Saturday, September 19, 2020

त्रुटियाँ कितनी बार दोहराई जाती हैं

स्वरचित हो, या फ़ॉरवर्ड, या कहीं से कॉपी/पेस्ट, त्रुटियाँ हटाकर भेजें। 


एक बार जो ग़लती की जाती है, इसका कितनी दूर तक और कितनी देर तक असर होता है, यह इस रचना को गुगल पर खोजने पर दिख जाता है। सब जगह ये त्रुटियाँ हैं। हमें अपना योगदान करते रहना चाहिए। 


यह रही त्रुटिहीन रचना। 


राहुल उपाध्याय । 19 सितम्बर 2020 । सिएटल 


ज़रूरतों के नाम पर

———————


क्‍योंकि मैं ग़लत को ग़लत साबित कर देता हूँ 

इसलिए हर बहस के बाद

ग़लतफ़हमियों के बीच

बिलकुल अकेला छोड़ दिया जाता हूँ 

वह सब कर दिखाने को

जो सब कह दिखाया

वे जो अपने से जीत नहीं पाते

सही बात का जीतना भी सह नहीं पाते

और उनकी असहिष्णुता के बीच

मैं किसी अपमानजनक नाते की तरह

बे-मुरव्वत तोड़ दिया जाता हूँ ।

प्रत्येक रोचक प्रसंग से हटाकर,

शिक्षाप्रद पुस्तकों की सूची की तरह

घरेलू उपन्यासों के अन्त में

लापरवाही से जोड़ दिया जाता हूँ ।


वे सब मिलकर

मेरी बहस की हत्‍या कर डालते हैं

ज़रूरतों के नाम पर

और पूछते हैं कि ज़िन्दगी क्‍या है

ज़िन्दगी को बदनाम कर ।


~ कुँवर नारायण 


जन्म: 19 सितंबर 1927


No comments: