Sunday, October 25, 2020

अमेरिका में चुनाव - भाग 3

मेरे राज्य, वाशिंगटन, में मतदान पिछले कई वर्षों से डाक से ही होता आया है। बाक़ी राज्यों में दोनों - डाक या मतदान केंद्र - का प्रावधान है। 


डाक में सुविधा यह है कि किसी क़तार में समय बर्बाद नहीं होता। लेकिन दिक़्क़त यह कि आपको पढ़ना-लिखना आना चाहिए। 


अधिकतर राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्ह ऐसे होते हैं कि हर किसी को समझ आ जाए और याद रहे। यहाँ के दो प्रमुख दलों के चुनाव चिन्ह हैं- गधा (डेमोक्रेट) और हाथी (रिपब्लिकन)। 


ये यदि भारत में होते तो कई चुटकुले और कार्टून बन चुके होते। यहाँ कोई किसी को इन जानवरों के नाम लेकर अपशब्द नहीं कहता है। 


लेकिन मतपत्र पर चुनाव चिन्ह कहीं नहीं है। क्योंकि ये अधिकारिक नहीं हैं। सो पढ़ना न आए तो काला अक्षर भैंस बराबर। (चुनाव अधिकारी से सम्पर्क कर सुविधा प्राप्त की जा सकती है।)


और लिखना ना आए तो भी बेकार। बिना हस्ताक्षर मतदान वैध नहीं। (दो गवाह हो तो वे हस्ताक्षर कर सकते हैं आपके चिन्ह को वैध साबित करने के लिए)


लिखना आए तो भी मुसीबत। मेरे बड़े बेटे ने छ: वर्ष पहले अपना नाम पंजीकृत करवाया था। तब के हस्ताक्षर में और आज के में काफ़ी अंतर है। सो उसका मत अवैध घोषित किया जाएगा। पिछले राज्य स्तरीय चुनावों में ऐसा हो चुका है। वह नए हस्ताक्षर अद्यतन करवा सकता है। पर इतनी मेहनत किसलिए? हमारे राज्य से बाईडेन की जीत सुनिश्चित जो है। 


यह है लोकतंत्र। 


हस्ताक्षर कर भी लो तो एक और रोड़ा। स्याही का रंग या तो नीला हो या काला। वरना अवैध। 


मेरे जिले - किंग काउंटी - में कोई भी रंग की स्याही स्वीकार्य है, चूँकि यह समृद्ध जिला है। (यहाँ माइक्रोसॉफ़्ट और अमेज़ॉन जैसी कम्पनियों के मुख्यालय हैं। उनके कर्मचारी यहाँ रहते हैं।  विश्व के सबसे धनाड्यों में से दो - बिल गेट्स और जेफ बेॹोस - यहीं रहते हैं। सब से अच्छा ख़ासा विक्रय कर एवं सम्पत्ति कर मिलता है। यहाँ राज्य स्तरीय आयकर नहीं है। सिर्फ़ राष्ट्रीय आयकर।) इस कारण इनके पास ऐसे उपकरण हैं जो किसी भी रंग को पढ़ सकते हैं। अन्य जिलों में ऐसा नहीं है। 


एक और बात। चारों ओर डंका है ट्रम्प और बाईडेन का, लेकिन मतपत्र पर इनके साथ चार उम्मीदवार और हैं। 


मतपत्र पर नाम आ जाना कोई आसान काम नहीं है। बावजूद इसके ये हाशिए पर हैं और रहेंगे। इनका कोई साक्षात्कार नहीं लेता। इनके कच्चे चिठ्ठे नहीं कोई खोलता। 


यह हाल है लोकतंत्र का। 


कहने को कोई भी जीत सकता है। पर असलियत यह है कि सम्भावना सिर्फ़ बाईडेन और ट्रम्प की है। 


मेरे राज्य में तो इसकी भी गुंजाइश नहीं है। यहाँ से बाईडेन की जीत सुनिश्चित है। क्योंकि इस राज्य ने हमेशा डेमोक्रेटिक दल के उम्मीदवार को ही वोट दिया है, चाहे वो कोई भी हो। 


और हाँ, संविधान के अनुसार कोई भी मतदाता किसी का भी नाम लिखकर उसे अपना मत दे सकता है। ये भारत के 'नोटा' से एक कदम आगे है, यानी कोई भी पसन्द नहीं लेकिन इसे बना दो राष्ट्रपति। 


यह बात हास्यास्पद लग सकती है। कि जब बाकी चारों की कोई सम्भावना नहीं है तो इस हाथ से लिखे व्यक्ति की तो जीत असम्भव है। 


लेकिन मान लें कोई अप्रत्याशित घटना घट जाए और जिनके नाम लिखे हों वे उपलब्ध न हो तो? तब जनमानस में से कोई सामने आ सकता है। जैसे कि बिल गेट्स। 


इसलिए यह प्रावधान रखा गया। 


मतपत्र में राष्ट्रपति के अलावा बाक़ी के भी चुनाव शामिल हैं। जैसे मेरे यहाँ, राज्यपाल, उप राज्यपाल, आदि। 


यह मतपत्र मेरे ज़िले का है। इसी प्रकार हर जिले का अपना मतपत्र है। 


यह मतपत्र हिन्दी में उपलब्ध नहीं है।  स्थानीय अधिकारी से जाँच-पड़ताल करने से पता चलेगा कि क्या कोई अधिकारिक सहायता उपलब्ध है हिन्दी में? आमतौर पर हर हिन्दीभाषी का कोई न कोई परिचित निकल ही आता है जिसे अंग्रेज़ी समझ आती है। सो शायद कोई आवश्यकता ही न हो। 


राहुल उपाध्याय । 25 अक्टूबर 2020 । सिएटल 



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