आज रवीन्द्र जैन की पुण्यतिथि है। पाँच साल पहले इनके निधन पर इतना दुःख हुआ था कि जैसे कोई अपना चला गया हो।
मैं प्रतिगीत शुरू से ही लिखता आ रहा हूँ। समझ लीजिए बच्चे की तीन पहिए वाली साइकल। भाव-धुन-गायकी सब पहले से मौजूद है, बस कुछ शब्दों की ही हेराफेरी करनी होती है।
प्रतिगीत तभी प्रभावी होते हैं जब मूल गीत की जानकारी हो। आजकल की पीढ़ी उन गीतों से अनभिज्ञ है। अंत: उमेश का इन प्रतिगीतों को गा कर प्रस्तुत करना एक वरदान साबित हुआ।
इस प्रतिगीत से ही हमारी जोड़ी का शुभारम्भ हुआ।
राहुल उपाध्याय । 9 अक्टूबर 2020 । सिएटल
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