Tuesday, September 29, 2020

29 सितम्बर 2020

आज, 29 सितम्बर, का क्या महत्व है मेरे जीवन में और इस तस्वीर के पीछे की कहानी मैं लिख चुका हूँ पहले। न मिली हो, न पढ़ी हो, या याद न हो, तों यहाँ देख लें:

https://rahul-upadhyaya.blogspot.com/2020/09/29-1966.html?m=1 


कितनी अजीब बात है कि 54 वर्ष पहले ली गई तस्वीर आज भी सहज उपलब्ध है। जबकि पिछले दस साल में ली गईं तस्वीरें न जाने किस फ़ोल्डर, किस अकाउंट, किस क्लाउड में फँसी है पता ही नहीं। 


यह भी बहुत अजीब है कि जाने की तिथि याद है। उनके आने की नहीं। चाँद पर उतरना भी हमें याद है। वापस आना नहीं (24 जुलाई 1969)। 


जिस दिन बाऊजी लंदन गए, मैं तीन वर्ष का भी नहीं हुआ था। वह दिन मुझे बिलकुल याद नहीं है। 


जिस रात वे लौटे, वह अच्छी तरह से याद है। तब मैं छ: साल का था। तब तक उनके लंदन से भेजे रंगीन पोस्टकार्डों से परिचित था। छोटी मौसी पढ़कर सुनातीं थीं। भाईसाब से शायद लिखवातीं भी थीं कि 'सात समंदर पार से, गुड़ियों के बाज़ार से, बाऊजी जल्दी आ जाना।'


रतलाम स्टेशन पर खूब भीड़ थी। आमतौर पर ताँगे से घर जाते थे। उस दिन किसी सरकारी जीप से गए। पहली बार बैठा था जीप में। तब मन में इच्छा हुई थी कि एक दिन मेरी भी जीप हो तो कितना अच्छा हो। अमेरिका आने के बाद यहाँ की आब-ओ-हवा को देखकर वह विचार त्याग दिया। अब घर में चार प्राणी हैं, और चार टोयोटा प्रियस। 


घर पहुँच कर भोजन हुआ। इतनी सारी कटोरियाँ थीं कि बड़ी सी थाली भर गई। बाऊजी एक कटोरी ख़त्म कर दूसरी खाते थे। डालने वाले ख़ाली कटोरी भरते जाते थे। बाऊजी कह रहे थे, अभी नहीं। जब सब ख़त्म हो जाए तब और ले लूँगा। 


मैं तो पहले ही खा चुका था। हमारे यहाँ आमतौर पर सूर्यास्त के आसपास ही खाना खा लिया जाता था। नौ बजे तक सब सो जाते थे। आकाशवाणी से पौने नौ पर हिन्दी में पन्द्रह मिनट के समाचार आते थे। उसके ख़त्म होते ही सारी रोशनियाँ बन्द। 


बाऊजी ने कहा आजा साथ बैठ जा। मैं बैठ गया। थोड़ा बहुत उनकी थाली से खा लिया। 


जब तक बनारस बी-टेक के लिए नहीं गया तब तक जब भी बाऊजी के साथ रहा, हमने एक ही थाली में खाना खाया। 


राहुल उपाध्याय । 29 सितम्बर 2020 । सिएटल 



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