थिति दयनीय है। जबकि मताधिकार के लिए कई आंदोलन हुए, जाने गईं तब जाकर प्रत्येक नागरिक को समान मताधिकार मिले। 


एक दृष्टिकोण से यह ख़ुशहाली का सूचक भी है। यानी जनता इतनी संतुष्ट है कि उन्हें तख्ता पलटने की या बरकरार रखने की कोई परवाह नहीं है। 


और यह भी सच है कि जिन बातों के लिए अमेरिका विश्वविख्यात है, उन सबमें किसी राष्ट्रपति का हाथ नहीं रहा: बोईंग, फ़ोर्ड, जी-एम, ए-टी-एण्ड-टी, आई-बी-एम, मेक्डॉनल्ड्स, माइक्रोसॉफ़्ट, फ़ेसबुक, गुगल, अमेज़ॉन। 


इन्हीं सब की उधेड़बुन में यह रचना लिखी थी:


डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते, हमें क्या

ये मुल्क नहीं मिल्कियत हमारी

हम इन्हें समझें, हम इन्हें जानें 

ये नहीं अहमियत हमारी


तलाश-ए-दौलत आए थे हम

आजमाने किस्मत आए थे हम

आते हैं खयाल हर एक दिन

जाएँगे अपने घर एक दिन

डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते

बदलेगी नहीं नीयत हमारी


ना तो हैं हम डेमोक्रेट

और ना ही हैं हम रिपब्लिकन

बन भी गये अगर सिटीज़न

बन न पाएँगे अमेरिकन

डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते

छुपेगी नहीं असलियत हमारी


न डेमोक्रेट्स के प्लान

न रिपब्लिकन्स के उद्गार

कर सकते हैं

हमारा उद्धार

डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते

पूछेगा नहीं कोई खैरियत हमारी


हम जो भी हैं

अपने श्रम से हैं

हम जहाँ भी हैं

अपने दम से हैं

डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते

काम आयेगी बस काबिलियत हमारी


फूल तो है पर वो ख़ुशबू नहीं

फल तो है पर वो स्वाद नहीं

हर तरह की आज़ादी है

फिर भी हम आबाद नहीं

डेमोक्रेट्स जीते या रिपब्लिकन्स जीते

यहाँ लगेगी नहीं तबियत हमारी


राहुल उपाध्याय । 8 अक्टूबर 2020 । सिएटल 


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