Wednesday, October 21, 2020

पहली पतझड़

यह मेरा पहला फ़ोटो हैं अमेरिका के पतझड़ के साथ। तब मुझे भारत से आए सिर्फ़ दो महीने ही हुए थे। 


सिनसिनाटी विश्वविद्यालय की यह परम्परा रही है कि हर नए विदेशी छात्र से एक लोकल परिवार को जोड़ दिया जाता है ताकि नवआगंतुक खुद को अकेला न समझे। 


मुझे यह परम्परा बहुत अच्छी लगी। उन्होंने प्रथम वर्ष मेरा बहुत ख़याल रखा। मुझे लेने आते थे, अपने घर कुछ समय बीताने, खाना खिलाने के बाद, वापस छोड़ भी जाते थे। 


यह फ़ोटो उनके इण्डियना राज्य स्थित अवकाश गृह का है। कैमरा उन्हीं का है। प्रिंट भी उन्होंने ही दिया था। 


उस दिन मेरा जन्मदिन भी था। और धन्यवाद ज्ञापन दिवस की पूर्व संध्या भी। 


बहुत मीठा दिन। 26 नवम्बर 1986। 


तब से मैं सिनसिनाटी, इण्डियनापोलिस, फिलाडेल्फिया, टोराण्टो, और सिएटल के पतझड़ का दीवाना हूँ। 


धन्यवाद ज्ञापन दिवस हर वर्ष नवम्बर के चौथे गुरूवार को मनाया जाता है। यही एकमात्र दिन है जिसकी दो दिन (गुरू-शुक्र) की छुट्टियाँ एक साथ मिलतीं हैं। यानी चार दिन की। क्योंकि शनि-रवि को वैसे भी छुट्टी रहती है। 


गुरूवार की छुट्टी परिवार के संग भोजन करने के लिए होती है। परम्परा अनुसार उस दिन माँसाहारियों के यहाँ टर्की पकाई जाती है। एक टर्की इतनी बड़ी होती है कि एक अकेला परिवार उसे खा नहीं सकता। इसलिए यह सबसे उपयुक्त दिन होता है। इतनी बड़ी टर्की को पकाने में भी घण्टों लगते हैं। सो मिल जुल कर पकाने के लिए भी यह श्रेष्ठ दिन रहता है। 


उस दिन रेस्टोरेन्ट बंद रहते हैं। सारे बाज़ार, मॉल सब बंद रहते हैं। अमेरिका में चौबीसों घण्टे खुलने वाली दुकानें भी बंद रहतीं हैं। हर जगह सन्नाटा। 


परिवार एक दूसरे से मिलने के लिए हज़ारों मीलों की यात्राएँ तय करते हैं। बुधवार के दिन हर एयरपोर्ट पर बहुत भीड़ रहती है आने-जाने वालों की। लेने-छोड़ने वालों की। 


जिन परिवारों में खटपट है, या टूट चुके हैं, या बिखर चुके हैं, या आने में असमर्थ हैं, उनके लिए यह दिन अत्यंत कष्टदायक होता है। कई लोग निराशा की गिरफ़्त में आ जाते हैं। 


शुक्रवार को छुट्टी इसलिए होती है कि क्रिसमस में सिर्फ़ 4 हफ़्ते रह गए हैं, जिसे जो उपहार देना हो, ख़रीद लें। इसलिए जितना सन्नाटा गुरूवार को था, उतनी ही ज़्यादा भीड़ होती है शुक्रवार को। हर दुकान की होड़ रहती है कि उसकी ज़्यादा बिक्री हो। इसलिए कुछ दुकानें सामान इतना सस्ता देने की घोषणा करते हैं कि लम्बी क़तारें लग जातीं हैं दुकान खुलने के कुछ घण्टों पहले से ही। ग़ज़ब का मेला होता है। 


इरादा उपहार के लिए ख़रीददारी का होता है। लेकिन अपने लिए भी सस्ते दाम पर कुछ मिल जाए तो हर्ज ही क्या है?


राहुल उपाध्याय । 21 अक्टूबर 2020 । सिएटल 



2 comments:

रवि रतलामी said...

तो, इस बार हमारे लिए भी कुछ खरीद लीजिए! 😁

Unknown said...

मजा आ गया राहुल जी।