Wednesday, October 28, 2020

28 अक्टूबर 2020

विजयदशमी/दशहरे पर आमतौर पर कई चिर-परिचित गीत सुनने को मिलते हैं। ज़्यादातर दीवाली की ख़ुशियों से सम्बंधित होते हैं। या फिर राम या देवी के भजन। 


शायद ही कभी यह गीत इस मौक़े पर सुना गया हो। यह देशभक्ति से ओतप्रोत हैं। हर 15 अगस्त, 26 जनवरी, विजय दिवस आदि पर सुना जाता है। 


जैसा कि आमतौर पर होता है, गीत की हर पंक्ति पर ध्यान बहुत कम जाता है। यहाँ तो लगता है पूरा पद ही नज़रअंदाज़ हो गया। 


चौथा पद पूरी रामायण सामने लाकर रख देता है। कैफ़ी के शब्द, रफ़ी की आवाज़ और मदन मोहन का संगीत एक ऐसी ऊर्जा भर देता है कि रोंगटे खड़े हो जाते हैं। 


कर चले हम फ़िदा जान-ओ-तन साथियों 

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों


साँस थमती गई नब्ज़ जमती गई

फिर भी बढ़ते कदम को न रुकने दिया

कट गये सर हमारे तो कुछ ग़म नहीं

सर हिमालय का हमने न झुकने दिया

मरते-मरते रहा बाकापन साथियों, 

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों


ज़िंदा रहने के मौसम बहुत हैं मगर

जान देने की रुत रोज़ आती नहीं

हुस्न और इश्क़ दोनों को रुसवा करे 

वो जवानी जो खूँ में नहाती नहीं

आज धरती बनी है दुल्हन साथियों

अब तुम्हारे हवाले वतन साथियों


राह क़ुर्बानियों की न वीरान हो

तुम सजाते ही रहना नए क़ाफ़िले

फ़तह का जश्न इस जश्न के बाद है

ज़िंदगी मौत से मिल रही है गले

बाँध लो अपने सर से कफ़न साथियों


खेंच दो अपने खूँ से ज़मीं पर लकीर

इस तरफ़ आने पाए न रावण कोई

तोड़ दो हाथ अगर हाथ उठने लगे

छूने पाये न सीता का दामन कोई

राम भी तुम तुम्हीं लक्ष्मण साथियों


https://youtu.be/nBbmW9JpbUg 


राहुल उपाध्याय । 28 अक्टूबर 2020 । सिएटल 


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