Friday, October 9, 2020

अमेरिका में चुनाव- भाग 2

जैसा कि मैंने कहा कि जनता को संतोष है कि सब ठीक ही चल रहा है। 


हर बार चुनाव के मुद्दे ऐसे होते हैं जिनसे आम आदमी का कुछ लेना देना नहीं है। 


रोटी, कपड़ा और मकान की समस्या न के बराबर है। हर वयस्क व्यक्ति एक गाड़ी अपने बजट के मुताबिक़ ख़रीद सकता है, और ख़रीद ही लेता है। हवा, पानी सब साफ़ है। बिजली की कोई कमी नहीं। 


बेरोज़गारी कितनी भी हो। हमेशा मुद्दा बनती है। लेकिन सब जानते हैं कि राष्ट्रपति का इसमें कोई हाथ नहीं है। हर व्यक्ति अपने जीवनकाल में कम से कम एक बार नौकरी से बर्खास्त होता ही है। उसे ले-ऑफ़ कहते हैं। 


लेकिन हर कोई छोटा-मोटा काम करके अपना घर चला  लेता है। परिवार छोटा ही होता है। और हर वयस्क धनोपार्जन करता है। 


इसके अलावा हर चुनाव में गर्भपात भी एक मुद्दा बनता है। रिपब्लिकन के लिए यह एक हत्या है। डेमोक्रेट के लिए यह महिला का अधिकार है, वह जो चाहे सो करे। 


फिर से वही परिणाम। राष्ट्रपति किस पार्टी का है, उससे भी महिला के अधिकार की क्षति नहीं होती। सिवाय इसके कि केन्द्रीय सरकार के अनुदान कम हो जाते हैं। कुछ क्लिनिक बंद हो जाते हैं। गरीब लोगों के लिए थोड़ी असुविधा होती है। 


फिर आते हैं अंतरराष्ट्रीय मुद्दे। कभी रूस, कभी अफ़ग़ानिस्तान, कभी इरान, कभी इराक़, कभी चीन। कोई न कोई खलनायक हमेशा मिल ही जाता है। पिछले तीन साल से रूस हावी था। आजकल चीन है। 


स्वास्थ्य सेवा पर कुछ सालों से चिन्ता व्यक्त की जा रही है। समाधान किसी के पास नहीं। और वैसे भी यह ज्वलंत मुद्दा नहीं। 


राष्ट्रपति ट्रम्प की एक खूबी यह है कि वह एक ट्वीट से किसी का भी किसी भी विषय से ध्यान भटका सकते हैं। 


इन दिनों बस यही ख़ास मुद्दा है कि वे मास्क क्यों नहीं पहनते हैं। बीमार हुए तो पृथक वास में क्यों नहीं रहते? वापस घर क्यों आ गए? घर आ गए तो घर में रहें। लोगों से क्यों मिलते हैं? क्यों मिलना चाहते हैं? क्यों ज़ूम पर बाईडेन से वाद-विवाद नहीं कर सकते हैं?


बाक़ी सारे मुद्दे हवा हो गए हैं। आतंकवाद? यह किस चिड़िया का नाम है?


बाईडेन की सरकार कैसी होगी, इसका आभास किसी को नहीं है। और बाईडेन भी समझाना ज़रूरी नहीं समझते। वे ट्रम्प नहीं हैं, क्या इतना ही काफ़ी नहीं है?


इन सबको देखकर आमतौर पर जो राष्ट्रपति होता है वही दोबारा राष्ट्रपति बनता है। (इसीलिए दो बार से ज़्यादा कोई राष्ट्रपति न बन सके, ऐसा संविधान में संशोधन किया गया।) कुछ अपवाद हैं लेकिन वह भी तब जब कोई बड़ा काण्ड हो जाए। बुश हारे इराक़ के कारण। कार्टर हारे इरान के कारण। 


इस बार यदि ट्रम्प हारेंगे तो कोरोना को ज़िम्मेदार माना जाएगा। लेकिन उनकी हार की सम्भावना कम है। कोरोना से जीतने का गुर किसी प्रशासन के पास नहीं है। 


राहुल उपाध्याय । 9 अक्टूबर 2020 । सिएटल 


No comments: